सामाजिक समाज आंदोलन -02 ( सामाजिक संगठन)

आज की चर्चा का विषय है सामाजिक समाज आंदोलन अर्थात सामाजिक संगठन। प्रातःकालीन सत्र में सामाजिक जागरण की चर्चा की थी, अभी सामाजिक संगठन पर चर्चा करते है। प्रउत के समाज चक्र को मात्र पढ़-पढ़ा कर हम आगे जाते है, उस पर व्यवहारिक चर्चा कम ही होती है। इसलिए आज प्रयास किया जाए कि सामाजिक संगठन पर चर्चा करें। 

1. समाज में चार वर्ण रहेंगे, ऐसा प्रउत कहता है। यह वर्ण जाति के सूचक नहीं होंगे ऐसा आनन्द मार्ग आदर्श में निहित है। अत: वर्तमान युग में जाति, मजहब व नस्ल के नाम पर चल विमर्श के बीच प्रउत को अपना समाज दिखाना है, उसकी रुपरेखा खिंचकर तैयार करनी प्राउटिस्टों का दायित्व है। क्योंकि बिना समाज चक्र के तो प्रउत की संरचना अपूर्ण है। देखा गया है कि कतिपय वक्ता वर्तमान मोदी राज प्रउत को क्षत्रिय युग बताता है, तो कतिपय वक्ता इस युग को वैश्य शोषण की पराकाष्ठा बताते है, इसलिए सामाजिक संगठन के कुछ नियम बनाने चाहिए। 

2. सदविप्र समाज चक्र की धुरी एवं समाज के मुकट मणी है, लेकिन प्रायः कहा जाता है कि अब तक एक भी सदविप्र नहीं बना है, तो फिर सदविप्र बोर्ड कैसे बनेगा एवं कैसे समाज आंदोलन को निर्देशित किया जाएगा, इसलिए सदविप्र की पहचान आवश्यक है। सदविप्र निर्माण की दिशा में सामाजिक समाज आंदोलन को ले जाना होगा। 

3. प्रउत दर्शन में क्रांति व विप्लव की अवधारणा आती है। क्या यह समाज के लिए आपातकाल अथवा संक्रमण काल है, यदि नहीं तो इस अवधि में सदविप्र की भूमिका तो स्पष्ट है लेकिन अन्य वर्ण की क्या भूमिका रहेगी इस दिशा में सामाजिक संगठन को चलना होगा। 

4. प्रउत दर्शन में विक्रांति व प्रति विप्लव की अवधारणा भी है तथा यह निश्चित रुप आपातकाल अथवा संक्रमण काल इस दशा में समाज की क्या भूमिका रहेंगी तथा किस प्रकार इस स्थिति से निपटा जाएगा यह भी सामाजिक संगठन का अध्ययन क्षैत्र है। 

5. परिक्रांति की अवधि युग संधि की अवधि होती है तथा युग संधि की अवधि में प्राचीन सामाजिक मूल्यों एवं नूतन सामाजिक मूल्यों में आमूलचूल परिवर्तन आ जाता है, अत: इस अवधि में से प्रउत आगे कैसे बढ़ेगा, यह भी सामाजिक समाज आंदोलन की विषय वस्तु है। 

6. सामाजिक संगठन के बिना प्रउत के शेष सूत्रों का क्रियांवयन संभव नहीं है, इसलिए समाज इकाई का संगठनात्मक ढ़ाचा अवश्य ही इस दिशा में कार्य करेंगा। 

7. सर्वजन हित व सर्वजन सुख समाज आंदोलन का उद्देश्य है, अतः सामाजिक समाज आंदोलन में इसका भी मूल्यांकन की पद्धति को स्थापित करना आवश्यक है। उस आधार पर प्रउत की सफलता सुनिश्चित होगी। अतः सामाजिक समाज आंदोलन इस दिशा में भी संगठन देना है। 

इस प्रकार प्रउत के समाज आंदोलन के अंतिम पड़ाव सदविप्र राज की स्थापना की ओर बढ़ेगा। 

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