प्रउत की उद्योग एवं वाणिज्य नीति
प्रगतिशील उपयोग तत्व नामक अर्थव्यवस्था ने अपनी सुस्पष्ट उद्योग एवं वाणिज्य नीति जारी की है। इसका अध्ययन एवं अध्यापन कर उद्योग नीति को धरातल पर स्थापित करने हेतु एक कार्ययोजना का निर्माण किया जा सकता है। सभी अर्थ तांत्रिक व्यवस्था में उद्योग एवं वाणिज्य के संचालन की एक नीति है। वह उस अर्थव्यवस्था के स्वरूप को निर्धारित करते है।
प्रउत की उद्योग एवं वाणिज्य नीति अध्ययन के क्रम में प्रथम ध्यान मजदूर व मालिक तथा कर्मचारी एवं अधिकारियों के संबंध पर दिया गया है। मिल मालिक एवं मजदूर के मध्य पारिवारिक संबंध की आकांक्षा करते है, लेकिन उस हेतु जमीनी प्रयास नहीं किये गए तो यह उक्ति कथनी करनी में भेद करने वाली हो जाएगा। प्रउत व्यवस्था कहती है कि फर्म के लाभांश में मजदूर का भी हिस्सा होना चाहिए। जहाँ मिल मालिक एवं मजदूर का दैनिक मजदूर में जाकर खत्म हो जाते हैं वहां फर्म के प्रति मजदूर में अपनापन नहीं हो सकता है। वहाँ प्रगति हो सकती है लेकिन शांति एवं संतुष्टि देने वाली नहीं हो सकती है। पूंजीवाद में वर्गसंघर्ष एवं साम्यवाद में अधिकारी एंव कर्मचारी में तनाव, मजदूर एवं मालिक के संबंध की दोषपूर्ण नीति का परिणाम है। प्रउत व्यवस्था ने फर्म के लाभांश में से मजदूर का हिस्सा देने की बात कहकर मजदूर को फर्म हिस्सेदार बनाया है। यहाँ संबंधों में अपनापन है तथा प्रगति को सकारात्मक दिशा में ले जाता है।
उद्योग का वर्गीकरण एवं संचालन
(1) वृहत उद्योग – प्रउत के अनुसार वृहत उद्योगों का संचालन सरकार द्वारा “न लाभ, न हानि” के आधार पर किया जाएगा।
(2)मध्यम उद्योग – प्रउत के अनुसार इस प्रकार के उद्योग का संचालन सहकारिता के आधार पर किया जाएगा।
(3)लघु एवं कुटीर उद्योग - प्रउत इस प्रकार के उद्योग के संचालन का भार निजी व्यक्ति अथवा फर्म को देता है।
प्रउत अर्थव्यवस्था में उद्योग के प्रकार –
(1)कृषि उद्योग – प्रउत अर्थव्यवस्था कृषि को उद्योग का दर्जा देती है। अर्थात प्रउत का प्राथमिक उद्योग कृषि है। जिसका संचालन सहकारिता के आधार पर किये जाना सर्वोत्तम बताया गया है। इस पर कुल जनसंख्या का 30 से 40 प्रतिशत के मध्य कृषि पर उद्यमियों को लगाना प्रगतिशील समाज का द्योतक है।
(2)कृषि सहायक उद्योग – प्रउत अर्थव्यवस्था में कृषि कार्य सहायक अथवा कृृृषि कार्य में लगने वाले उपकरण, खाद, बीज, इत्यादि वस्तुओं के निर्माण के उद्योगों को इस श्रेेणी में रखा गया है। इस कार्य में भी कुल जनसंख्या का 15 से 20 प्रतिशत के मध्य रहेगा।
(3)कृषि आधारित उद्योग – प्रउत नीति के अनुसार कृषि उत्पादन पर आधारित उद्योग को इस श्रेणी में रखा गया है। इस कार्य में भी कुल जनसंख्या का 15 से 20 प्रतिशत के मध्य रखना प्रगतिशील अर्थव्यवस्था का द्योतक है।
(4)गैर कृषि अथवा अकृषि उद्योग अथवा साधारण अथवा की उद्योग - प्रउत अर्थव्यवस्था में इस श्रेणी में उन उद्योग को रखा गया जो कृषि के अतिरिक्त अन्य कच्चे उत्पाद के आधार पर चलयमान हो। इस पर भी कुल जनसंख्या का 15 से 20 प्रतिशत मध्य रखा गया है।
प्रउत उद्योग नीति के कतिपय विशेषताएं –
(1) प्रउत अर्थव्यवस्था पर आधारित उद्योग में स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथमिकता दी जाएगी।
