आर्थिक समाज आंदोलन - 02 ( समाज का सत्ता से आर्थिक संघर्ष)

आज चर्चा का विषय है आर्थिक समाज आंदोलन अर्थात आर्थिक संघर्ष। प्रातःकालीन सत्र में आर्थिक समाज आंदोलन के प्रथम पक्ष आर्थिक उत्थान पर प्रकाश डाला था, अभी हम द्वितीय पक्ष आर्थिक संघर्ष पर विचार करेंगे। 

 आर्थिक संघर्ष को प्रउत की भाषा में आर्थिक आजादी एवं आर्थिक लोकतंत्र नाम दिया गया है। यह आर्थिक लोकतंत्र अथवा आर्थिक आजादी मांगने से नहीं मिलेगी, इसके लिए संघर्ष की आवश्यकता है। यह आवश्यक नहीं कि संघर्ष सदैव खूनी ही हो, संघर्ष अहिसात्मक एवं वैचारिक क्रांति के रुप में भी हो सकता है। 

1. आर्थिक आजादी का प्रथम बिन्दु - रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा व चिकित्सा नामक पांच न्यूनतम आवश्यकता सबके लिए सुलभ हो, इसलिए क्रयशक्ति का मूल अधिकार समाज के प्रत्येक नागरिक को मिले। यह चैरिटी नहीं प्रत्येक नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है। सरल शब्दों में इतनी न्यूनतम आय तो प्रत्येक कार्मिक की हो कि वह अपने व अपने परिवार के लिए उक्त निम्न आवश्यक पूर्ण कर सकें। यह लडाई प्राउटिस्टों की सीधी सरकार एवं जनप्रतिनिधियों से होगी, हमारे वोट तभी उनका अधिकार सिद्ध होगा जब वे इस मांग को पुरा करेंगे। 

2. धन व संपदा की संग्रह प्रवृत्ति पर समाज की लगाम हो, इसलिए व्यष्टि की अधिकतम आय के साथ अधिकतम संपदा के होने की एक अमीरी रेखा का निर्धारण करने की लड़ाई आर्थिक आजादी के लिए आवश्यक है। 

3. राजनीति एवं आर्थिक का पृथक्करण की मांग प्राउटिस्टों की अपनी मांग है। वर्तमान में भारत की राष्ट्रवादी सरकार इस दिशा में काम कर रही है लेकिन उनका कार्य दिशाहीन है, यह पूंजीवादियों को भारतवर्ष बैच रहे है। जिसका एक प्राउटिस्ट समर्थन नहीं करता है। उसे प्रउत के अनुकूल सहकारिता के आधार पर पृथक्करण करना चाहिए। 

4. समाज इकाई परिक्षेत्र में संसाधन एवं शत प्रतिशत रोजगार पर स्थानीय लोगों जन्मसिद्ध अधिकार है। उसे लेना अथवा प्रदान करना भी उनका जन्मजात अधिकार है। शतप्रतिशत रोजगार आर्थिक आजादी का सबसे गुरुत्व विषय है। 

5. स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा मिले तथा कच्चा माल किसी भी स्थित में समाज परिक्षेत्र से बाहर नहीं जाए, ऐसे माल वाहक गाडियों का चकाजाम स्थानीय क्षेत्र में ही करना होगा। 

6. स्थानीय उत्पादन से संदर्भित स्थानीय उत्पाद तैयार करने के लिए कुटीर, लधु उद्योग एवं कल कारखाने स्थानीय क्षेत्र में लगाने के लिए सरकार के रचनात्मक सहयोग आंदोलन की शुरुआत करना। 

7. कृषि को सरकारी एवं आर्थिक कारोबारियों के हाथों से मुक्त कराकर विशुद्ध किसानों के हाथों में उद्योग का दर्जा देकर सौपना है तथा जब तक कृषि लाभकारी स्थित में नहीं आए तब तक पर्याप्त राजकीय सरंक्षण मिले तथा संसाधनों पर प्रथम हक किसानों का हो इसकी लड़ाई शुरू करने से प्रउत मजदूर किसानों के द्वारा पर पहुँच जाएगा। 

8. बड़े बांध एवं बड़े उद्योग की आवश्यकता है अथवा नहीं को रेखांकित कर अधिकाश लघु उद्योग लघु जल संग्रहण योजना पर गृहकार्य कर जनता एवं सरकार के समक्ष पेश करना प्राउटिस्टों को करना ही होगा । इस प्रकार की लड़ाई की रुपरेखा तैयार करना, प्राउटिस्टों का ही दायित्व है। 

9. समाज के भौतिक एवं मानवीय संसाधन का चरम उत्कर्ष एवं चरम उपयोग आर्थिक आजादी का लक्ष्य है तथा सुसंतुलित उपयोग आर्थिक लोकतंत्र की रीढ़ है, जिसे प्राउटिस्टों को स्वयं एवं जन समुदाय को समझाने हेतु वैचारिक क्रांति ही नहीं वैचारिक विप्लव का शंखनाद करना ही होगा। 

10. गुणीजन का आदर एवं योग्यता का सम्मान प्रउत का सबसे महत्वपूर्ण पर बिन्दु है, इसलिए यह बात  गुणी एवं प्रतिभाओं के मन में स्थापित हो जाए कि आपके त्याग का सम्मान समाज करेगा। 

इस प्रकार आर्थिक समाज आंदोलन के आर्थिक संघर्ष के फलस्वरूप समाज को प्रउत प्राप्त होगा तथा हमारा सपना तथा बाबा का यह संकल्प पत्र पूर्ण होगा । इस प्रकार आर्थिक समाज आंदोलन के बल पर हम तैयार होकर प्रउत जन जन में स्थापित करने के सामाजिक समाज आंदोलन की ओर बढ़ चलेंगे
नमस्कार


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