श्रीमद्भगवद्गीता - चतुर्दश अध्याय

श्रीमद्भगवद्गीता के 14 वें अध्याय में 26 श्रीकृष्ण उवाच एक अर्जुन उवाच सहित 27 श्लोक हैं। इस अध्याय का नामकरण गुणत्रय विभाग योग किया गया है। जिसमें प्रकृति के तीन गुणों का वर्णन किया गया है। 

श्रीकृष्ण कहते है कि अर्जुन तुझे आध्यात्म का सार तत्व कहता हूँ। यह प्रकृति त्रिगुणात्मक है। सबसे शुद्ध सतोगुण के कारण आत्मा प्रकाशित होकर सुख एवं ज्ञान के अभिमान में बांधता है, रजोगुण कामना से उत्पन्न होने के कारण सकाम कर्म में बांधता है तथा तमोगुण मोह से उत्पन्न होने के प्रमाद, आलस्य एवं निंद्रा में बांधता है। सतोगुण के आधिक्य से ज्ञान, रजोगुण के आधिक्य से लोभ तथा तमोगुण के आधिक्य से क्रुरता का प्रभाव दिखाई देता है। सतोगुण में मृत्यु से देवतत्व, रजोगुण से मनुष्यत्व एवं तमोगुण से पशुतत्व को प्राप्त होता है। सतोगुण से सुख, रजोगुण से दु:ख तथा तमोगुण से अंधकार प्राप्त होता है। सतोगुणी उच्च, रजोगुण मध्यम तथा तमोगुण निम्न योनि (पद) को प्राप्त करता है। श्रीकृष्ण कहते है कि इन तीनों गुणों से उपर साक्षीभाव में विचरण करने वाला मेरा दिव्य स्वरूप प्राप्त करता है। ऐसा व्यक्ति प्रकाश (सत्व), आसक्ति (रज) व तम (अज्ञान अथवा अंधकार) में नहीं खोता है, वह अविचलित भाव से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। इस पर यह समत्व को प्राप्त कर सदैव आनन्द में रहता है तथा अन्ततोगत्वा आनन्द को प्राप्त करता है अर्थात आनन्दमूर्ति में विलिन हो जाता है। 

सत्व, रज एवं तम के इस जगत में निर्लिप्त भाव से आगे बढ़ने वाला वैराग्य को प्राप्त होता है। वह दुनिया में रहकर भी दुनिया में माया मोह में नहीं बंधता है। 
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