सामाजिक समाज आंदोलन - 01 ( सामाजिक जागरण)

आज की चर्चा का विषय है - सामाजिक समाज आंदोलन अर्थात सामाजिक जागरण। सांस्कृतिक समाज आंदोलन की प्रबलता से प्रउत के समाज आंदोलन को कैडर मिलने की संभावना है तथा आर्थिक समाज आंदोलन से अर्थ। समाज संगठन एवं सदविप्र बोर्ड जो समाज आंदोलन की आत्मा है, उससे हमें पर्याप्त बौद्धिक रसद मिलता रहेगा इसलिए प्रउत के समाज आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए सामाजिक समाज आंदोलन पर विचार करना सभी प्राउटिस्टों का कर्तव्य है। 

सामाजिक समाज आंदोलन से तात्पर्य प्रउत प्रथम आठ सूत्रों पर कार्य करना है, क्योंकि प्रउत प्रणेता ने जो समाज चक्र दिया है, वह प्रउत दर्शन, प्रउत व्यवस्था एवं प्रउत अर्थव्यवस्था के प्राण है। मैं एक प्रयास कर रह रहा हूँ मैं प्रउत के सामाजिक समाज आंदोलन को समझ पाऊँ। 

1. समाज में भेद रहने पर कितना भी बड़ा दर्शन समाज का उद्धार नहीं कर सकता है, इसलिए जन समुदाय के बुद्धि में बैठा जाति, नस्ल, लिंग, सम्प्रदायिक व क्षेत्र के भेद नष्ट करने के लिए जन जागरण के माध्यम से व्यष्टि एवं समष्टि बुद्धि को जियो एवं सोसियो सेंटीमेंट से मुक्त कर नव्य मानवतावादी सांचे में ढालना समाज का कार्य है, इसलिए इस बिन्दु का सामाजिक जागरण में प्रथम स्थान देना चाहिए। 

2. प्रउत के सांस्कृतिक एवं आर्थिक समाज आंदोलन के कुछ समष्टि भाग अर्थात व्यष्टि अछूते रह जाएंगे तथा कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के कारण विरोधी बन जाएंगे, इनके साथ के बिना समाज आंदोलन समग्रता को प्राप्त नहीं करेगा इसलिए मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के नाते उनका कर्तव्य है कि सबका साथ सबका विकास पर कार्य करें, इस दिशा में प्राउटिस्ट जनसेवा के माध्यम से उनके घर एवं मस्तिष्क में घुसकर उन्हें प्रउत के सांचे में ढालना होगा, यही प्रउत के सर्वजन हित व सुख को प्रतिष्ठित करेगा। 

3. मनुष्य का मन अति चंचल भी है, वह अनुशासन, मर्यादा एवं व्यवस्था की दीवार फांदने की चेष्टा कर सकता है, जब उसके मनोभाव के अनुकूल माहौल अथवा कार्य नहीं होने पर त्यागी, समर्पित व निष्ठावान पर भी प्रश्न उठ सकता है तो साधारण जन की तो क्या बात है, इसलिए सामाजिक समाज आंदोलन को ऐसी व्यवस्था उपलब्ध कराने होगी कोई भी मन अपने को असुरक्षित महसूस न करें तथा अपनी वाहिनी की ताकत भी अहसास शैतान मन में करवाना सामाजिक क्षेत्र के अधिकार में है। 

4. भेद का दीमक यदि किसी मन के किसी कोने में पनप जाता है तो वह धीरे धीरे रुग्णता फैलता है, अतः समाज के पंचों को चाहिए की इस प्रकार का रोगाणु जन्म न ले इसलिए प्रत्येक मानव मन को आनन्द मार्ग के आदर्श का पाठ गहनता से पढ़ाना एवं पालना करवाना चाहिए। 

5. समाज आंदोलन ज्यौंह ज्यौंह प्रबल होता है प्रायः देखा गया है कि त्यौंह त्यौंह दो समाज इकाइयों के मध्य प्रतियोगिता पनप जाती है, यह प्रतियोगिता प्रतिद्वंध में नहीं बदल जाए, इसलिए प्राउटिस्ट सर्व समाज मंच को सशक्त निर्णय लेने चाहिए इसलिए उसको संपूर्ण समाज की शक्ति प्रदान हो, यह सामाजिक चेतना के बिना संभव नहीं इसलिए समाज की प्रत्येक इकाई अखंड विभाज्य मानव समाज की शिक्षा देनी होगी। 

6. सामाजिक समाज आंदोलन में सदविप्रों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है इसलिए सदविप्र निर्माण की कार्यशाला चलाना समाज के आचार्यों का कार्य है। 

7. सामाजिक समाज आंदोलन के अंतिम पड़ाव में प्रगतिशील मानसिकता की आवश्यकता है, इसलिए सदविप्रों को सभी वर्णों की क्षमता का अधिकतम उपयोग इस प्रकार करें कि वे प्रउत जीने लग जाएं । 

इस प्रकार सामाजिक समाज आंदोलन से सदविप्र राज में चलने को मदद मिलेगी


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