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श्री आनन्द किरण "देव"
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डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस के, मुस्लिम लीग के प्रति अस्पष्ट रुख से खफा होकर, भारतीय संस्कारों से ओतप्रोत भारत निर्माण का संकल्प लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक संगठन की नीवं रखी। उन्हें इस कार्य में माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर का साथ मिला। वे समाज तथा युवाओं पर अच्छी पकड़ रखते थे। इन दोनों के भारत में जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता का कोई स्थान नहीं था। उन्होंने जिस भारत की नीवं रखी उनमें भारतीय संस्कार का समावेश होना था तथा जिनका निर्माण भारत की सभ्यता एवं संस्कृति से होना था, जिन्हें जैन, बौद्ध, शक, हूण, कुषाण, अरब, फारसी, तुर्क, मुगल एवं युरोपीय लोगों ने विकृत करने की चेष्टा की थी। भारतवर्ष के उन मूल्यों का पुनरुत्थान करने का बीड़ा युग के इन पुरोधाओं ने उठाया था। उसको अमली जामा पहनाने का जिम्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कंधों पर डाला गया, जिन्हें शाखाओं के माध्यम से हर भारतीय के मनमस्तिष्क में बिठाना था। इस दुर्गम पथ को सरलता से हासिल करने की मंशा से जनसंघ नामक राजनैतिक पार्टी का निर्माण किया गया। आज वही जनसंघ भारतीय जनता पार्टी के रुप में मोदी नामक एक प्रोजेक्ट का सहारा लेकर भारतीय सत्ता पर काबिज है। बताया जाता है कि मोदी नामक प्रोजेक्ट के निर्माता अमित शाह हैं, जो जाति व पेशे से बनिया हैं। इस ब्रांड का निर्माण करने में अमित शाह ने अपनी संपूर्ण शक्ति लगाई तथा उन्हें यथार्थ में परिणत किया। इससे पूर्व राम मंदिर के नाम पर भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय राजनीति में भारी उछाल को प्राप्त किया तथा भारत की सुप्त राष्ट्रीय चेतना को जगाने में सफल हुए। इससे पूर्व जनसंघ ने सत्ता में आने के लिए अपना अस्तित्व ही जनता पार्टी में मिला दिया था।
प्रश्न यह है कि डॉक्टर हेडगेवार तथा गुरु गोलवलकर के सपनों का भारत बना अथवा बनने में ओर अधिक समय है अथवा वर्तमान परिदृश्य उनके सपनों से भटक तो नहीं गया है?
इन प्रश्नों के उत्तर की खोज में सबसे पहले हम प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता एवं संस्कृति के पास चलते हैं। भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति नर में नारायण प्रकट करने वाली थी तथा समाज को संगच्छध्वं के आधार पर चलाया था। जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम व सर्वे भवन्तु सुखिनः का आदर्श समाया हुआ था। इस भारतवर्ष के संस्कारों की नीवं साधना, सेवा एवं त्याग से रखी गई थी। साधना आध्यात्मिक विकास, त्याग मानसिक विकास तथा सेवा भौतिक विकास में निहित थी। इसलिए भारतीय संस्कृति व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास को सर्वांगीण विकास की उपमा दी थी। इसी प्रकार समाज के भी भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए सम सामाजिक तत्व पर आधारित अर्थव्यवस्था पर हस्ताक्षर किए थे।
