*यशवंत सिन्हा बनाम नरेंद्र मोदी*
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✒करण सिंह शिवतलाव की कलम से
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भारतवर्ष में राष्ट्रपति के चुनाव हो रहे है, जिसमें एक रोचक मुकाबला बनाने की कोशिश दोनों पक्षों एवं मीडिया की ओर से चल रही है। आरंभ में यह मुकाबला सुश्री ममता बनर्जी बनाम नरेंद्र मोदी था। लेकिन आज यह मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम यशवंत सिन्हा बन गया है। लेकिन होना चाहिए था द्रोपदी मुर्मू बनाम यशवंत सिन्हा। यद्यपि हम सभी जानते है कि यह मैंच फिक्स है, तथापि संवैधानिक मजबुरी चुनाव लड़ रही है। पहले ही कहा जा चुका है कि यहाँ वोटर को स्वतंत्र इच्छा शक्ति से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, वे सभी एक डोर से बंधे बटन मात्र है, जिसे पार्टी आलाकमान दबाते है।
यशवंत सिन्हा, द्रोपदी मुर्मू से प्रथम उम्मीदवार है। द्रोपदी मुर्मू यशवंत सिन्हा का प्रतिउत्तर अथवा तोड़ भी नहीं है। वह तो राजनैतिक शतरंज की चाल एक पेंदा है। जिस चलकर आदिवासियों का वोट बैंक तैयार करना है। राजनीति में इस प्रकार के पैतरें नये नहीं हैं।
ममता बनर्जी, नरेंद्र मोदी को टक्कर देना चाहती है लेकिन यह टक्कर भाजपा के द्वारा पश्चिम बंगाल जीतने के जितने नाजायज तरीकों से जन्म लिया है। राजनीति में हर दल जनमत को अपने पक्ष में करना चाहता है लेकिन उसके लिए अनुपयुक्त रास्ते का चयन करना गंदी राजनीति को जन्म देती है। यह बात तो नरेंद्र मोदी बनाम ममता बनर्जी में हुई लेकिन यशवंत सिन्हा बनाम नरेंद्र मोदी मुकाबला क्यों यह इस आलेख का रोचक बिन्दु है।
यशवंत सिन्हा की लंबी प्रशासनिक यात्रा के बाद राजनैतिक पारी की शुरुआत हुई है,जिसमें जनता पार्टी, जनतादल के रास्ते होकर भाजपा में प्रवेश हुआ जबकि नरेंद्र मोदी की यात्रा एक विचारधारा जिसके सांचे से उन्हें तैयार किया गया, उसके प्रचारक की रही है तथा उसी रास्ते भाजपा के संग राजनैतिक यात्रा की शुरुआत हुई है। लेकिन यह टकराव का कारण नहीं रहा है।
नरेंद्र मोदी बनाम यशवंत सिन्हा की शुरुआत नरेंद्र मोदी द्वारा एक नीति के तहत भाजपा के उम्र दराज़ नेताओं को बलांत सेवानिवृत्त से रही है, यद्यपि इसमें यशवंत सिन्हा को तो पुरुस्कार के रुप में पुत्र उनके जयंत सिन्हा को केन्द्रीय मंत्री मंडल में जगह मिली है। बलांत सेवानिवृत्त का परिणाम सबकुछ सामान्य होने पर भी अच्छा नहीं होता है। यदि नियम पहले से ही बना हो तो व्यक्ति मानसिक रुप से तैयार रहता है। मगर अकस्मात बना नियम थोड़ा दर्द देने वाला होता है। नरेंद्र मोदी की इस नीति के शिकार लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी भी हुए है। उनका भारतीय जनता पार्टी के लिए किया गया कार्य मनो पैरों तले कुचल ने कार्य हुआ हो। यशवंत सिन्हा का तन व मन सेवानिवृत्त होने को तैयार नहीं थे तथा उन्होंने नरेंद्र मोदी की