आनन्द मार्ग अमर है


श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने मानव के लिए आनन्द मार्ग दिया है। उन्होंने मानव को आश्वासन दिया है कि आनन्द मार्ग अमर है। चूंकि आनन्दमूर्ति परमसत्ता है इसलिए उक्त वाक्य आप्त वाक्य है। शास्त्र में कहा गया है कि आप्त वाक्य शास्वत सत्य होते है। आज हम शास्वत सत्य आप्त वाक्य 'आनन्द मार्ग अमर है' पर चर्चा करते हैं। 

मनुष्य का दर्शन आनन्द मार्ग

सृष्टि के उषाकाल से ही मनुष्य को एक दर्शन की खोज थी। वह जानना चाहता था कि -
१. परमतत्व(विभु सत्ता) क्या है? 
२. सृष्टि तत्व क्या है? 
३. मैं कौन हूँ? 
४. धर्म क्या है? 
५. मेरा लक्ष्य क्या है अथवा मेरी गति क्या है? 
६. लक्ष्य तक पहुँचने का पथ व साधन क्या है?  
७. मनुष्य साधना से भयभीत क्यों होता है? 
८. समाज क्या है? 
९. समाज दर्शन क्या है? 
१०. मेरा का चिन्तन कैसा होना चाहिए? 
११. मनुष्य के विचार का निर्माण कैसे होता है? 
- ऐसे प्रश्न को उत्तर की खोज करने के प्रयास में मनुष्य के दर्शन का निर्माण होता है। अतीत में बहुत सारे विद्वानों ने उक्त प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया था। सदाशिव के युग में दर्शन से अधिक वस्तु जगत में काम करने की आवश्यकता थी इसलिए सदाशिव ने मनुष्य को दर्शन से दूर रखा। कृष्ण के युग में स्वयं तथा जगत के विषय जानने का जिज्ञासु हो गया था। इसलिए कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया। आज के युग के मनुष्य की जिज्ञासा में नवीनता आई है। वह पहले से अधिक तार्किक बन गया है इसलिए आजके मनुष्य का दर्शन एवं क्रिया वैज्ञानिक होना आवश्यक है। उस अधिग्रहण, प्रमेय एवं निर्मेय के रूप में प्रमाणित कर सिद्धांत का रुप देना पड़ता है। इसलिए तार्किक, यथार्थ एवं युक्ति कसौटी पर खरा उतरने वाले दर्शन की आवश्यकता है। आनन्द मार्ग वैसा ही दर्शन है। जहाँ भाव जड़ता नहीं तार्किक मानसिकता के आधार पर दर्शन का निर्माण हुआ है। आनन्द मार्ग मनुष्य का अपना स्वयं का दर्शन है। जहाँ मनुष्य स्वयं को जानता है, अपने भगवान को जानता है तथा जगत एवं समाज को भी जानता है तथा इनसे आनन्द प्राप्त करता है। 

आनन्द मार्ग एक जीवन शैली

मनुष्य को जीने के लिए एक जीवन शैली की आवश्यकता है। जो मनुष्य के व्यवहार एवं कर्म का निर्धारण करती है। विश्व इतिहास में ऐसी कई जीवन शैलियों का निर्माण हुआ है तथा होता जा रहा है। आनन्द मार्ग मनुष्य की ऐसी जीवन शैली है। जिस पर चलकर मनुष्य जीवन को सार्थक करता है तथा अपने जीवन को आनन्द से लबालब भर देता है। 

आनन्द मार्ग मनुष्य का आदर्श है

मनुष्य दर्शन, जीवन शैली के साथ एक आदर्श की खोज भी कर रहा है। आदर्श का अर्थ है ऐसे नैव्यष्टिक तत्व जिनको धारण करना चाहता है। जो मनुष्य के अपने सिद्धांत बन जाते हैं‌। आनन्द मार्ग मनुष्य के लिए आदर्श भी है। जिसके प्रति पूर्ण विश्वास व्यक्त करता है।

आनन्द मार्ग मनुष्य का जीवन पथ है

आनन्द मार्ग मनुष्य मात्र जीवन शैली ही नहीं जीवन लक्ष्य तक चलने का पथ भी है। मनुष्य की का पथ है। वस्तुतः मनुष्य अनन्त काल से अपनी प्रगति के सामान्य पथ की तालाश में उसे मत एवं पंथ तो मिले लेकिन सुपथ नहीं मिला था। आनन्द मार्ग मनुष्य के लिए सुपथ बनकर आया है। 

हमने आनन्द मार्ग कुछ विधाओं के देखा है। अब विषय पर आते है आनन्द मार्ग अमर है - आनन्द मार्ग मनुष्य के दर्शन, जीवन शैली, आदर्श एवं सुपथ के रूप में अजर अमर है। आनन्द मार्ग का आगमन आनन्दमूर्ति से है तथा आनन्द मार्ग निर्गमन आनन्दमूर्ति में है। मनुष्य का आना जाना सबकुछ आनन्द मार्ग ही है। अतः आनन्द मार्ग अमर है।

