दशहरा एवं विजयदशमी

         🌹धर्मयुद्ध मंच से🌹
        ®श्री आनन्द किरण®
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   ©दशहरा एवं विजयदशमी©
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🚩        अश्विन शुक्ल दशमी में को भारतवर्ष में विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारतवर्ष में इसको मनाने की कई मान्यताएँ प्रचलित है। इसमें सबसे गुरुत्व मान्यता रावण दहन है। कर्नाटक के मैसूर शहर में भारतवर्ष का रावण दहन सबसे बढा उत्सव है। रावण की व्याख्या विद्वानों एवं संतों ने अपने-अपने अनुसार अलग-अलग रुप में की है। रामायण के अनुसार रावण का निवास लंका में था। वह लंका का अधिपति था। लंका शब्द का लं – क+आ के शाब्दिक विन्यास है। क अक्षर की व्युत्पत्ति को अशुभ को दर्शाने के लिए अधिकतर की जाती है। तंत्र के अनुसार लं पृथ्वी तत्व का बीज मंत्र है। पृथ्वी तत्व चतुष्फलकीय एवं स्वर्ण वर्ण का दिखाया गया है। लं तथा क+आ मिलने से लंका शब्द अस्तित्व में आया है। चरम जड़ता अथवा चरम पतन की अवस्था में बीज मंत्र के प्रहार से उन्यन्न किया जा सकता है। यहाँ विजय से पूर्व एवं विजय के बाद दो स्थितियों का चित्रण रामायण में मिलता है। पूर्वावस्था रावण की तथा उत्तर अवस्था विभिषण की बताई गई। रावण भीषण या विकराल अवस्था का चित्रण है तथा विभिषण इन पर विजय की अवस्था है।
🚩              दशहरा रावण की पराजय का शोक दिवस तथा विजयोत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का हर्षोत्सव है। विजेता विजयदशमी मनाता है तथा पराजित होने वाला दशहरा मनाता है। दशहरा शोक एवं विषाद की विषय वस्तु है। जबकि विजयदशमी हर्ष एवं उल्लास का विषय धारण करके चलता है। यहाँ मात्र एक दृष्टिकोण का अंतर है। यदि जीवन को सकारात्मक सोच, सकारात्मक ऊर्जा एवं सकारात्मक दृष्टिकोण को लेकर चलते है तो यह जगत उसके लिए आनन्दमयी है। अपने आनन्द में उत्तरोत्तर वृद्धि करने के लिए विजयी भाव का रहना आवश्यक है। इसके विपरीत नकारात्मक सोच, नकारात्मक ऊर्जा एवं नकारात्मक दृष्टिकोण के लिए जगत दुखमय है। मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ अथवा यह मुझसे नहीं हो सकता हैं अथवा यह मेरे योग्य कार्य नहीं है। यह सब हार के भाव है। इसलिए मनुष्य का दर्शन आनन्दमयी होता है। इस संसार आनन्द में है। आनन्द में वृद्धि संभव है। आनन्द कारण मनुष्य जीवन का महत्व समझता है। आनन्द की पूर्ण अवस्था पाने के लिए मनुष्य को धर्म साधना करनी होती है। इससे मनुष्य वृहत को पाता होता है। वृहत, ब्रह्म, सत्य एवं आनन्द चारों एक ही है।
🚩             विजय दशमी आन्दोत्सव तथा दशहरा शोकोत्सव है। मनुष्य के चलने का पथ आनन्द मार्ग है। आनन्द मार्गी को सदैव बुराई से संघर्ष करना होता है। इसलिए उसमें वीरोचित गुण का होना अनिवार्य है। एक वीर सदैव विजय के भाव को लेकर चलता है। अतः विजयोत्सव एक आनन्दोत्सव भी है।
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श्री आनन्द किरण उर्फ करण सिंह राजपुरोहित

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