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श्री आनन्द किरण "देव"
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अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की गारंटी देने के साथ प्रउत ने दुनिया के नैतिक वादियों को एक होकर संघर्ष करने के पथ का चयन किया है। इस संघर्ष को सामाजिक आर्थिक आंदोलन नाम दिया गया है जिसका सबसे प्रचलित नाम समाज आंदोलन है। समाज आंदोलन एक व्यवहारिक प्रक्रिया है, जो विश्व के जन गण मन को सर्व भवन्तु सुखिनः में प्रतिष्ठित करता है। इसके लिए प्रउत समाज को अपने जिम्मेदारी से अवगत कराता है। समाज आत्मसुख से चलने के लिए नहीं बना है, अत: समाज का कोई आत्मसुख की अवधारणा देकर अपनी जिम्मेदारी से मुख नहीं सकता है। प्रउत के ज्ञान के अभाव में समाज मनुष्य को अपने गैर जिम्मेदाराना व्यवहार एवं कर्म से नहीं रोक पाया। जिसके कारण मनुष्य एवं समाज दोनों की दिशाहीन हो गए। प्रउत ने मनुष्य तथा समाज को दिशा देने का जिम्मा अपने कंधों पर लिया है। जिसकी व्यवहारिक अभिव्यक्ति समाज आंदोलन है। समाज आंदोलन विश्व को सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं आर्थिक विकास के आधार पर विभिन्न इकाइयों में बांटकर उसे आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनाने के व्यवहारिक योजना पर कार्य करने को तैयार करता है।
*समाज आंदोलन की कार्य योजना*
1. समाज इकाई का संगठन - समाज इकाई क्षेत्र के स्थानीय नैतिकवान नागरिकों को लेकर समाज का इकाई का संगठन किया जाता है। यह संगठन उस समाज की काया पलट ने भार अपने कंघों पर लेता है। इसमें जाति, सम्प्रदाय, नस्ल, लिंग, मार्गी अमार्गी का कोई भेद नहीं रहता है। यही प्रथम दृष्टि में समाज इकाई का सदविप्र बोर्ड होता है।
2. सांस्कृतिक जागरण - समाज इकाई आंदोलन के प्रथम चरण में स्थानीय संस्कृति, भाषा एवं इतिहास के आधार पर एक मजबूत सांस्कृतिक आंदोलन चलाती है। स्थानीय भाषा में प्रउत आधारित गीतों, कविताओं, नाटकों, कहानियों, स्लोगनों से सम्पूर्ण समाज को रंग देता है। जिससे समाज अपने खातीर काम करने को उठ खड़ा होता है। समाज इकाई को काम करने वालों फोज मिल जाती है। इनको टीमों में बांटकर प्रउत का प्रचार जन गण मन में करते हैं।
3. आर्थिक सुदृढ़ीकरण - समाज आंदोलन के दूसरे क्रम में आर्थिक सुदृढ़ीकरण की ओर फोकस किया जाता है। प्रउत जो बातें कहता है। उसे अमली जामा पहने का नाम ही आर्थिक सुदृढ़ीकरण है। आर्थिक सुदृढ़ीकरण के बल ही मनुष्य का आत्मसुख के स्थान पर सम सामाजिक की ओर चलना सुनिश्चित होता है। इसे प्रउत का व्यावहारिक रूप भी कहा जा सकता है। यहाँ प्रउत समाज को दिखाई देने लगता है तथा समाज आंदोलन के सभी स्वयंसेवकों एवं कार्यकर्ताओं को समाज के खातिर करने को काम मिलता है।
4. सामाजिक नवीनीकरण - समाज आंदोलन के तीसरे क्रम में रुग्ण मूल्यों पर खड़े समाज को ढ़ाह नवीन तथा प्रगतिशील मूल्यों पर समाज के ढाचे को तैयार करना है। जब तक समाज जाति, सम्प्रदाय, नस्ल, लिंग, क्षेत्र, अमीर, गरीबी के भेद पर खड़ा होगा तब तक समाज बन नहीं सकता है। इसलिए समाज को नव्य मानवतावादी मूल्यों पर खड़ा करने की योजना को मूर्त रुप दिया जाता है।
5. व्यवस्था परिवर्तन की ओर - समाज आंदोलन चतुर्थ चरण में संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई का शंखनाद करेंगा। छात्र संघ, युवक संघ, किसान संघ, मजदूर संघ व बुद्धिजीवी संघ अपने अपने कार्य क्षेत्र में मजबूत से जर्जर व्यवस्था के विरूद्ध छीना तानकर खड़ा हो जाएगा। दकियानूसी व्यवस्था को मिटाकर आनन्द मार्गीय व्यवस्था प्रदान करेंगा।
6. सदविप्र राज की स्थापना - समाज आंदोलन अपने अंतिम क्रम में सदविप्र राज की स्थापना के संकल्प को पूर्ण करेंगा तथा विश्व सरकार की स्थापना करेंगा।
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विश्लेषक
श्री आनन्द किरण "देव"
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