डर के शय्या में पल रहा विश्व एवं आनन्द मार्ग जीवन शैली

डर के शय्या में पल रहा विश्व एवं आनन्द मार्ग जीवन शैली
                                                                                             श्री आनन्द किरण
                विश्व में कोराना के विनाशकारी काले बादल मंडरा रहे है। कभी स्वानफ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया, हेपेटाइटिस, मंकी गुनिया,एड्स, कैंसर, वेस्टनाइल वाइरस सार वाइरस, बर्डफ्लू, इबोला, निगाह, जीका. प्लेग, स्पेनिशफ्लू इत्यादि इत्यादि संक्रामक एवं जान लेना व्याधियों ने मानव प्रजाति को निगलने का प्रयास किया है तथा भविष्य में भी इस प्रकार की असाध्य बीमारियों के आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इससे रक्षा के लिए चिकित्सा जगत ने अनुकरणीय योगदान दिया है तथा भविष्य में भी चिकित्सा जगत सहयोग बना रहेगा। लेकिन दुःख का विषय यह है कि बुद्धि सर्वोच्च शिखर पर विराजमान मनुष्य के समाज में चिकित्सा एक व्यवसाय बना हुआ है। सेवा वृत्ति से कार्य करने वाले चिकित्सक के कार्यों को नमन कर दूसरी ओर के एक दु:खद चित्रण प्रस्तुत कर रहा हूँ चिकित्सा वृत्ति से जुड़े अधिकांश व्यष्टि इसे आर्थिक उपार्जन का साधन मानकर इसे धन संग्रह का उत्सव मनाते देखे गए है।
                 डर की शय्या में पल रहे जीवन की सर्वोपरि औषधि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता के प्राबल्य को स्वीकार किया गया है। बाहरी ओषधियों के माध्यम से इस शक्ति में वृद्धि की जाती है। अन्य उपाय के तहत रोगों से सुरक्षा की तकनीक का ज्ञान एवं विज्ञान में दक्ष किया जाता है। रोगी के स्वस्थ होने के लिए तृतीय एवं महत्वपूर्ण कला सकारात्मक भाव, परिवेश एवं हितकारी अणुजीवत की क्षमता में वृद्धि करना बताई गई है।
         आनन्द मार्ग विचारधारा में एक ऐसी ही जीवन शैली को प्रदान किया गया है। जिस पर चल कर मनुष्य सम, विषम, अनुकूल, प्रतिकूल सभी स्थित एवं परिस्थिति में आनन्दमय जीवन जीता हुआ जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। प्रस्तुत आलेख में आनन्द मार्गी की जीवन शैली के उन बिन्दुओं को रेखांकित किया जा रहा है। जिसके अनुसरण से भय, त्रस्त, त्रासदी, त्राहिमाम एवं असुरक्षा का अनुभव करने वाली मानसिक में नवजीवन का संचार किया जा सकता है तथा जीवन को गैर जिम्मेदारी से जीने वाली मानसिकता को जीवन मूल्य का अनुभव कराया जा सकता है। त्रासदी के वक्त कर्मी अपनी कर्म साधना के बल पर सेवा उपलब्ध कराकर अपना फर्ज अदा करते है, ज्ञानी जीवन रक्षा एवं सुरक्षा के उपाय बताकर अपने दायित्व का निवहन करते है तथा भक्त प्रभु की छत्रछाया में खतरे के बादलों को हटाने के सारे यत्न करते है। उन सबके प्रयास एवं उपायों की सराहना कर उनके सहयोग को अपना नमस्कार भेट करता हूँ। इस वेला में कुछ मत, पंथ एवं विचारधारा के प्रचारक अपने सिद्धांत, विचार, सूत्र एवं प्रथाएं की उपादेयता भी वर्णित करते देखें जाते है। उनकी यह संपदा मानवता की सुरक्षा में हितकारी सिद्ध हो सकती है लेकिन यह परिवेश प्रचार व प्रसार का नहीं है। यह समय अपने कर्तव्य का मानव हित में निवहन करने का है। प्रस्तुत आलेख का उद्देश्य मानवता के प्रति व्यष्टिगत एवं समष्टिगत उत्तरदायित्व का निवहन करना है।
एक आनन्द मार्गी की जीवन शैली के कुछ बिन्दु
१. मधुविद्यायुक्त जीवन एवं कर्म का संपादन – आनन्द मार्गी अपने कार्य एवं जीवन की शुरुआत, संचालन एवं संपादन मधुमय किया जाता है। कृत,कर्म, क्रिया एवं वस्तु पर ब्रह्म भाव आरोपित, अध्यापित एवं स्थापित किया जाता है। यहाँ सबकुछ ब्रह्म है व्यक्ति अपनी नासमझ, अल्प समझ तथा अज्ञान के कारण पार्थक्य रखता है जो मनुष्य को सुख, दु:ख, आशा, निराशा, ज्ञान अज्ञान एवं निरसता, हीनता एवं अहंकार को सृजित करता है। यह मनुष्य गैरजिम्मेदार एवं दग्ध करता है। उपरोक्त अभ्यास से साधक परमतत्व के साथ एकमय रहता है अतः वह विषम, विकराल एवं उपयुक्त अनुपयुक्त परिवेश में आनन्दमय रखता है। यह स्थिति महामन्यता हीनमनयता से मुक्त जीवन जीना सिखा है। यहाँ एक आनन्द मार्गी कल्याण ही निषपन्न है।
