आनन्दोत्सव अर विज्ञान (Anandotasav and Science)

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[श्री] आनंद किरण "देव" रो शोधपत्र
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 आनंद मारग दर्शन अर आदर्श रै मांय आनन्द रो दर्शन है। इण वास्तै, दर्शन नै लागू करण आळा समाज रै मांय आनन्द उत्सव भी सामिल है।

(1) पूर्ण शून्य अर आनंद पूर्णिमा- शून्य अनंत रो वैज्ञानिक नाम है। इण वास्तै ओ सृजित जगत मांय आनंद रै रूप मांय प्रदर्शित हुवै है। इण वास्तै इण दिन नै आनंद पूर्णिमा रै नाम सूं प्रसिद्धि मिलै है। सृष्टि रै उदय रै बगत, जद ऋषि-मुनि अर देवगण सामाजिक अनुष्ठान री योजना बणा रैया हा। उण बगत उणरो ध्यान इण ब्रह्मांडीय पूर्ण शून्य कानी गयो। इण ब्रह्मांडीय रूप मांय पूरो शून्य बण जावै है। जिसकी ऊर्जा ब्राह्मण के हर कण में समाई है। इण वास्तै ब्रह्माण्ड रो पैलो अंकुरण भी इण दिन हुयो। अस्यां शोधकर्तावां रो ओ अंदाजो है। इण वास्तै इण मंच नै आनंद पूर्णिमा रै रूप में चित्रित करियो गयो है। बगत रै सागै दुख री दुनिया मांय शून्य देख्यो गयो अर पछै महापरिनिर्वाण मांय पूरो शून्य देखण नै मिलण लागग्यो। शून्य महापरिनिर्वाण कोनी है पण महान आगमन आनन्द है। इण वास्तै श्री श्री आनन्दमूर्ति जी मिनख री बुद्धि नै मुक्त कर उणरो नांव आनंद पूर्णिमा राख्यो। यो वैशाख पर्व वैशाखी पूर्णिमा रै दिन पूरै रूप में देख्यो जावे है।

(2) आधा शून्य अर ज्योति रो त्योहार - ऋषि देव परिषद रै साम्हीं दूजो सवाल ब्रह्माण्ड रै मांय होबा आळा आधा शून्य री तरफ गयो। जो पूरा शून्य रै लगभग छह महीने बाद दिखाई दे रियो हो। इण वास्तै कार्तिक अमावस्या नै इण भांत चिन्हित करियो गयो। चूंकि आ घटना आधा शून्य रो प्रतिनिधित्व करै है। इण कारण पूर्णिमा री जगां अमावस्या चुणीजी। काळ रै सागै महावीर स्वामी रै निर्वाण री दीपोत्सव रै साथै व्यापारी समाज घणो चावो होयो अर भौतिक सुख-सुविधावां में आपरी विशिष्टता देखण लागग्यो। रामायण री लोकप्रिय कथा बांनै अपार आनंद सूं भर दी। दीपावली नै आनंद रो पर्व मानता थका श्री श्री आनंदमार्टी जी इणनै एक आनन्दोत्सव रै रूप में भी दिखायो है जो किसान समुदाय में कीटों री भरमार सूं छुटकारा पावा में मदद करै है। इणरै साथै आत्मदीप भी दिखायो गयो है। पूर्ण शून्य सफेदी नै दर्शावै है जदकै आधा शून्य काळापन नै दर्शावै है, इण वास्तै दीयो जला'र इणनै सफेदी में बदलबा री कोशिश करी जावै है। जदकै धावलता नै घणी खुशी सूं भरण सूं बढ़ायो जावै है।

(3) अल्प शुन्य अर श्रावण उत्सव अर बसनोत्सव - ब्रह्माण्ड में शून्य री दो अवस्थावां श्रावण अर फलगुन माह में आवै है। इण वास्तै ऋषिदेव परिषद भी इण माथै ध्यान दियो अर इणनै सिद्धि रो रूप देता थका श्रावणी पूर्णिमा अर फलगुणी पूर्णिमा नै त्योहार रै रूप में दिखायो गयो। फलगुन पूर्णिमा रो आनंदमय पर्व पलाश रै रंग सूं मिलता-जुलता होवण रै कारण रंगां रो पर्व अर श्रावणी पूर्णिमा नै आध्यात्मिक सुख रै रूप में शिक्षा अर दीक्षा रो पर्व मनायो जातो हो। भलांई श्रवणोत्सव श्रावणी पूर्णिमा सूं पैली अर बसंतोत्सव फलगुण पूर्णिमा रै पछै ज्यादा दीखै है, पण फेर भी पूरा होवण री निकटतम पूर्णिमा नै क्रमशः श्रावणी पूर्णिमा अर फलगुणी पूर्णिमा रै रूप में चिन्हित करियो गयो हो। श्री श्री आनंदमूर्ति जी इन दोनों पर्वों को आनंदोत्सव में स्थान दिया।