*डॉक्टर हेडगेवार का सपना एवं सपने को यथार्थ में परिणत का मार्ग* - डॉक्टर हेडगेवार का सपना, भारतवर्ष की महान संस्कृति पर आधारित राष्ट्र के निर्माण का था। उसे यथार्थ में परिणत के लिए हिन्दू नामक शब्द का प्रयोग किया गया; जिसे हिन्दू राष्ट्र नाम दिया गया। कालांतर में हिन्दू राष्ट्र के फारमूला में अखंड भारत, धारा 370, समान आचरण संहिता एवं राम मंदिर जुड़ गए। सत्य यह है कि डॉक्टर हेडगेवार के सपनों का भारत विशुद्ध भारतीय संस्कारों से ओतप्रोत था, जिसे पूरी दुनिया को हिन्दूस्तान के रूप में दिखाया गया। यह हेडगेवार की भूल थी अथवा सच्चाई, उसकी अग्नि परीक्षा लिए बिना वर्तमान परिदृश्य में डॉक्टर हेडगेवार के सपने को सही ढंग से नहीं समझा जा सकता है। यद्यपि हिन्दू शब्द को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दार्शनिकों ने शुद्ध एवं विशुद्ध संस्कृत शब्द बनाने में अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दी तथापि यह सत्य है कि हिन्दू शब्द फारसी (ईरानी) के अशुद्ध उच्चारण का परिणाम है। जिसका अर्थ - *सिन्धु अफवाह क्षेत्र* में रहने वाले लोग से है। जिसे विस्तृत रूप से संपूर्ण भारत राष्ट्र में रहने वाले लोग कहा जा सकता है। भारत राष्ट्र में रहने वाले लोगों के लिए शुद्ध संस्कृत शब्द 'भारतीय' है। इस शब्द को न लेकर डॉक्टर हेडगेवार ने हिन्दू शब्द लिया यह उनकी ऐतिहासिक भूल थी क्योंकि हिन्दू शब्द युग की थप्पड़ों में एक साम्प्रदायिक शब्द बन गया था। डॉक्टर हेडगेवार के विचार किसी भी कोने में, सुप्त अवस्था में भी साम्प्रदायिक नहीं थी। फिर एक साम्प्रदायिक शब्द को आदर्श बनाना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सार्वभौमिक बनने नहीं दिया। जबकि भारत शब्द, भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति व भारतीय संस्कार सार्वभौमिक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लाख दलीलों के बावजूद भी हिन्दू शब्द में से जैन, बौद्ध, सिख, पारसी, यहुदी, इस्लाम एवं ईसाई शब्द अलग ही रह जाते हैं। इसके विपरीत भारतीय शब्द में से, लाखों कोशिशों के बावजूद भी, किसी को अलग नहीं किया जा सकता है। हाँ, भारतीय संस्कृति में से राष्ट्र की सीमा रेखा की दुहाई देकर कुछ समय के लिए अन्य राष्ट्रों को दूर रखा जा सकता था। लेकिन विश्व बंधुत्व पर किया गया कार्य उस कुचेष्टा को धूमिल कर देता।
डॉक्टर हेडगेवार की दूसरी भूल आध्यात्मिक विकास के प्रति उदासीन रहना है। उन्होंने स्वयंसेवक के शारीरिक विकास पर पूर्ण ध्यान दिया तथा मानसिक विकास को भी अपने विचारों के मुताबिक गढ़ने का प्रयास किया लेकिन आध्यात्मिक विकास को अपने पाठ्यक्रम से बाहर रखना, उनकी अपूरणीय भूल थी। भारतवर्ष आध्यात्मिकता के कारण महान है तथा विश्व गुरु कहलाता था। आध्यात्मिक उन्नयन के अभाव में न तो नर में नारायण प्रकट हो सकते हैं और न ही समाज संगच्छध्वं के पथ पर चल सकता है। डॉक्टर हेडगेवार तो राजनीति के पृष्ठभूमि से निकले योद्धा थे लेकिन गुरु गोलवलकर तो आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से आये थे, फिर यह ऐतिहासिक भूल कैसे कर बैठे यह विचारणीय विषय है।
गुरु गोलवलकर की एक ऐतिहासिक भूल ने डॉक्टर हेडगेवार के आंदोलन को गलत दिशा दे दी। वह राजनैतिक तौर तरीकों से भारत के निर्माण के लक्ष्य को हासिल करने में।प्राथमिकता दी। राष्ट्र का निर्माण राजनैतिक सत्ता की चार दीवारों का रुप नहीं होता है। राष्ट्र सभ्यता, संस्कृति एवं जीवन शैली का एक सम्मिलित रुप होता है, जिसका निर्माण एक मजबूत आर्थिक सामाजिक आंदोलन की आधारशीला पर होता है। आज अखंड भारत का सपना भारतीय सेना के बल पर देखने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। यदि गोलवलकर ने डॉक्टर हेडगेवार के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को एक सामाजिक आर्थिक आंदोलन का रुप प्रदान किया होता तो कई भूलों के बावजूद भी भारतीय संस्कारों के नजदीक बढ़ सकते थे। राजनीति की धूल कभी भी एक समाज का निर्माण नहीं करने देती है। इसलिए कार्यकर्ताओं (वोलेंटियर्स) को सामाजिक आर्थिक आंदोलन के पथ पर ले चलना था। गुरु गोलवलकर को आध्यात्मिक की माला से स्वयंसेवकों को विभूषित करना था। यदि उन्हें डर था कि एक साधना पद्धति से संपूर्ण भारतीयों को एकता के सूत्र में नहीं बांधा जा सकता है तो उन्हें उन सभी साधना पद्धतियों को अंगीकार करनी थी, जिससे नर नारायण बनकर प्रकट हो सकें।