कार्यशैली पर सवालिया निशाना लगाना शुरू किया मगर नरेंद्र मोदी अपनी विजय यात्रा में मस्त होकर हर विरोध को नजरअंदाज करते हुए अपने मानस के भारतवर्ष की तस्वीर उकेरने में लगे रहे, जब मार्गदर्शक मंडल में बैठा व्यक्ति मुकदृष्टा बन जाता है, तो दर्द तो होता है। यशवंत सिन्हा के सुझाव मूलक सवाल अब राजनैतिक मतभेद का रुप धारण करने लगे, जिससे यशवंत सिन्हा की भाजपा से दूरियाँ बढ़ गई तथा उनकी राजनैतिक यात्रा का एक कदम तृणमूल कांग्रेस की ओर बढ़ गया। वहाँ से यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद की चुनाव लड़ाई की रणभूमि मिली, लेकिन नरेंद्र मोदी तो अपनी मायावी शक्ति में मस्त है इसलिए योग्यता तथा विचारशील मानसिकता की उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने द्रोपदी मुर्मू को एक राजनैतिक अस्त्र के रुप में देश के समक्ष खड़ा किया है। यशवंत सिन्हा को रोकने के लिए सभी दावपेच के पैतरों का उपयोग जारी है। इसमें छल बल भी नाजायज नहीं है। इसलिए यह लड़ाई यशवंत सिन्हा बनाम द्रोपदी मुर्मू न बनकर यशवंत सिन्हा बनाम नरेंद्र मोदी बन गई है। यशवंत सिन्हा इस लड़ाई में पुरा जोर तथा अपने सोच देश के समक्ष रख रहे है। इसके जबाब में द्रोपदी मुर्मू के पास कोई योजना नहीं है। यशवंत सिन्हा की चुनाव प्रचार की कार्यशैली भारतीय चिंतनशील मन के समक्ष एक विचार रख रही है कि राष्ट्रपति पद नाममात्र की कार्यपालिका होने के बावजूद भी इस पर आसीन व्यक्ति राष्ट्र व समाज निर्माण के क्षेत्र तथा लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा बहुत कुछ कर सकता है। यशवंत सिन्हा, नरेंद्र मोदी के समक्ष कोई खतरा अथवा चुनौती नहीं बन जाए, इसलिए लड़ाई यशवंत सिन्हा बनाम नरेंद्र मोदी जारी है। यहाँ पाठक के मन में प्रश्न उठ सकता है कि नरेंद्र मोदी ने यशवंत सिन्हा के विपक्ष में एक भी शब्द नहीं बोला फिर यह लड़ाई यशवंत सिन्हा बनाम नरेंद्र मोदी कैसे हो सकती है। यह प्रश्न निस्संदेह महत्वपूर्ण एवं जायज़ है। नरेंद्र मोदी ने केशुभाई पटेल, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी तथा अन्य भाजपा नेताओं के विरुद्ध एक भी शब्द बोले बिना लड़ाई लड़ी है तथा उन्हें पराजित करने में दमखम लगा दिया था। यह उनकी रणशैली है, जिसमें अपना मकसद पुरा करना होता है। यह लड़ाई भी कुछ इस प्रकार की ही है, वे जानते है कि यहाँ मतदाताओं के मन में परिवर्तन लाना नहीं है। यहाँ तो राजनैतिक समीकरण संतुलित करने होते है। जिसमें नरेंद्र मोदी के सिपहसालार अमित शाह माहिर है।
विषय के अंत में लड़ाई यशवंत सिन्हा बनाम नरेंद्र मोदी करार देते हुए राष्ट्रपति पद पर बैठा व्यक्ति देश में जन आंदोलन, समग्र क्रांति तथा बड़ा विप्लव लाने में सक्षम है तथा बहुत कुछ करने में एक सक्षम पद है।
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करण सिंह शिवतलाव
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