(4) नववर्ष अर नूंवा अन्न त्यौहार अर आनन्द उत्सव - ब्रह्मांडीय विज्ञान रै बाद श्री श्री आनंदमूर्ति जी पंचांग अर सामुदायिक सुख कानी मुड़ग्या। वैश्विक अर क्षेत्रीय कैलेंडर रै पैलै दिन नै खुशी रै साथै मनाबा री परम्परा विकसित करी। नवा अन्न रो त्योहार है पूर्णिमा, नूंवा अन्न रो आगमन। ओ सामुदायिक खुशी री भावना है। नयो खाणो पुराणा खाणा री जगां ले लेवै है। इण वास्तै, न्यू रो आगमन एक खुशी अर उत्सव है।

(5) शारदीय पर्व व आनन्दोत्सव - श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने अश्विन शुक्ल षष्ठी न ले'र दशमी सुदी पांच दिन शारदीय पर्व रे रुपयों दिखाया। जिन्हें क्रमशः शिशु दिवस, साधारण दिवस, ललित दिवस, संगीत कला दिवस एवं विजयत्सव के रूप मां दिया गया। यो एक पूरी तरह सूं सामाजिक त्योहार है। जिण मांय समाज रो हर पहलू जुड़्योड़ो है अर पुरी जीत री तरफ ले जावै है। समाज नै आध्यात्मिक प्रगति री तरफ ले जावै है।

(6) भाई दूज अर आनंदोत्सव - कार्तिक सुद ने दूज को श्री श्री आनंदमूर्ति जी भाई दूज के रूप में मनावा रो आदेश दिया है। बहन भाई रै सिर माथै तिलक लगाय भाई री दीर्घायु री प्रार्थना करै अर भाई सु आशीर्वाद लैव अर देवै। आ बात मिनख अर लुगायां रै प्रति चौखी नजर नै दर्शावै है। विश्व भाईचारे रै समाज में इणनै पारिवारिक उत्सव रै रूप में मनाणो जरूरी है। बहन परिवार री ऐड़ी ताकत है, जिकी मां-बाप रै मर्यां पछै भी परिवार नै साथै राखै। नींतर भाई कदैई-कदैई घणा आगै बध जावै है।

ओ तो बस म्हारो निजी शोध पत्र है।


         अंग्रेजी अनुवाद
Anandotsav and Science
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[Shri] Anand Kiran "Dev"
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Ananda is visible in the philosophy and ideals of Anand Marga. Therefore Anandotsav is included in the society that implements the philosophy.

(1) Complete Zero and Anand Purnima - The scientific name of infinity is zero. Therefore, it is shown as Anand in the created world. Therefore, this day is famous as Anand Purnima. In the dawn of creation, when the sages and gods were planning a social ritual. At that time, their attention went towards this cosmic complete zero. This cosmic form of complete zero is created. Whose energy is included in every particle of Brahmand. Therefore, the first germination of the creation also happened on this day. This is the estimate of the researchers. Therefore, this state is depicted as Anand Purnima. In the course of time, zero was seen in the form of sorrow, then complete zero started being seen in Mahaparinirvana. Zero is not Mahaparinirvana, but the great arrival Anand. Therefore, Shri Shri Anand Murti, while making the intellect of man Buddha as free intellect, named it as Anand Purnima. This Vaishakh festival, whose full form is seen on the day of Vaishakhi Purnima.

(2) Half Zero and Deepotsav - The second question before the Rishi Dev Parishad went towards the half zero occurring in the universe. Which was visible about six months after the full zero. Therefore, Kartik Amavasya was identified as it. Since this event represents the half zero. Therefore, Amavasya was chosen instead of Purnima. Over time, Deepotsav of Mahavir Swami's Nirvana became very popular among the merchant community and began to see its specialty in material comforts. The popular story of Ramayana filled that immense joy. While identifying it as Deepawali in the line of Anandotsav, Shri Shri Anand Murti ji has also shown it as a festival that provides relief to the farmer community from the excess of insects. Along with this, Atmadeep has also been shown. Complete zero is full of whiteness while semi zero is black, therefore an attempt is made to convert it into whiteness by lighting a lamp. While whiteness is made more beautiful by filling it with happiness.

