आनन्द मार्ग का यात्रा वृतांत (Travelogue of Anand Marg)


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श्री आनन्द किरण "देव" की दृष्टि में
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आनन्द मार्ग की स्थापना 1955 में हुई थी। तब से लेकर आनन्द मार्ग की यात्रा का एक वृतांत देखा जाए तो आनन्द मार्ग की प्रथम पीढ़ी इतिहास बन चुकी है, द्वितीय पीढ़ी अंतिम पड़ाव की ओर जा है, तृतीय पीढ़ी क्रियाशील है, चतुर्थ पीढ़ी तैयार हो रही है तथा पंचम पीढ़ी धरातल पर आ रही है। इन पांच पीढ़ियों में आनन्द मार्ग की यात्रा का वृतांत सभी को देखना, समझना एवं परखना चाहिए। यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो निस्संदेह उस महान उद्देश्य को सही समझ जाते हैं। आनन्द मार्ग दुनिया का एक मात्र ऐसा रास्ता है जो एक महान उद्देश्य को लेकर बना है। शेष के निर्माण के बाद उद्देश्य जोड़ तथा घटाए गए हैं। अतः हम आनन्द मार्ग के यात्रा वृतांत की ओर चलते हैं। 


आनन्द मार्ग की प्रथम पीढ़ी - प्रथम पीढ़ी में उन लोगों को लिया गया है, जिन्होंने आनन्द मार्ग को बनते देखा है। आनन्द मार्ग का प्रारंभिक काल को प्रथम पीढ़ी में लिया गया है। उस समय के मार्गियों ने बाबा के साथ मिलकर बहुत अधिक परिश्रम करके आनन्द मार्ग की साख आध्यात्मिक नैतिकवान संगठन की बनाई थी। जो भी उस समय के आनन्द मार्गी सरकारी कर्मचारी थे उन्हें एक ईमानदार, आदर्शवादी एवं परिश्रमी माना जाता था। उन्होंने आनन्द मार्ग को सच्चे अर्थों में जिया था। आज यह इतिहास बन चुकी पढ़ी हमारे लिए आदर्श है। उनकी जीवन गाथा आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकती है। मानवता के उन आदर्श प्रतिमानों सदैव जीवित रखने के लिए आनन्द नगर के रास्ते इनके नाम पर समर्पित करने चाहिए। बाबा ने लिखा भी है कि भविष्य में महापुरुषों के नाम पर इनका नामकरण हो जाना है। इनसे बड़े महापुरुष और कौन हो सकते हैं? मैंने आचार्य चन्द्रनाथ जी का वृतांत 'हम न भूलेंगे उन्हें' जो मुझे आचार्य अभिरामानंद अवधूत जी की ओर से स्नेह भेट में मिला था वह पढ़ा है। उसमें आनन्द मार्ग के बारे बहुत सी जानकारी मिली, यह पुस्तक एक मार्गी गढ़ने की स्वयं प्रेरणास्रोत है। उसी पुस्तक में ऋतंभर के नाम से प्रणय कुमार चटर्जी दादा का वृतांत ने आनन्द मार्ग के प्रथम बिन्दु को समझने में मददगार हुआ। बड़ी दुखद बात है कि यह पुस्तक एक सन्यासी द्वारा चोरी करली गई। इस प्रथम पीढ़ी का त्याग एवं समर्पण निस्संदेह उत्साहवर्धक था। 

आनन्द मार्ग की द्वितीय पीढ़ी - इसमें उन मार्गियों को लिया गया है। जो प्रथम पीढ़ी के वंशधर है अथवा आनन्द मार्ग परिपक्व होने के बाद आनन्द मार्ग में आए। इस पीढ़ी के बारे में ज्यादा कुछ पढ़ने को नहीं मिला लेकिन उस पीढ़ी के सन्यासियों, सन्यासिनियों तथा गृही आचार्यों की जीवन शैली देखने से अनुभव होता है कि यह योग्य पीढ़ी के सुयोग्य उत्तराधिकारी थे। आज इस पीढ़ी के दर्शन हो रहे हैं। इनके अनुभवों से वर्तमान में निर्णय लेने के लिए मुखपृष्ठ पर क्रियाशील पीढ़ी के लिए काम आ सकता है। यह दोनों पीढ़ियां सीधे बाबा के भौतिक शरीर से निर्देशित होती थी। इसलिए उनके अनुभव एवं कार्यशैली निस्संदेह वंदनीय है। आज इस पीढ़ी के लोग धीरे धीरे अपनी जीवन यात्रा की पूर्णता की ओर जा रहे हैं। इनमें बहुत से वर्तमान में जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर चिन्तित तथा क्षुब्ध है। एक आशा जरूर बंधा रहे है, परमपुरुष सबकुछ ठीक करेंगे। 