आनन्द मार्ग प्रचारक संघ एवं आनन्द मार्ग अमर है

हमने आप्त वाक्य को शास्वत सत्य स्वरूप के दर्शन किये है। इसलिए हम थोड़ा आगे बढ़ते हैं। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ जिसका निर्माण श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने आनन्द मार्ग को धरातल पर उतारने के लिए किया था। 1955 से 1990 तक श्री श्री आनन्दमूर्ति जी आनन्द मार्ग को पूर्ण रूप से धरातल स्थापित कर 21 अक्टूबर 1990 से पुनः आनन्द लोक में वास कर रहे हैं। यद्यपि यह धरातल भी उनके आनन्द लोक का ही अंग है तथापि भौतिक रूप से आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की जिम्मेदारी पुरोधाओं पर आ गई। 1990 से अब तक यात्रा में यह पुरोधा आनन्द मार्ग को संभालने में चूक करते देखे जा रहे हैं। इनकी यह चूक आनन्द मार्ग प्रचारक संघ को गुटबाजी का अड्डा बना दिया है। सभी अपने अपने गुट को सच्चा, अच्छा एवं पक्का आनन्द मार्ग कह रहे हैं। इस विषम परिस्थिति में सवाल उठता है कि क्या आनन्द मार्ग प्रचारक संघ अमर है? इसकी उत्तर की खोज में सर्वप्रथम हम 1953-54 में जाते है। आचार्य नगीना जी का वृतांत बताता है कि बाबा किसी प्रकार के संगठन की संरचना के पक्ष में नहीं थे। बताते है कि उनके तात्कालिक शिष्यों की मांग पर विशेषकर आचार्य नगीना जी जिद की जीत पर हमें आनन्द मार्ग प्रचारक संघ मिला। यदि परमपुरुष के लीला लोक की ओर दृष्टिपात करें तो आचार्य नगीना एवं श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का तात्कालिक शिष्यदल उस लीला के पात्र मात्र थे। 1953-54 का यह अध्ययन पत्र बताता है कि श्री श्री आनन्दमूर्ति जी संगठन बनाने के पक्ष में क्यों नहीं थे? उन्होंने तात्कालिक शिष्यदल के समक्ष स्वयं को हराकर आनन्द मार्ग प्रचारक संघ क्यों दिया? आचार्य नगीना जी वृतांत को साक्षी मानकर देखा जाए तो आनन्द मार्ग प्रचारक संघ श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की अपने ही शिष्यदल के समक्ष हार का परिणाम है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का आगमन आनन्द मार्ग को धरातल पर लाने के लिए ही हुआ था। आनन्द मार्ग को धरातल पर स्थापित करने में आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी संगठन बनाने के पक्ष में नहीं थे तथा संगठन के माध्यम से इस पृथ्वी लोक को आनन्द मार्ग प्रदान कर दिया। दोनों ही विरोधाभास उक्तियों के बीच प्रश्न और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या आनन्द मार्ग प्रचारक संघ भी अमर है? इस प्रश्न की दूसरी पड़ताल में आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के इतिहास की ओर जाते हैं। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के इतिहास को दो चरण में रखकर अध्ययन करते हैं - प्रथम चरण 1955 से 1990 तथा द्वितीय चरण 1990 से अब तक। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के इतिहास के प्रथम चरण में आनन्द मार्ग का निर्माण हुआ है। इस काल में आनन्द दर्शन, आनन्द मार्ग जीवन शैली, आनन्द मार्ग आदर्श एवं आनन्द मार्ग पथ का निर्माण हुआ। 1990 में अंतिम प्रभात संगीत गुरुकुल आता है। इसलिए 1955 को ही आनन्द मार्ग जन्म नहीं कह सकते हैं। उस दिन आनन्द मार्ग के बीज का रोपण किया था जो अंकुरित होकर 1990 को बाहर आया। इसलिए प्रथम पृष्ठ को भूतल के अंदर का इतिहास कह सकते हैं। प्रउत, नव्य मानवतावाद, कीर्तन, आनन्द सूत्रम, प्रभात संगीत, कौषिकी, तांडव इत्यादि आनन्द मार्ग की धरोहर है। यह इस यात्रा में आए हैं। यह काल मनुष्य सोच से नहीं परमपुरुष की सोच में समाया मनुष्य के तन तो मात्र उनका साथ दे रहे थे। अक्टूबर 1990 में आनन्द मार्ग मनुष्यों के हाथ में आया है। इसलिए द्वितीय काल की पड़ताल उत्तर की खोज में मदद देगी। सुना है कि श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने अपने भौतिक जीवन के अंतिम काल में मार्गियों आनन्द मार्ग के आदर्श पर चलने की शपथ दिलाई थी। यह शपथ भी उनके एक संदेह की ओर ईशारा करती है कि वे जानते थे कि कुछ अप्रिय होने वाला है। उसमें आनन्द मार्ग को सुरक्षित रखने में वह शपथ मददगार साबित हो। अब द्वितीय चरण की पड़ताल की ओर चलते हैं। 1990 से अबतक आनन्द मार्ग प्रचारक संघ तीन तेरह होता ही चल रहा है इसके बीच एक आश है कि आनन्द मार्ग प्रचारक संघ एक होगा। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ का दृश्य एवं आश के बीच यदि संतुलन रेखा खिंचे तो एक ही उत्तर आएगा कि आप्त वाक्य इस पर लागू नहीं होने पर भी आनन्द मार्ग प्रचारक संघ चिरंजीवी है। यह रुग्ण हो सकता है लेकिन नष्ट नहीं होगा। मुझे एक ही बात समझ में आती है कि आनन्द मार्ग प्रचारक संघ चिरंजीवी अवश्य है। वह एक दिन अपने मूल स्वभाव में आएगा तथा आनन्द मार्ग के आदर्श को इस धरा पर स्थापित करेगा। 
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      श्री आनन्द किरण "देव"

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