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श्री आनन्द किरण "देव"
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भारतीय राजनीति का एक ध्रुव डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर सामाजिक विषमता से संघर्ष करते हुए गायकवाड़ राजघराने के सहयोग से एक उच्च डिग्रीधारी व्यक्तित्व बनकर तात्कालिक सभ्य समाज का अंग बने। तात्कालिक सभ्रांत वर्ग ने डॉक्टर अम्बेडकर को बिना किसी भेद के उचित सम्मान एवं जगह प्रदान की। डॉक्टर अम्बेडकर ने युगों से अस्पृश्यता का दुख झेल रहे दमित एवं पिछड़े वर्ग के उद्धार का जिम्मा उठाया। आज हम युग के इस हस्ताक्षर की संकल्पना का समाज एवं सामाजिक द्वंद पर अध्ययन करेंगे।
डॉक्टर अम्बेडकर ने एक ऐसे मानव समाज की अभिकल्पना की थी जिसमें उच्च निच, छूआछूत, अस्पृश्यता एवं भेद रहित हो, जिसमें शिक्षा, चिकित्सा एवं अवसर प्राप्त करने के सभी को समान अधिकार हो। उन्हें इस समाज को अपनी संकल्पना का मानव समाज का था, जिसमें सभी एक साथ मिलकर चले, सभी एक साथ मिलकर बोले, कोई भी वंचित एवं दमित न हो तथा युग किसी व्यक्ति अथवा किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्रदान नहीं करें। उन्होंने ऐसे समाज निर्माण की आशा भारत सरकार की थी। उन्हें आश थी कि भारत सरकार कानून के बल एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज का निर्माण करेंगी। उन्होंने किसी संगठन अथवा समुदाय को पथ निर्देशना नहीं दी थी कि तुम इस मूल्यों स्थापित करें। आज डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के नाम से तथा उनके विचारों पर आधारित जितने भी संगठन क्रियाशील है, वे सभी उत्तर युग की देन है। इसलिए उन सभी की कार्य प्रणाली, कार्य पद्धति एवं विचारधारा आलोच्य विषय से परें है।
यद्यपि डॉक्टर अम्बेडकर का जीवन संघर्ष एवं अवहेलना से भरा था तथापि एक सभ्रांत व्यक्तित्व द्वारा पूर्ण सहयोग देना प्रथम विचारणीय बिन्दु है। डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को तो सभी जानते है लेकिन भीमराव अम्बेडकर को डॉक्टर एवं बैरिस्टर बनाने में मदद करने वाले उस विश्वकर्मा को किसी न जाना व न परखा। वस्तुतः भीमराव अम्बेडकर जी के नाम तथा विचारों पर जितने भी संगठन बने उन्हें उस व्यक्तित्व ने नाम से बनाने थे, जिसने बाबासाहेब को युगपुरुष बनने में अपनी सोच, विचार, धन एवं सहयोग दिया। हम प्रथमतः उसी जगह पर रुक कर डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर बनाने वाले महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (उर्फ गोपालराव गायकवाड) नामक विश्वकर्मा को नमस्कार करेंगे। यद्यपि प्रथम नमस्कार का अधिकार ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा केशव आम्बेडकर जिन्होंने दलितोद्धार के प्रति सच्ची चाहत दिखाई थी। उन्हें अपना सरनाम आम्बेडकर प्रदान किया। आज अम्बेडकर जी के नाम लेकर एक वर्ग विशेष से धृणा रखने वाली सोच को जानना चाहिए कि उस युग में दलितों के प्रति हमदर्द रखने वाले मिल गए तो आज भी समभाव एवं पिछड़ों से हमदर्दी रखने वाले हजारों दीप प्रज्वलित है। उनकी ओर देखे तथा उनके सहयोग से एक नूतन समाज का निर्माण करना अम्बेडकर का पथ है। न कि नफरती अंगारों से नफरत का अंगार बनकर टकराना। नफरत आग की अहिंसा एवं प्रेम से उनके हृदय परिवर्तन की कोशिश करना डॉक्टर अम्बेडकर का पथ है। समता भाव रखने वाल उन सितारों से मिलकर नये युग की शुरुआत करें।
आओ पुनः डॉक्टर अम्बेडकर के पास चलते हैं। अम्बेडकर के विचारों में एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज था, उनके निर्माण के लिए उन्होंने प्रथम प्रयास दलितों को मुख्यधारा में लाने का किया। जिसको आरक्षण के नाम से हम जानते है। आज के विषम परिस्थितियों में आरक्षण व्यवस्था का रहना आवश्यक है लेकिन इसका स्वरूप अम्बेडकर जी द्वारा गलत ले लिया गया, उनके इस भूल ने समाज नफरत एवं हिंसा का माहौल बना दिया है। पिछड़े एवं गरीबों उद्धार के बिना समतामूलक समाज का निर्माण हो नहीं सकता। डॉक्टर अम्बेडकर जी आरक्षण योजना में जाति नामक योग्यता का समावेश करना मानवतावादी विचारक भूल थी। जिसके चलते एक विषम परिस्थिति बनी, जिसमें एक दृश्य ऐसा बना उसमें मानवता शर्मसार हो जाता है। एक ओर आज भी सदियों से अवहेलना शिकार पिछड़ा एवं युग की मार झेलता है गरीब दो वक्त रोटी के तरसता है, दूसरी ओर मंत्रीजी एवं उच्च अधिकारी जी पुत्र आरक्षण पर अपने जन्म सिद्ध अधिकार का दावा करते है। क्या वे पिछड़ा एवं गरीब की योग्यता रखते हैं? उन्हें आरक्षण की योजना से बाहर क्यों नहीं होना चाहिए? यह अम्बेडकर जी की जातिगत आरक्षण व्यवस्था का दोष है। इसने समाज में रक्तरंजित जातिगत सेनाओं का निर्माण किया है। जो एक दूसरे का रक्त चुषण के लिए उतारूँ है। इसके स्थान पर आरक्षण व्यवस्था में