(3) Short zero and Shravanotsav and Basantotsav - Two states of zero occur in the universe in the months of Shravan and Phalgun. Therefore, Rishi Dev Parishad also paid attention to this and giving it the form of completeness, Shravani Poornima and Phalguni Poornima were shown as festivals. On finding the Anandotsav of Phalgun Poornima similar to the colour of Palash, Rangotsav and Shravani Poornima were shown as the festival of education and initiation in the form of spiritual happiness. Although Shravanotsav is more visible before Shravan Poornima and Basantotsav after Phalgun Poornima, however, the nearest full moons to give completeness were identified as Shravan Poornima and Phalguni Poornima respectively. Sri Sri Anandmurti Ji gave place to both these festivals in Anandotsav.

(4) New Year and Navanna Festival and Anandotsav - After cosmological science, Sri Sri Anandmurti Ji turned towards calendar and community happiness. He developed the tradition of celebrating the first day of global and regional calendars with joy. Navanna festival is the full moon day of the arrival of new food grains. It is a feeling of community happiness. New food replaces the old food grains. Hence, the arrival of the new food is joyous and Anandotsav.

(5) Sharadiya festival and Anandotsav - Sri Sri Anandmurti Ji has given the five-day festival garland of Sharadotsav from Ashwin Shukla Shashthi to Dashami. Which respectively includes Shishu Diwas, Ordinary Day, Lalit art Diwas, Music Art Day and Vijayotsav. It is a completely social festival. It takes every aspect of society towards victory by connecting it. It takes society towards spiritual progress.

(6) Bhraata Dwitiya and Anandotsav - Sri Sri Anandmurti Ji has ordered to celebrate Kartik Shukla Dwitiya as Bhaarata Dwitiya. Sister applies Tilak on brother's forehead and prays for brother's long life and brother takes blessings and greets her and gives her blessings. This signifies good vision of man and woman towards man. In a society with universal brotherhood, it is necessary to celebrate it as a family festival. Sister is such a power in the family, who keeps the family together even after the death of parents. Otherwise sometimes brothers go very far away.

This is only my personal research paper.

      
        हिन्दी अनुवाद
आनन्दोत्सव एवं विज्ञान
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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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 आनन्द मार्ग दर्शन एवं आदर्श में आनन्द के दर्शन हैं। इसलिए दर्शन को क्रियांवित करने वाले समाज में आनन्दोत्सव का समावेश है। 

(१) पूर्ण शुन्य एवं आनन्द पूर्णिमा - शून्य अनन्त का वैज्ञानिक नाम है। इसलिए सृष्ट जगत में आनन्द के रूप में प्रदर्शित होता है। अतः यह दिन आनन्द पूर्णिमा के नाम ख्याति पाता है। सृष्टि के उषाकाल में जब ऋषि देव गण सामाजिक अनुष्ठान की योजना बना रहे थे। उस समय उनका ध्यान इस ब्रह्माण्डीय पूर्ण शून्य की ओर गया। इस जागतिक रूप पूर्ण शून्य का निर्माण होता है। जिसकी ऊर्जा ब्राह्मण के कण कण में समाविष्ट होती है। इसलिए सृष्टि का प्रथम अंकुरण भी इस दिन हुआ था। ऐसा शोधकर्ताओं का अनुमान है। अतः इस अवस्था को आनन्द पूर्णिमा के रूप में चित्रित किया जाता है। कालांतर में शून्य को दु:ख वाद में देखा तब पूर्ण शून्य महापरिनिर्वाण में देखा जाने लगा। शून्य महापरिनिर्वाण नहीं महान आगमन आनन्द है। इसलिए श्री श्री आनन्द मूर्ति ने मनुष्य बुद्ध बुद्धि को मुक्त बुद्धि करते हुए इसका नामकरण आनन्द पूर्णिमा के रूप में किया गया। यह वैशाख उत्सव जिसका पूर्ण रूप वैशाखी पूर्णिमा के दिन देखा जाता है। 