गुरु गोलवलकर एवं डॉक्टर हेडगेवार की एक और भूल यह थी कि जो उन्हें सपनों के भारत से दूर ले गया, वह ध्वज गुरु की दिशाहीन अभिकल्पना है। भारतीय दर्शन व्यक्ति तथा समाज के गुरु की अवधारणा ब्रह्म गुरु रुप में देता है। उसके स्थान पर एक पताका को गुरु मानना एक भूल है। पताका एक संकल्प है लेकिन सिद्धि नहीं जबकि सदगुरु संकल्प एवं सिद्धि दोनों ही हैं। उनके हस्ताक्षर से संकल्प पत्र लिखा जाता है तथा उनके हस्ताक्षर से संकल्प सिद्ध भी होता है। संकल्प रहे लेकिन सिद्धि नहीं हो रहे तो व्यक्ति पूर्णत्व को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इसके अभाव में भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना, दिवास्वप्न मात्र है।
अब दीनदयाल उपाध्याय की ओर चलते हैं। दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ के नेता थे, जिन्होंने आरएसएस के परिवार के लिए दर्शन का निर्माण किया था। इस शिल्पकार ने एकात्म मानववाद तथा अन्त्योदय की अभिकल्पना दी। एकात्म मानववाद ने दर्शन के मूल में व्यक्ति को स्थापित किया तथा उससे एक वर्तुल चित्र का निर्माण किया। इस चित्र का परिक्षण कर विश्व गुरु भारत एवं भारत महान के रेखाचित्र का अवलोकन करते हैं। भारत का ज्ञान विज्ञान बताता है कि दर्शन के मूल में परम चैतन्य ब्रह्म है। व्यक्ति उसी लक्ष्य की ओर चलता एक पथिक है। जिसका पथ आनन्द मार्ग है। परिवार व समाज का निर्माण व्यक्ति द्वारा किया जाता है तथा यह व्यक्ति का निर्माण करता है। इसलिए इनमें से पहले कौन आया मुर्गी एवं अंडे का विवाद जिसका हल खोजना मन के सामर्थ्य के परे है। अत: व्यक्ति केन्द्रित एकात्म मानववाद का वृतचित्र दिग्भ्रमित चित्र है। दीनदयाल जी का दर्शन अप्रमाणित होने के बाद अब अन्त्योदय के चित्र को देखते हैं। अन्तिम व्यक्ति का उदय को अन्त्योदय नाम दिया गया। अंतिम व्यक्ति कौन? इस प्रश्न का उत्तर ही अन्त्योदय का भविष्य तय करता है। दीनदयाल उपाध्याय जी के अनुसार विकास एवं अवसर से कोसों दूर व्यक्ति, उनका अन्तिम व्यक्ति है। उसे प्रथम पर लाना ही अन्त्योदय है। यह साम्यवाद जैसी कल्पना है। साम्यवाद में अन्तिम व्यक्ति को सर्वहारा कहा गया था। अन्तिम व्यक्ति प्रथम आ सकता है, इसमें कोई दो राय नहीं है। जहाँ साम्यवाद संपूर्ण सर्वहारा वर्ग को आगे लाना चाहता है वहीं अन्त्योदय एक अथवा एकाधिक व्यक्ति को प्रथम लाता है। दोनों में ही सर्वजन हित एवं सर्वजन सुख का स्थान नहीं है इसलिए इसे संपूर्ण कल्याणकारी सामाजिक आर्थिक दर्शन नहीं कहा जा सकता है। वास्तव में अन्त्योदय के लिए प्रगतिशील उपयोग तत्व की आवश्यकता है। दीनदयाल उपाध्याय जी ने जिस दर्शन एवं विचाधारा का निर्माण किया वह व्यक्ति तथा समाज का कल्याण नहीं कर सकता है, इसलिए वह पूंजीपतियों की चरणों में समाज को समर्पित कर देता है। पूंजीवाद अपना विकराल स्वरूप का दर्शन पहले ही करा चुका है। अत: डॉक्टर हेडगेवार जी का सपना दीनदयाल जी के विचारों में गुम हो गया।
