राजनैतिक समाज आंदोलन -01 ( सत्ता, शक्ति एवं वैद्यता की ओर)


आज चर्चा का विषय प्रउत का राजनैतिक समाज आंदोलन अर्थात सत्ता, शक्ति एवं वैद्यता की ओर। प्रउत क्या, क्यों, कैसे एवं कब पर मंथन करने के दरमियान हमने प्रउत के राजनैतिक स्वरुप के संदर्भ में दो मत की प्रधानता देखी थी। प्रथम मत बाबा के वक्तव्य को चिन्हित करते हुए कहा जाता था कि लोकतंत्र, चुनाव एवं वर्तमान राजनीति के माध्यम से प्रउत की स्थापना हो ही नहीं सकती है, जबकि दूसरा बाबा भौतिक जीवन काल में प्रउत पर कार्य करने आचार्य, तात्विक एवं प्राउटिस्टों का था कि बाबा ने हमारे समाज को चुनाव की ओर भेजा था तथा चुनावी राजनीति के माध्यम से प्रउत स्थापित करेंगे, यह लहर समाज आंदोलन के माध्यम निकलेगी। इन मतों के बीच आज प्राउटिस्टों को स्पष्ट करना है कि हमें राजनीति करनी है अथवा नहीं अर्थात हमें चुनाव लड़ने है अथवा नहीं। 

1. प्रथम बिन्दु - प्रउत में वर्णित समाज इकाइयों के स्वरूप, कार्यप्रणाली एवं उत्तरदायित्व का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि चुनाव अथवा राजनीति समाज आंदोलन के समक्ष बहुत बौने है। प्रउत का समाज आंदोलन बहुत विशाल है, जिसे सांस्कृतिक समाज आंदोलन, आर्थिक समाज आंदोलन, सामाजिक समाज आंदोलन व राजनैतिक समाज आंदोलन में विश्लेषित कर समझने की कोशिश की गई है। अतः सप्रमाण व निर्विवाद एक बात निकल कर आती है कि प्रउत समाज इकाइयों को राजनैतिक पहचान देना, उसके समग्र स्वरूप के साथ अन्याय करना है। प्रउत की समाज इकाइयां एक विस्तृत संस्थान है, जो समाज के लगभग सभी पहलूओं को लेकर आगे बढ़ती है। अतः प्रउत की समाज इकाइयों के साथ न्याय यहीं है कि इन्हें एक गैर राजनैतिक संगठन के रुप में पहचान दी जाए अर्थात उन्हें गैर सरकारी संगठन (NGO) के रुप में पंजीकृत करवाना चाहिए, जिसके समग्र उद्देश्यों चित्रित कर कार्य को प्रगति देनी चाहिए। प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति एक संयोजक मंच अतः यह भी राजनैतिक मंच नहीं सकता है तथा प्रउत फारुम राजनैतिक नहीं जबकि प्राउटिस्ट ब्लॉक, इंडिया एक राजनैतिक इकाई है लेकिन फिलहाल इन्हें चर्चा के विषय में शामिल नहीं किया जा सकता है। 

2. द्वितीय बिन्दु - प्रउत आंदोलन उस कार्य विधि का नाम जो समाज के सर्वजन हित व सुख के लिए कार्य करने के संकल्पबद्ध है। जहाँ इतना महान उद्देश्य है वहाँ हम राजनैतिक उत्तरदायित्व से अछूत नहीं रह सकते है इसलिए चुनाव, लोकतंत्र, राजनैतिक गतिविधियों पर दृष्टि रखना, राय प्रकट करना एवं जनादेश को प्रभावित करना प्रउत नेताओं का नैतिक कर्तव्य है। प्रउत के मूल में दल विहिन आर्थिक लोकतंत्र है, इसलिए प्रउत राजनीति अलग अथवा पृथक करके नहीं रखा जा सकता है। अतः आवश्यकता है कि प्रउत के समग्र विंग का एक अवयव राजनैतिक के लिए कार्य करें लेकिन चुनाव लड़ना अथवा नहीं लड़ना इस बिन्दु की परिधि में नहीं है। 