पिछड़ापन की स्थिति एवं आर्थिक सामर्थ्य को रखना चाहिए। पिछड़ा का अर्थ अवसरों से कोशों दूर एवं गरीबी का सामान्य जीवन रेखा सहस्त्र कदम दूर है उन्हें रखना चाहिए था। जब तक समाज में प्रगतिशील उपयोग तत्व स्थापित नहीं हो जाते है तब तक पिछड़े एवं गरीब के हित में विशेष व्यवस्था लेनी होती है। मानवता के इस शिल्पकार की भूल को सुधार कर आरक्षण में पिछड़ापन एवं गरीबी को ही समावेश करना चाहिए।
डॉक्टर अम्बेडकर जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता में तनिक भी विश्वास नहीं करते थे, उनके विचार में एक मानव समाज समावेश था। संविधान निर्माण कार्य में एक मुख्य जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी मानवता के इस मसीहा को संविधान एक विधि के शब्दकोष से जाति एवं सम्प्रदाय शब्द का ही उन्मूलन करना था। यह उनके दूसरी बड़ी भूल थी, जिसके कारण भारत सरकार चाहकर भी एक मानव समाज की नींव नहीं रख पा रही है। अम्बेडकर जी का भेदभाव से हताश होकर हिन्दू मत का परित्याग कर बौद्ध धर्म में जाना दुखों से पलायन होना है। उन्हें एक सच्चा मानव बनकर भेदभाव के इस घोसले नोंच देना था। यह वीरोचित कार्य होता, कुव्यवस्था से टकराने की बजाय कुप्रथा से बचकर अन्य घर जाना कीर्ति बढ़ाने वाला कदापि नहीं हो सकता है। मानवता के इस सिपाही के प्रति संपूर्ण आदर रखते हुए साहसपूर्वक कहता हूँ कि बाबासाहेब के हिन्दू मत से भागकर बुद्धम् शरणं गच्छामि कदापि उचित कार्य नहीं था। मैं इसका समर्थन नहीं कर सकता हूँ। भागना किसी समस्या का हल नहीं है। लडना ही समस्या उचित समाधान है। जीवन भर कुप्रथा से लड़ने वाले इस योद्धा जीवन के उतरार्ध में यह भूल कैसे की? यह विचारणीय विषय है।
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जी को दलितों का मसीहा कहाँ जाता है लेकिन उनके विचार मानवता में समाविष्ट होने योग्य थे। उनके पिछड़ा के उद्धार की बात समाज द्वारा अस्पष्ट सुनी गई। वे मुख्यधारा में लाने के लिए पिछड़ों को बैशाखी देना चाहते लेकिन उनकी इस बैशाखी को लेकर सरकारी कर्मचारी, धनाढ्य, उच्च अधिकारी, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, महामहिम राज्यपाल, महामहिम न्यायधीश तथा महामहिम राष्ट्रपति जी भी उसी बैशाखी को दिव्यास्त्र मान लेना बहुत बड़ी गलत मान्यता है। इसके चलते मानवता का मसीहा दलितों का मसीहा मात्र बनकर रह गया। जो उनके व्यक्तित्व के साथ सही न्याय नहीं है।
यद्यपि अम्बेडकर के नाम पर बनने सभी संगठन की कार्यपद्धति एवं विचार विषय की परिधि में नहीं है तथापि उनकी उपलब्धियों का मूल्यांकन आवश्यक है। यह संगठन मात्र अम्बेडकर का नाम निजी हित में ले रहे है, डॉक्टर अम्बेडकर जी के खातिर कोई भी संगठन काम करता नहीं दिखाई दे रहा है। अत: उनकी उपलब्धियों को डॉक्टर अम्बेडकर के विचारों को दफन करने वाली ही कह सकते हैं।
डॉक्टर अम्बेडकर के साथ सही न्याय नहीं हुआ इसके जिम्मेदार कौन पर मंथन कर विषय को पूर्णाहुति देते है। स्वयं डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जी, उनके अनुयायी तथा उनके कारण सुविधाओं का लाभ प्राप्त करने वाले सभी जिम्मेदार है। इसलिए इस महा मानव आज भी सच्ची श्रद्धांजलि नहीं मिलती है, उनकी प्रतिमाओं टूटने का सदैव डर सताता है।
आज समाज में दमित सवर्ण की तथा सवर्ण दमित की प्राणा शक्ति निगलने सा वातावरण बन रहा है, जिसके जिम्मेदार वे लोग है जो अम्बेडकर के प्रति सही एवं परिपक्व सोच नहीं रखते है।
आओ मिलकर एक नया समाज बनाते जिसमें नव्य मानवता एवं आनन्द मार्ग दर्शन की खुश्बू सदैव बनी रहे। जातिगत एवं साम्प्रदायिक सेना नहीं विश्व शांति सेना का निर्माण करते हैं। VSS के संग नव्य मानवतावाद की लड़ाई का शंखनाद करते हैं।
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