सुशासन की एक थीम - "सूर्य एवं दीपक" (A theme of good governance - "Sun and lamp")

           
            सूर्य एवं दीपक 
         (सुशासन एक थीम) 
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     [श्री] आनन्द किरण "देव"
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आज उजियारा के दोनों प्रतीक सूर्य एवं दीपक के संदर्भ में लिखने का विषय मिला है। सूर्य एक प्राकृतिक पिंड है, जो अपनी ऊर्जा से सभी को प्रकाश देता है जबकि दीपक एक मानव निर्मित पिंड है, जो तेल की ऊर्जा की मदद से हमें प्रकाश देता है। इसलिए सूर्य को दीपक तथा दीपक सूर्य समझने की भूल ही महाभारत कराती है। नैतिक शिक्षा यह अध्याय जिसने पढ़ लिया वही सुशासन दे सकता है।

आज राजनीति में कुछ ऐसा ही होता है दीपक को सूर्य तथा सूर्य दीपक समझा जाता है। इसलिए सुशासन (Good governance) नहीं मिल पा रहा है। सुशासन के लिए सूर्य कैसे बनना होता है। यही समझने की कोशिश करते हैं। आज के युग में किसी व्यक्ति में सुशासन समझना एक भूल है। सुशासन व्यवस्था देती है। इसलिए सुशासन के व्यवस्था में सूर्य को देखना होगा व्यक्ति में नहीं। अतः इस भूल को सुधार कर ही सुशासन की कल्पना कर सकते हैं। आओ सुशासन के सूर्य को देखने चलते हैं। 

(१.) आध्यात्मिक नैतिकवान समाज का निर्माण - सुशासन के लिए प्रथम शर्त है कि आध्यात्मिक नैतिकवान समाज का होना आवश्यक है। इसके अभाव में कितनी भी अच्छी नीतियाँ रुग्ण हो जाती है तथा अव्यवस्था की शिकार हो जाती है। अतः राज्य, राजनीति एवं संविधान का प्रथम दायित्व है कि आध्यात्मिक नैतिकवान एक अखंड मानव समाज का निर्माण करने की नीति एवं व्यवस्था प्रधान करें। यह व्यवस्था यम नियम एवं भूमा भाव की साधना में निहित है। जिसे आनन्द मार्ग लेकर चलता है। जो व्यष्टि एवं व्यष्टि का समूह उक्त सिद्धांत का पालन करता तथा औरों को पालन करता है। वही सुशासन दे सकता है। 

(२.) सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय दर्शन - आध्यात्मिक नैतिकवान नेतृत्व के पास यदि सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय दर्शन नहीं है तो वे चाहकर भी सुशासन नहीं दे सकते हैं। इसलिए व्यष्टि तथा व्यष्टि के समूह को अपना दर्शन सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय रखना आवश्यक है। कोई भी दर्शन तब तक सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय नहीं हो सकता जबतक उसके उपयोग तत्व में प्रगतिशील गुण विद्यमान नहीं है। अतः सुशासन के लिए सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय दर्शन में प्रगतिशील उपयोग तत्व का होना आवश्यक है। उपयोग समाज व्यवस्था, अर्थव्यवस्था एवं शासनव्यवस्था की धुरी है, इसलिए सभी व्यवस्था को उपयोग तत्व तो लेकर चलना ही होता है लेकिन जो व्यवस्था प्रगतिशील उपयोग तत्व लेकर चलती है, वही सुशासन दे सकती है। अतः एक शब्द में सदविप्र (आध्यात्मिक नैतिकवान व्यष्टि) व प्रउत सुशासन दे सकते हैं। 

(३.) बुद्धि मुक्ति एवं नव्य मानवतावादी चिन्तन - सुशासन के लिए तीसरी शर्त है समाज के प्रत्येक व्यष्टि एवं नेतृत्वृंद की सोच एवं चिन्तन का नव्य मानवतावादी होना आवश्यक है। व्यष्टि एवं नेतृत्वृंद की बुद्धि भौम भाव प्रवणता (Geo sentiment) तथा सामाजिक भाव प्रवणता ( Socio sentiment) से मुक्त होनी चाहिए। वह किसी भी के जड़ भाव में लिप्त नहीं होनी चाहिए। अतः जातिवादी, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवादी, भाषावादी तथा नस्लवादी बुद्धि कभी भी सुशासन नहीं दे सकती है। सुशासन के तथाकथित मानवतावादी बुद्धि से भी काम नहीं चलेगा। उसे पूर्णतया सम्पूर्ण दर्शन बुद्धि की मुक्ति एवं नव्य मानवतावाद से चलना होगा। सृष्टि के समस्त जीव व अजीव के कल्याण को लेकर निर्मित बुद्धि ही मुक्त बुद्धि है। अतः रुग्ण बुद्धि से निर्मित कोई मानसिकता सुशासन नहीं दे सकती है। 