3. तृतीय बिन्दु - प्राउटिस्ट ब्लॉक इंडिया, प्राउटिस्ट सर्व समाज एवं विभिन्न समाजों की राजनैतिक इकाइयों के लोक सभा व विधानसभा चुनावों के परिणामों का विश्लेषण बता है कि हम अथक प्रयास कर भी वह उपलब्धि हासिल नहीं की है, जो अन्य भारतीय राजनैतिक दलों ने की है। उनके कारणों पर समीक्षाकार का मत है कि वर्तमान राजनीति धनबल, बाहुबल, अवांछित साधनों एवं लूट खसोट के बल पर चलती है तथा हमारी आध्यात्मिक नैतिकता हमें इस बात की इजाजत नहीं देती है। इसलिए हम सफल नहीं हो पा रहे है, मैंने सुना है कि बाबा ने कहा था कि लड़ाई मात्र जीत के लिए होती है, हार का कोई कारण सुनना बाबा पसंद नहीं करते थे तथा उन्होंने अपने पराजित बेटे बेटी का मुह नहीं देखने का आदेश दिया है। अतः बिना गृहकार्य पूर्ण किये चुनाव में चला जाना मुर्खता है, अतः सांस्कृतिक समाज आंदोलन, आर्थिक समाज आंदोलन, सामाजिक समाज आंदोलन, एक प्राउटिस्ट राजनेता के द्वारा किया जाने वाला गृहकार्य है। इसको पूर्ण कर जनमत प्राप्त करने जाएंगे तो विजय माला हमारे गले को शोभित करेंगी तथा हमारे राजनेता उपरोक्त आंदोलन की चरणबद्ध पंक्ति से निकलेंगें अतः वे आधुनिक राजनेताओं की भांति नाकाम, झुठे एवं मक्कार सिद्ध नहीं होंगे ऐसा मेरा मानना है। 

4. चतुर्थ बिन्दु - चुनाव लड़ना प्राउटिस्टों का लक्ष्य नहीं है तथा यह एक वैकल्पिक रास्ता है, अतः सदैव एक बात प्राउटिस्ट मानकर चलेगा कि सदविप्र राज ही हमारा लक्ष्य है, जो प्रउत के आदर्श प्रतिमान एवं आनन्द मार्ग की जीवन शैली से प्राप्त होगा, अतः हमें राजनीति की गंदी सोच को लेकर नहीं, एक समाज नीति लेकर चलना है, जो हम सिखाती है कि मैं गौण हो सकता हूँ लेकिन मेरा समाज कभी गौण नहीं हो सकता है। वह प्रधान था, है एवं रहेगा। यह एक ही बात कहती है -अनुशासन, अनुशासन एवं अनुशासन। 

5. पंचम बिन्दु- राज्य, समाज एवं जन हितार्थ नीति ही राजनीति है, इसलिए राजनीति को दलदल मानकर उनकी ओर नहीं चलना निष्क्रियता, उदासीनता एवं विमुखता अधर्म का पथ है, जिस पर चलने की शिक्षा गुरुदेव ने हमें नहीं दी है, इसलिए चर्याचर्य में मत एक नोटों का प्रयोग की चर्चा की गई है, वरना एक सामाजिक आध्यात्मिक संगठन में इसकी व्यवस्था आवश्यक नहीं थी। 

6. छठां बिन्दु - समाज आंदोलन एक चरणबद्ध आंदोलन है, जिसमें प्रथम सांस्कृतिक क्षेत्र में, द्वितीय, आर्थिक क्षेत्र में, तृतीय सामाजिक क्षेत्र में तथा अंतिम में राजनैतिक क्षेत्र की यात्रा की जाती है, जो विजय श्री की ओर ले जाती है। 

7. सातवां बिन्दु - सेवा प्राउटिस्टों एवं आनन्द मार्गियों का नैतिक कर्तव्य है इसलिए साधना, सेवा एवं त्याग समाज आंदोलन के नैतिक मापदंड है, इसमें प्रतिष्ठित होने के लिए व्यष्टिगत एवं समष्टिगत जीवन में यम नियम, षोडश विधि, पंचदश शील व आचरण संहिता को मानकर चलना हमारे प्राण प्रिय बाबा का आदेश एवं हमारी जिम्मेदारी है। 


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