२. माइक्रोवाइटम सिद्धांत – आनन्द मार्ग के पास माइक्रोवाइटम सिद्धांत है। यह सिद्धांत आनन्द मार्गी की साधना, जीवन शैली, आचरण, शिक्षा एवं चिकित्सा में देखा जाता है। माइक्रोवाइटम सिद्धांत में बताया गया है कि सभी अणु जीवों में भावात्मक अणुजीवत सबसे अधिक प्रभावी एवं शक्तिशाली है। इनके गुणधर्म के आधार पर बताया गया है कि मित्र एवं शत्रु दो प्रकार के माइक्रोवाइटा होते है। मित्र माइक्रोवाइटा की प्रधानता से देवी गुण एवं सकारात्मक शक्ति का प्राबल्य दिखाई देता है। इसके विपरीत शत्रु माइक्रोवाइटा दैत्य एवं विनाशकारी शक्ति से संपन्न है। रोग एवं हानिकारक सूक्ष्म जीव के प्रभाव को शून्य करने के लिए मित्र माइक्रोवाइटा के प्रभाव में वृद्धि करनी होती है । इससे स्वयं एवं समाज की आपदा से रक्षा करता है।
३. न्यूनतम आवश्यकता की ग्रारंटी – आनन्द मार्ग नागरिक की अन्न, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा को सुनिश्चित करता है। यह गुण समाज के अभिभावक स्वभाव का विकास करता है। इससे समाज सुखद एवं दु:खद परिस्थिति में समाज में अनुशासन बनाए रखता है। विनाशकारी एवं संकटकाल में समाज मजबूत निर्णय लेने पर सभी का सहयोग बना रहता है।
४. एक अखंड मानव समाज एवं वैश्विक व्यवस्था – आनन्द मार्ग मानव समाज में एकता एवं विश्व की एक व्यवस्था का समर्थक थे। आपातकाल में एक निर्णय लिया जाता है तथा सामान्य काल में समाज में भातृत्व के भाव से कार्य होता है। भेद की दीवार विरोधी पक्ष के दर्द में सुखानुभूति अनुभव करना अथवा इस प्रकार की मानसिकता रखना अथवा ईच्छा रखना सिखाता है। चाइना में गहराते विनाश बादलों पर उत्सव मनाने वाले खुद को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। इस प्रकार आनन्द मार्ग चिन्तन में एक मानव समाज व एक वैश्विक व्यवस्था की अवधारणा भय, विषाद एवं उन्माद पूर्ण वातावरण का उन्मूलन करता है तथा स्नेह, ममत्व एवं अपनत्व जीवन जीना सिखाता है।
५. गुणजन के लिए विशेष व्यवस्था- समाज सेवा में सलंग्न व्यष्टियों में इस गुण के विकास एवं आर्थिक लोलुपता की ओर आकृष्ट होने से उन्हें समाज को सुरक्षित रखने के लिए के लिए इस व्यवस्था की नितांत आवश्यकता है। आनन्द मार्ग इस व्यवस्था को प्रदान करता है। यह व्यवस्था सभी परिस्थिति में मनुष्य को आर्थिक के स्थान पर आध्यात्मिक प्राणी बनाते है।
६. आध्यात्मिक साधना एवं मुक्ति का लक्ष्य - आध्यात्मिक शक्ति का संचार मनुष्य परिपूर्ण एवं परफेक्ट बनाती है तथा मुक्ति का लक्ष्य मनुष्य को जीवन मूल्य जानने योग्य एवं परमार्थ के लिए जीने योग्य बनाता है। कीर्तन एवं पंचजन्य सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करता है । जिससे व्यक्ति नकारात्मक प्रभाव मुक्त रहता तथा समाज में नकारात्मक प्रभाव से मुक्त करता है। साधना, सेवा एवं त्याग का जीवन मनुष्य जीवनी शक्ति और अधिक पुष्ट करती है।
७. नैतिक जीवन एवं आचरण में पवित्रता – एक आनन्द मार्गी का जीवन नैतिक मूल्यों को धारण किया हुआ है तथा आचरण में पवित्रता, पारदर्शिता व स्वच्छता है। यम नियम, पंचदश शील, षोडश विधि तथा आचरण संहिता मनुष्य में पाश्विक तथा दानवीय गुणों के अभिप्रकाश के रास्ते को ही निस्ताबूज कर देता है। एक ऐसा समाज बनता है, जहाँ आनन्द ही आनन्द है।
८. आनन्द मार्ग – मनुष्य मात्र आनन्द मार्गी है, सभी मनुष्य का लक्ष्य आनन्द की उपल्बधि करना है। इस राह के राही को नकारात्मक, विनाश एवं अधोगति का भय नहीं सताता है तथा यह तथ्य इनके संपर्क, सानिध्य एवं छत्रछाया में नहीं आ सकती है। यह पथ चरम प्रगति के पथ पर ले चलता है। जहाँ प्रगति है वहाँ डर की छाया नहीं इसलिए कहा गया है – डर की छाया में पल विश्व को आनन्द मार्ग जीवन शैली को अंगीकार करने से एक सुन्दर, सुरम्य एवं सुशांत परिदृश्य बनता है।
नमस्कार विश्व व्यष्टि एवं समष्टि जीवन को मृत्यु से अमृत की ओर, अज्ञानता से ज्ञान की ओर एवं अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल । जहाँ सुख दुःख के उपर की अवस्था आनन्द है जिसका कोई विलोम नहीं है।
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श्री आनन्द किरण@ आनन्द मार्ग

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