अब भारतीय जनता पार्टी के डोगमा ( भाव जड़ता) केन्द्रित फिलोसोफी की ओर चलते हैं। प्रख्यात सामाजिक आर्थिक चिंतक श्री प्रभात रंजन सरकार ने बताया है कि व्यक्ति केन्द्रित, पदार्थ केन्द्रित तथा डोगमा केन्द्रित फिलोसोफी कभी भी समाज का उद्धार नहीं कर सकती है। समाज के उद्धार के लिए मात्र भगवान केन्द्रित फिलोसोफी की ही आवश्यकता है। भाजपा ने इसका वरण करने के स्थान पर डोगमा केन्द्रित फिलोसोफी का वरण किया इसलिए वह कभी भी डॉक्टर हेडगेवार के सपनों का भारत नहीं दे सकती है। भारत के विश्व गुरु या महान बनने के स्वप्न का मूलमंत्र भगवान केन्द्रित फिलोसोफी में निहित है। भारतीयों का प्राण धर्म ही आध्यात्मिकता है। उसके प्राणधर्म को भाव जड़ता में जकड़ने की कोशिश करना राक्षसी कार्य है।
डॉक्टर हेडगेवार के सपनों के भारत को अटल बिहारी वाजपेयी की जीवन शैली की ओर ले चलते हैं। डॉक्टर हेडगेवार के सपने को जन गण मन में फैलाने का कार्य राजनीति के इस ध्रुवतारा ने किया। वह सदैव एक ध्रुव बनकर जिये। इनसे बड़ा सदचरित्र भाजपा एवं संघ परिवार में नहीं दिखाई दिया है। इसलिए इनकी जीवन शैली को जानकर भी डॉक्टर हेडगेवार के सपनों के भारत को देख सकते है। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में एक आदर्श चरित्र के रुप में रहे लेकिन उनके वाक्यांश; 'मैं अविवाहित हूँ लेकिन ब्रह्मचारी नहीं' और शराब से उनके लगाव की नजदीकी लोगों द्वारा पुष्टि, इस ध्रुवतारा पर एक दाग लगा जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सबसे आदर्श पात्र के जीवन का अवलोकन यह समझाता है कि इनके स्वयंसेवक की जीवन शैली में आहार, आचार व विचार में पवित्रता की आवश्यकता अनिवार्य नहीं है। जबकि डॉक्टर हेडगेवार के सपनों में प्राचीन भारतीय संस्कारों एवं नैतिक मूल्यों का गहन समावेश है। अत: यह भी संघ की अद्वितीय भूल है। उन्होंने आदमी को मनुष्य बनाने वाली नैतिकता को महत्व नहीं दिया। उसके अभाव में देवभूमि भारत का निर्माण नहीं हो सकता है तथा इसके बिना विश्व गुरु तथा महान भारत नहीं बन सकता है।
विषय के अंत में वर्तमान परिदृश्य को देखकर विषय का मूल्यांकन करते हैं। वर्तमान परिदृश्य नफरत का बाजार सजा रहा है इससे राजनीति के समीकरण तो इधर उधर हो सकते हैं लेकिन समाज में विश्वास एवं भाईचारा कदापि स्थापित नहीं हो सकता है। जबकि डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार व माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के सपने में नफरत का बाजार था ही नहीं। वहाँ मोहब्बत की दुकान सजाई गई थी। मानवता के प्रति सच्चा स्नेह भारतीय संस्कृति का अंग है। ऐसा भारत ही 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' को पुष्ट करता है। हिन्दू मुस्लिम, ऊंच-नीच, जातपात व साम्प्रदायिक द्वंद का परिवेश एक दूसरे के प्रति अविश्वास को जन्म देता है। अपने स्वार्थ के कारण तैयार किया गया ओसामा बिन लादेन अमेरिका के लिए ही भस्मासुर बन था। हम अपने संकीर्ण स्वार्थ की सिद्धि के लिए आज जिन उपकरणों का उपयोग करते हैं कल वे स्वयं के लिए आत्मघाती हो सकते है।
उपसंहार में मैं यही कह सकता हूँ कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच, कथनी एवं करनी में एकरूपता नहीं है इसलिए डॉक्टर हेडगेवार के सपनों का भारत यह नहीं दे सकता है। इसके लिए स्वयं डॉक्टर हेडगेवार, गुरु गोलवलकर सभी सरसंघचालक एवं सभी स्वयंसेवक जिम्मेदार है।
आओ मिलकर VSS का निर्माण करते है, जहाँ विश्व सर्वेभवंतु सुखिनः, विश्व बंधुत्व एवं विश्व परिवार दिखाई देगा।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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