आदर्श राज्य की स्वतंत्र संस्थाएँ - राज्य का सप्त ऋषि मंडल (Independent institutions of the ideal state - Sapta Rishi Mandal of the state)


एक आदर्श राज्य में निम्न स्वतंत्र संस्थान होना आवश्यक है। यहाँ राजनैतिक का हस्तक्षेप से लोकतंत्र का स्वरूप गंदा बन जाता है। लोकतंत्र की सुरक्षा एवं मर्यादा को बनाये रखने के लिए अर्थशक्ति एवं राजशक्ति का पृथक्करण आवश्यक है। साथ में निम्न संस्थान दोनों ही शक्तियों के हस्तक्षेप से मुक्त एक शक्तिशाली संस्थान होना आवश्यक है। 

१. शिक्षा पर्षद - शिक्षा तथा शिक्षा के लोक में राजशक्ति तथा अर्थशक्ति का हस्तक्षेप मानव तथा नागरिक निर्माण के प्रथम केन्द्र को दूषित करता है। भारतवर्ष के महान आदर्श बताते हैं कि शिक्षा कभी भी राजशक्ति एवं अर्थशक्ति की कठपुतली नहीं रही है। इनका संचालन सदैव स्वतंत्र शिक्षाविदों द्वारा होना आवश्यक है।यह मानव शिशु को समग्रता सिखाता है। देश की सीमाएँ को शिक्षा आदर करते हैं लेकिन इस भाषा को नहीं जानते हैं। ठीक उसी प्रकार शिक्षा समाज की तस्वीर को समानत में देखता है, उसमें संसाधनों पर अधिकार संपन्नता एवं विपन्नता की छा नहीं पड़ती है। राजशक्ति एवं अर्थशक्ति इस प्रकार के कुत्सित प्रयास करती है। इसलिए शिक्षा राजशक्ति एवं अर्थशक्ति से मुक्त एक सशक्त शिक्षाविदों की पर्षद को सौपनी चाहिए। शिक्षा पर्षद में रुग्ण विचार का समावेश नहीं हो इसका ध्यान रखना संविधान का अधिकार है। 

२. चिकित्सा पर्षद - चिकित्सा का संबंध रोग एवं रोगी से होता है। यह राजा, अधिकार, धनवान, शक्तिशाली एवं प्रभावशाली को देखकर अपना निर्णय लेने लग जाए तो चिकित्सक के शर्म की बात है। अतः एक आदर्श समाज के लिए चिकित्सा का भी स्वतंत्र निकाय होना आवश्यक है। जहाँ चिकित्सक धनवान व राजवान बनने के सपने नहीं देखें स्वस्थ समाज बनाने में अपना ध्यान दें। अतः चिकित्सा पर भी राजशक्ति व अर्थशक्ति की कुदृष्टि नहीं पड़नी चाहिए। स्वतंत्र चिकित्सकों के पर्षद द्वारा संचालित होनी चाहिए। 

३. चुनाव एवं चयन आयोग - लोकतंत्र की नींव आदर्श जनप्रतिनिधि व कर्मचारी है। आदर्श जनप्रतिनिधि का निर्माण चुनाव आयोग के निष्पक्ष एवं स्वतंत्र स्वरूप पर निर्भर करता है। उसी प्रकार आदर्श कर्मचारी के चयन आयोग का मानक स्तर उन्नत होना आवश्यक है। इसलिए राजशक्ति व अर्थशक्ति के हस्तक्षेप से मुक्त सशक्त चुनाव एवं चयन आयोग की आवश्यकता है। 

४. पुलिस एवं जाँच एजेंसियाँ - लोकतंत्र की सुरक्षा करने पुलिस एवं जाँच एजेंसियों की अहम भूमिका है। इनका आदर्श एवं स्वतंत्र स्वरूप आवश्यक है। राजशक्ति एवं अर्थशक्ति के नियंत्रण में यह कदापि सही दिशा में गमन नहीं कर सकती है। इसलिए इनका आदर्श स्वरूप बनाकर स्वतंत्र निकाय के रूप में रखा जाए। 

५. कला एवं विज्ञान संस्थान - कला तथा विज्ञान राजशक्ति एवं अर्थशक्ति की निर्देशना से मुक्त रखकर स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करें। कला एवं विज्ञान की एक ही पहचान नव्य मानवता एवं वसुंधरा हो। इसलिए उन्हें भी आदर्शवाद का पाठ पढ़ाना आवश्यक है। 

६. साहित्यकार एवं पत्रकार संघ - लोकतंत्र में राज्य को जनता तथा जनता को राज्य दिखाने का काम इस संघ का है। इसलिए इनका राजशक्ति एवं अर्थशक्ति से पृथक तथा स्वतंत्र रहना आवश्यक है। यह स्वतंत्र हो लेकिन बेलगाम न हो। साहित्यकार तथा पत्रकार दोनों ही कलम की ताकत के स्वामी है इनकी कलम मानव मन की गहराई में ऐसे प्रवेश करती है कि उसमें सुन्दर मनुष्य निकाल सकती है। इसलिए इनका राजशक्ति एवं अर्थशक्ति के हस्तक्षेप से मुक्त रखना आवश्यक है। 

७. धर्म एवं आध्यात्मिक परिषद - धर्म एवं आध्यात्मिकता से राजशक्ति एवं अर्थशक्ति का कोई रिश्ता नहीं है। लोकतंत्र ने इसे धर्मनिरपेक्षता कहकर हल्ला मचा रखा है। वास्तव में राजशक्ति एवं अर्थशक्ति का पंथ व मत मतान्तर से दूर रहना तथा सम्प्रदाय एवं महजब के प्रति तटस्थ रहना है। लेकिन अपने धर्म एवं आध्यात्मिकता इनसे उपर उठकर मानवीय मूल्यों की पहचान है। इसे राजशक्ति एवं अर्थशक्ति से पृथक नहीं रखकर एक स्वतंत्र निकाय बनाकर मानव के लिए एक आचरण संहिता तैयार करनी चाहिए। जो सबके हित में हो। आध्यात्मिकता मानव का एक अंग इसके विकास की प्रत्येक स्किल को विकसित करने के एक स्वतंत्र मंच देना आवश्यक है। अतः इसे भी एक राजशक्ति एवं अर्थशक्ति मुक्त संस्थान की तरह विकसित करनी चाहिए। जहाँ दुनिया सभी दार्शनिक एवं धर्म गुरु को एक मंच देकर एक उभयनिष्ठ नियमावली तैयार हो सके। अतः इसका एक संवैधानिक संस्था होना आवश्यक है। 

यह संस्थाएँ संवैधानिक होनी आवश्यक है लेकिन स्वतंत्र निकाय के रूप में विकसित होना आवश्यक है। इससे राज्य का स्वरूप आदर्श बना रहता है।
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