आनन्द मार्ग की तृतीय पीढ़ी - वर्तमान में मुखपृष्ठ पर जो क्रियाशील है। वह आनन्द मार्ग की तृतीय पीढ़ी है। नीति शास्त्र में कहा गया है कि तृतीय पीढ़ी या तो‌ धमाकेदार होती अथवा उदासीन होती है‌। धमाकेदार उन्हें कहते है कि वह नव परिवर्तन में उत्साही होते हैं। दर्शन एवं आदर्श की मजबूत समझ रखते हैं। उसके अनुसार समाज को  देखना चाहती है। जहाँ कमी देखती है, वहाँ संघर्ष करती है। दूसरी ओर उदासीन पीढ़ी भाग्य एवं चमत्कार के भरोसे बैठ जाती है। जो होता है उसे मकदृष्टा बनकर देखती रहती है तथा सबको परमपुरुष ठीक करेंगे, इस आश में समाज के विकास अवरूद्ध होते देखती रहती है। यह किसी को कुटुवचन नहीं कहती है। एक ओर उद्दंड पीढ़ी का भी चित्र सामने आता है, जो हो हुल्ला करनी की हिमायती होती है। इन्हें सर्वत्र कमी ही नजर आती है। इनसे अधिक आश नहीं लगाई जा सकती है। चूंकि हंगामा करना हमारा मकसद नहीं है इसलिए नव परिवर्तन का उबाल होना आवश्यक है, नव परिवर्तन को आदर्श मूलक दिशा में चलते रहना चाहिए। नीति शास्त्र की इस उक्ति में मैं आनन्द मार्ग को नहीं देखता हूँ फिर भी नीतिशास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य था। तीसरे पीढ़ी को भी आने वाले पीढ़ी को विरासत में कुछ छोड़ कर जाना है तथा भविष्य को जबाब देना है। इस पीढ़ी को बाबा के भौतिक शरीर से तो सीधी निर्देशना नहीं मिलती है लेकिन दर्शन, आदर्श, पूर्व पुरुषों की जीवन शैली तथा शास्त्र से निर्देशना मिले अनुभव के आधार पर काम करने के व्यवहारिक आयमा से भलीभाँति परिचित है। यद्यपि आध्यात्मिक दृष्टि से सभी बाबा से सीधा निर्देशन करते हैं तथापि धरती की वास्तविकताओं को अनुभव करना आवश्यक है। 

आनन्द मार्ग की चतुर्थ पीढ़ी - आनन्द मार्ग की चौथी पीढ़ी स्कूल, महाविद्यालय तथा कार्यशालाओं में तैयार हो रही है अथवा तैयार हो चुकी है। समाज में प्रवेश कर रही अथवा प्रवेश करने को तैयार है। इनसे भावी आशा ही कर सकता हूँ। यह पीढ़ी तृतीय पीढ़ी से अधिक उत्साहवान होगी। मैं इस पीढ़ी के जो लक्षण देख रहा हूँ। मेरा अनुभव बताता है कि यह आनन्द मार्ग के सार्वभौमिक आदर्श को बहुत आगे ले जाने में सक्षम है। इस तुफान को सही दिशा देने की आवश्यकता है। द्वितीय पीढ़ी तृतीय पीढ़ी की श्रम शक्ति का सम्पूर्ण उपयोग नहीं कर पाईं लेकिन तृतीय पीढ़ी को चाहिए कि चतुर्थ पीढ़ी को सही दिशा देने के इनकी शक्ति का सही उपयोग करना आवश्यक है। प्रउत आंदोलन को प्रभावशाली बनाकर आने वाली उत्साही पीढ़ी को स्वर्णिम विश्व प्रदान करना तृतीय पीढ़ी की जिम्मेदारी है। 

आनन्द मार्ग की पंचम पीढ़ी - नव शिशु, बालक तथा किशोर के रूप में आनन्द मार्ग को देख रही इस पीढ़ी को पंचम पीढ़ी की संज्ञा दी गई है। आशा है कि यह पीढ़ी प्रउत के विश्व में प्रवेश करेंगी तथा आनन्द मार्ग के आदर्श पर चलते हुए धरती पर स्वर्ग की स्थापना करेंगी। 

आनन्द मार्ग का यात्रा वृतांत लिखने में पीढ़ी का वर्गीकरण कर हमने देखने की कोशिश की कि हम क्या करने निकले थे? क्या किया तथा क्या कर रहे हैं? यह देखना यात्रा वृतांत का काम है कि आने वाले समय में क्या काम होगा अथवा हो सकता है? यात्रा का यह वृतांत यही नहीं रुकता है। भविष्य के दूरगामी परिणामों की ओर भी अपनी दृष्टि को ले चलती है। इसलिए छठी पीढ़ी की भी तस्वीर बनाने की कोशिश करती है। 

आनन्द मार्ग की षष्ठम पीढ़ी - भविष्य के गर्भ छिपी यह पीढ़ी अभी तक धरती पर आनी है। अभी तो पंचम पीढ़ी आ रही है। इसलिए इसके बारे कुछ अधिक कहना मुश्किल लगता है लेकिन नामुमकिन नहीं है। अभी तृतीय पीढ़ी परीक्षा दे रही है। चतुर्थ पीढ़ी का पाठ्यक्रम बन रहा है। किताबें छपेंगे उसके अध्ययन कर परीक्षा देने के लिए तैयार होंगे। पंचम पीढ़ी का पाठ्यक्रम बनने से पूर्व की पृष्ठभूमि का अध्ययन दार्शनिक चालू कर चूके है। इसलिए षष्ठम पीढ़ी की आशा करना मुर्खता नहीं है। आशा तथा लक्षण बता रहे हैं कि पंचम पीढ़ी प्रउत के साम्राज्य में प्रवेश करेंगी। तब षष्ठम पीढ़ी के लिए विश्व आनन्द मार्ग के आदर्श मूर्त रुप देने के लिए तैयार रहेगा। जाति, क्षेत्र एवं मजहबी भेद का दैत्य मर चूका होगा। सदविप्र राज का आदर्श रूप यह पीढ़ी देखेंगी। 

मेरे यात्रा वृतांत पर सभी की राय अनिवार्य अन्यथा पाठक प्रयास विफल रहेगा। 

आपका 

करण सिंह
9982322405
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