🙏 आनन्दमूर्ति 🙏
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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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आनन्द व मूर्ति शब्द से मिलकर आनन्दमूर्ति शब्द बना है। इसका शाब्दिक विश्लेषण आनन्द की मूर्ति होता है। मूर्ति शब्द का अर्थ ज्ञाता अथवा दाता होता है। आनन्द शब्द का अर्थ अनन्त सुख अथवा अपरिमाप्य सुख होता है। अतः आनन्दमूर्ति शब्द का अर्थ आनन्द के दाता होता है। अतः परमपुरुष का एक नाम आनन्दमूर्ति हुआ। क्योंकि इस जगत में आनन्द के दाता 'आनन्दमूर्ति' केवल जगदीश्वर है। आनन्दमूर्ति ही सत्यमूर्ति, प्रेममूर्ति तथा न्यायमूर्ति है। वही परमपुरुष, परमपिता एवं परमतत्व है। उसे भक्त एवं जग अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग नाम से पुकारते है।
उन्हें जब भक्त गुरु रूप में ग्रहण करता है तब वह श्री श्री आनन्दमूर्ति हो जाते हैं। समाज जब उन्हें अपना पथ प्रदर्शक मानता है तब उन्हें श्री श्री आनन्दमूर्ति जी शब्द से संबोधित करता है। चूंकि मनुष्य तथा उसके समाज का गति पथ आनन्द मार्ग है इसलिए उसके गुरु, पथ प्रदर्शक एवं इष्ट श्री श्री आनन्दमूर्ति जी हो जाते हैं। इस दुनिया के सभी मनुष्य आनन्द मार्गी है। कुछ ज्ञात भाव से कुछ अज्ञात भाव से आनन्द मार्ग पर ही चल रहे हैं। इसलिए श्री श्री आनन्दमूर्ति जी जगतगुरु एवं विश्वपिता है।
यह युग बहुत भाग्यशाली हैं कि स्वयं आनन्दमूर्ति मनुष्य शरीर धारण कर जगत की सारी समस्या के परित्राण का मार्ग दिखलाया है। उनकी इस जन कल्याणकारी योजना को आनन्द मार्ग कहा गया है। आज आनन्द मार्ग विश्व शांति, समृद्धि एवं कल्याण के लिए एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की रचना करने में लगा हुआ है। उनके इस पुनित कार्य को जग आनन्द मार्ग के रूप में देख रहा है। अतः आनन्द मार्ग एक धर्म है। आनन्द मार्ग पर चलना मनुष्य एवं उसके समाज का धर्म है। आनन्द मार्ग धर्म का पथ है। अतः सभी मनुष्य को आनन्द मार्ग पर चलना चाहिए। जो भी ज्ञात भाव से आनन्द मार्ग से दूर है। उन्हें समय रहते अपने विवेक को जागृत कर आनन्द मार्ग को अपने प्राणधर्म के रूप में स्वीकार कर देना ही युग का धर्म है। जो लोग अज्ञानता, नासमझी, नादानी, स्वार्थ अथवा जड़ता के बंधन की वजह से आनन्द मार्ग को स्वीकार करने का सत्साहस नहीं है। उन्हें अपने एवं जग हित के लिए ऐसा सत्साहस दिखाना ही चाहिए। व्यक्तिगत ईर्ष्या, जलन एवं शत्रुभाव की वजह से स्वयं और अपने संसार को आनन्द मार्ग से दूर रखने के कोशिश कर रहे हैं, उन्हें समझना होगा कि उनका यह पथ धर्म सहमत नहीं है।
आनन्दमूर्ति बनना ही जीवन लक्ष्य है। यदि कोई मनुष्य अपने जीवन लक्ष्य से दूर रखता है। ऐसा करना अच्छा नहीं है।
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