(४.) मानव दर्शन - आनन्द मार्ग दर्शन - सुशासन के लिए मनुष्य का दर्शन आनन्द दर्शन होना आवश्यक है। जब तक मनुष्य जगत दु:ख मयी, क्षणभंगुर अथवा मिथ्या समझता रहेगा तब तक सुशासन से दूर रहेगा। अतः मनुष्य को सृष्टि का स्वरूप आनन्दमय तथा व्यष्टि एवं समष्टि का दर्शन आनन्द दर्शन होना आवश्यक है। मनुष्य के चलने की पथनिर्देशना का भी आनन्द मार्ग होना आवश्यक है। जबतक मनुष्य दु:ख मार्ग, खंड मार्ग अथवा संकीर्ण मार्ग पर चलता रहेगा अथवा चलता हुआ देखा जाएगा तब तक हम सुशासन देने वाले नहीं बन सकते हैं। 

(५.) आर्थिक विकेन्द्रीकरण तथा शक्तिशाली राजनैतिक सत्ता - सुशासन के लिए अर्थ शक्ति का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है तथा राजशक्ति का सदविप्रों की डिक्टेटरशिप से संगठित करनी परिवर्तित करना होगा। 

(६.) सामाजिक आर्थिक इकाई की रचना - सुशासन के लिए समग्र विश्व अथवा देश को समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक संभावना, नस्लीय समानता एवं भावनात्मक एकता नाम चार तत्वों से निर्मित सामाजिक आर्थिक इकाइयों में बांटकर इन्हें स्व:निर्भर इकाई के रूप विकसित करने में ही राष्ट्र का कल्याण है। 

(७.) ब्लॉक लेवल प्लानिंग - समग्र विकास के लिए ब्लॉक लेवल प्लानिंग आवश्यक है। यह सुशासन का मूल तत्व है। राजधानी से‌ बैठकर सम्पूर्ण राष्ट्र अथवा राज्य के लिए एक जैसा मॉडल बनाने काम नहीं चलेगा। धरती की कठोर माटी पर योजनाएँ बनानी होगी। इसलिए सबसे उत्तम स्तर ब्लॉक लेवल है। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति पहूँच जाता है। अतः सुशासन की हस्तरेखा ब्लॉक लेवल पर बनी हुई, उन्हें कर्म रेखा बनानी आवश्यकता है। 

(८.) न्यूनतम एवं अधिकतम मानदंड के निर्धारण में सुसामंजस्य एवं वर्द्धमान मानक स्तर - सुशासन के लिए नागरिकों के न्यूनतम एवं अधिकतम में सुसामंजस्य होना आवश्यक है। यह अन्तर जितना कम हो उतना प्रगतिशील समाज के लिए अच्छा है। इसके साथ न्यूनतम मानक स्तर में उत्तरोत्तर वृद्धि की संभावनाएं निहित करना। यह गतिशील सामाजिक आर्थिक मान ही सुशासन को यथावत रखता है तथा प्रथम व अन्तिम नागरिक के सामाजिक आर्थिक स्तर कम से कम फासला सुशासन दिखाता है। 

(९) सर्व निम्न प्रायोजन सबके आवश्यक है - अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सक एवं शिक्षा सबके लिए आवश्यक है। इसलिए इसका व्यवसायीकरण की बजाए सबके लिए सुलभ करना आवश्यक है। यदि इस मानक पर सरकार खरी नहीं उतरती है तो वह सुशासन नहीं दे सकती है। 

यह व्यवस्था जिस दल अथवा संगठन के पास सूर्य की भांति स्व:जीवी है तथा जिनके पास यह व्यवस्था नहीं है, वे जुगनू की भांति अल्प प्रकाशजीवि हैं अथवा दीपक की भांति परजीवी है। अतः सूर्य एवं दीपक के इस खेल में सूर्य ही पृथ्वी को जगमगाहट दे सकता है। दीपक मात्र कारी टांका लगा सकता है। इनसे न देश बन सकता है तथा नहीं समाज। आज के युग में जुगनुओं का बोलबाला भी ज्यादा है। जो थोथा चना बाजे घणा के समान है। उनसे सावधान रहकर समग्र दर्शन लेकर चलने वाले संगठन का हाथ थामना होगा। यही आज के युग सूर्य है। दीपक से नहीं सूर्य से आश लगाओ वही सुशासन देता है।
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