समाज का आध्यात्मिक नैतिकवान होना क्यों जरुरी है?

हमारा समाज आंदोलन योजना के प्रथम चरण में आध्यात्मिक नैतिकवान समाज का निर्माण करने की योजना देता है। इसलिए आज प्रश्न लिया गया है कि समाज का आध्यात्मिक नैतिकवान होना क्यों आवश्यक है? 

बिना नैतिकता के कितनी भी सुन्दर व्यवस्था ऐसे ही धराशायी हो जाएगी जैसे बिना नींव का मकान होता है। इसलिए प्रउत समष्टि व्यवस्था के लिए व्यष्टि में आध्यात्मिक नैतिकता के बीज का रोपण करता है। समस्त योजना एवं क्रियाकलाप आध्यात्मिक नैतिकता की आधारशिला पर खड़ा रखा गया है।

समाज शब्द सभी को साथ लेकर चलने के लिए बना है। अत: समाज के कुछ मान निर्धारित किये जाते हैं। यह मान समाज की व्यवस्था को बनाए रखते हैं। इन मान को निर्धारित करने वाले के पास उच्च आदर्श नहीं रहने पर स्वार्थ में डुब सकता है। समाज में इन आदर्श के निर्माण के लिए आचरण संहिता का निर्माण किया जाता है। यह आचरण संहिता आध्यात्मिक नैतिकता के बिना टिक नहीं सकती है। इसलिए समाज को आध्यात्मिक नैतिकता की आवश्यकता है। 

जब तक मनुष्य आध्यात्मिक नहीं होता है तब उसकी नैतिकता का कोई मूल्य नहीं होता है। जिसका मूल्य नहीं है उसका भरोसा भी नहीं है। अतः नैतिकता के आगे आध्यात्मिक विशेषण आवश्यक है। जहाँ आध्यात्मिक के पास नैतिकता नहीं है। उसकी गति गलत दिशा ले सकती है। इसलिए आध्यात्मिकता को नैतिकता के आभूषण पहनना आवश्यक है। अतः समाज में जिस नैतिकता की आवश्यकता है वह आध्यात्मिक नैतिकता है। उदाहरण के तहत भीष्म पितामह के पास सहज नैतिकता थी जबकि पांडवों के पास आध्यात्मिक नैतिकता
थी। पांडव पास हुए जबकि भीष्म ठग लिए गए। अतः नैतिकवान का आध्यात्मिक तथा आध्यात्मिक व्यक्ति का नैतिकवान होना जरूरी है। इसलिए आज के युग में साधकों यम नियम की शिक्षा दी जाती है। 

समाज में नीति, मूल्यों एवं कार्ययोजना के निर्धारण, संचालक एवं पालन करने वालों को यम नियम मानकर चलना होता। यम नियम साधक का आध्यात्मिक होना आवश्यक है। अतः समाज को हर हाल में आध्यात्मिक नैतिकवान होना आवश्यक है। 

आध्यात्मिकता मनुष्य को पूर्णत्व प्रदान करती है तथा नैतिकता मनुष्य को मनुष्यत्व प्रदान करती है। मनुष्यत्व एवं पूर्णत्व ही मनुष्य की पहचान है। अतः मनुष्य को मनुष्य की पहचान देने के लिए आध्यात्मिक नैतिकवान होना आवश्यक है। 

आध्यात्मिक नैतिकता के बिना समाज का निर्माण नहीं हो सकता है। इसलिए भी समाज को आध्यात्मिक नैतिकवान होना आवश्यक है। संघ, संस्था एवं संगठन के लिए भी नैतिकता की आवश्यकता है। आध्यात्मिकता के बिना येनकेन प्रकारेण इन जिन्दा रखा जा सकता है लेकिन समाज एक ऐसा संस्थान, संघ अथवा संगठन है कि उसे आध्यात्मिक नैतिकता के जिन्दा नहीं रखा जा सकता है। यदि बलांत ऐसा किया जाता है, समाज के स्थान पर सम्प्रदाय अथवा जाति का निर्माण हो जाता है। समाज समाज ही रहे इसलिए भी समाज को आध्यात्मिक नैतिकवान होना आवश्यक है। 

समाज समाज की पहचान देने के लिए, मनुष्य को मनुष्य की पहचान देने के लिए, समाज के संचालन के लिए, समाज शब्द के निर्माण के लिए समाज का आध्यात्मिक नैतिकवान होना आवश्यक है। 
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श्री आनन्द किरण "देव"
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