(२) अर्द्ध शून्य एवं दीपोत्सव - ऋषि देव परिषद के समक्ष दूसरा प्रश्न ब्रह्माण्ड में घटित होने वाले अर्द्ध शून्य की ओर गया। जो पूर्ण शून्य के लगभग छ माह बाद में दृष्टिगोचर होता था। इसलिए कार्तिक अमावस्या को इसके रूप में चिन्हित किया गया। चूंकि यह घटना अर्द्ध शून्य को प्रदर्शित करती है। इसलिए पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या को चुना गया। कालांतर महावीर स्वामी के निर्वाण के दीपोत्सव वणिक समाज अति लोकप्रिय हो गया था तथा अपनी विशिष्टता को भौतिक सुख सुविधा में देखने लगा। रामायण के प्रचलित कहानी ने उस अपार आनन्द भरा। श्री श्री आनन्दमर्ति जी ने आनन्दोत्सव की पंक्ति में दीपावली के रूप में चिन्हित करते समय कृषक समुदाय के कीटों के आधिक्य से निजात दिलाने वाले उत्सव के रूप में भी दिखा है। साथ में आत्मदीप को भी दिखाया गया है। पूर्ण शून्य धवलता को लिए होता है जबकि अर्द्ध शून्य कालिमा को इसलिए इसे दीप जलाकर धवलता में बदलने का प्रयास किया जाता है। जबकि धवलता को खुशियों का अंबार भरकर धवलता में चार चांद लगया जाता है। 

(३) अल्प शून्य एवं श्रावणोत्सव एवं बंसतोत्सव - ब्रह्माण्ड में शून्य की दो ओर अवस्था श्रावण एवं फाल्गुन माह में घटित होती है। अतः ऋषि देव परिषद ने इस ओर भी ध्यान दिया तथा उसे पूर्णत्व का रूप देते हुए श्रावणी पूर्णिमा एवं फाल्गुनी पूर्णिमा को उत्सव के रूप में दिखाया गया। फाल्गुन पूर्णिमा के आनन्दोत्सव को पलाश के रंग सदृश्य पाने पर रंगोत्सव एवं श्रावणी पूर्णिमा को आत्मिक सुख के रूप शिक्षा-दीक्षा उत्सव के रूप प्रदर्शित किया गया। यद्यपि‌श्रावणोत्सव श्रावणी पूर्णिमा के पहले तथा बंसतोत्सव फाल्गुन पूर्णिमा के बाद अधिक दृश्य मान होता है तथापि पूर्णत्व देने के निकटवर्ती पूर्णिमा क्रमशः श्रावणी पूर्णिमा एवं फाल्गुनी पूर्णिमा को चिन्हित किया गया था। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी इन दोनों उत्सव को आनन्दोत्सव में स्थान दिया। 

(४) नववर्ष एवं नवान्न पर्व एवं आनन्दोत्सव - ब्रह्माण्डीय विज्ञान के बाद श्री श्री आनन्दमूर्ति जी पंचाग तथा सामुदायिक खुशी की ओर दिया। वैश्विक एवं क्षेत्रीय पंचागों के प्रथम दिवस आनन्द के साथ मनाने परंपरा को विकसित किया। नवान्न पर्व नव अन्न के आगमन पूर्णिमा है। यह एक सामुदायिक खुशी अहसास है। पुराने अन्न का स्थान नया अन्न लेता है। अतः नव का आगमन का आनन्द एवं आनन्दोत्सव है। 

(५) शारदीय पर्व एवं आनन्दोत्सव - श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने अश्विन शुक्ला षष्ठी से दशमी तक शरदोत्सव की पंच दिवसीय उत्सव माला दी है। जो क्रमशः शिशु दिवस, साधारण दिवस, ललित दिवस, संगीत कला दिवस एवं विजयत्सव दिये है। यह पूर्णतया सामाजिक उत्सव है। जिसमें समाज के हर पहलू को जोड़कर विजय की ओर ले चलता है। समाज को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले चलता है। 

(६) भ्राता द्वितीया एवं आनन्दोत्सव - कार्तिक शुक्ला द्वितीया को श्री श्री आनन्दमूर्ति जी भ्राता द्वितीया के रूप में मनाने का आदेश दिया है। बहिन भाई के मस्तिष्क पर तिलक लगाकर भ्राता के चिरायु की कामना करती है तथा भाई आशीर्वाद एवं प्रणाम लेती एवं देती है। यह स्त्री पुरुष के प्रति सुदृष्टि द्योतक है। जो विश्व बंधुत्व वाले समाज एक पारीवारिक उत्सव के रूप में रहना अनिवार्य है। परिवार में बहिन ऐसी शक्ति है, जो माता पिता के जाने के बाद भी परिवार जोड़कर रखती है। वरना तो भाई कभी कभी बहुत दूर चले जाते हैं। 

यह मात्र मेरा निजी शोधपत्र है।
बाबा के रेलवे कार्यालय की कुर्सी जिस पर बैठकर बाबा लेखा अधिकारी के रचयिता में काम करते थे। 
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