(2) प्रउत अर्थव्यवस्था पर अधारित उद्योग का संचालन स्थानीय लोगों द्वारा किया जाएगा।
(3) प्रउत अर्थव्यवस्था पर आधारित उद्योग की कार्यकारी भाषा स्थानीय भाषा रहेंगी।
(4) प्रउत अर्थव्यवस्था पर आधारित उद्योग की स्थापना कच्चे माल के प्राप्ति स्थान के समीप अथवा उस क्षेत्र में किया जाना प्रस्तावित है।
(5) प्रउत अर्थ शक्ति के विकेन्द्रीकृत सिद्धांत पर कार्य करती है। उद्योग नीति में इसकी भूमिका रहेगी। अर्थात उद्योग एक जगह पर केन्द्रित नहीं रहेंगे।
(6) प्रउत अर्थव्यवस्था में उद्योग के संचालन में श्रमिक की राय एवं भूमिका को स्वीकारा गया है।
(7) प्रउत अर्थव्यवस्था पर आधारित उद्योग नीति तकनीक विकास एवं आधुनिकीकरण का समर्थन करती है।
(8) प्रउत अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त श्रम की छटनी की व्यवस्था नहीं है। इसके स्थान पर मजदूर कम किये बिना काम के घंटों को कम करने का प्रावधान रखा गया है।
(9) प्रउत अर्थव्यवस्था में नागरिक की न्यूनतम आवश्यकता की गारंटी समाज की है। अत: श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा एवं उनके परिवार के चिकित्सा का जिम्मा समाज के कंधों पर है।
(10) प्रउत अर्थव्यवस्था में उत्पादन लाभ सिद्धांत के स्थान पर उपयोगिता सिद्धांत के आधार पर किया जाएगा।
प्रउत की व्यापार एवं वाणिज्य नीति
प्रउत अर्थव्यवस्था में वस्तु एवं सेवाओं के आदान प्रदान के लिए भी सुस्पष्ट नीति का प्रावधान है।
(1) प्रउत अर्थव्यवस्था की वितरण नीति कहती है कि स्थानीय उत्पादन का वितरण स्थानीय लोगों के मध्य किया जाना प्राथमिक है। अत: व्यापारिक व्यवस्था में स्थानीय लोगों कि प्रभुत्व अंगीकार किया गया है।
(2) प्रउत अर्थव्यवस्था व्यापारी अथवा वितरण कार्य में वस्तु विनिमय के महत्व को भी स्वीकार किया गया है। व्यापारी अथवा वितरक के मुनाफे यह व्यवस्था नियंत्रण रखती है। अन्य शब्दों वस्तु की कीमत निरपेक्ष नहीं सापेक्ष निर्धारित रहने से व्यापारी, मुनाफे में लुट खसोट नहीं कर पाएंगे।
(3) व्यापार अथवा वितरण में विवेकपूर्ण वितरण के सिद्धांत के आधार पर कार्य करने की योजना है।
(4) वितरण में सहकारी संस्थान की भूमिका स्वीकार की गई है।
(5) प्रउत अर्थव्यवस्था में कराधान के लिए मात्र एक बार उत्पादन शुल्क लेना का प्रावधान है।
(6) प्रउत अर्थव्यवस्था बैंकिंग प्रणाली की उपादेयता स्वीकार करती है तथा इसका केन्द्रीयकरण का पक्ष नहीं करती है। इसका संचालन सहकारिता के आधार पर स्थानीय लोगों के द्वारा किया जाना है।
(7) प्रउत अर्थव्यवस्था की संतुलित अर्थनीति के अनुसार व्यापार, वितरण एवं तदाश्रित सेवा में 5 से 10 प्रतिशत जनभार का रहना प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक है।
प्रउत की उद्योग एवं वाणिज्य नीति में क्यों, कब एवं कैसे प्रश्न❓
प्रगतिशील उपयोग तत्व में क्यों, कब एवं कैसे प्रश्नों की महत्ता है। इन प्रश्नों का उत्तर जाने बिना विषय परिपूर्णता प्राप्त नहीं करता है।
(1) प्रउत अर्थव्यवस्था की सभी नीतियों में उभरते कब प्रश्न का एक ही उत्तर है – सदविप्र, प्राउटिस्ट, प्रउत को मानने एवं जानने वाले तथा प्रउत प्रउत चिल्लाने वाले प्रउतमय जीवन जीना प्रारंभ कर लेंगे तब उनके इस तपोबल के प्रभाव से उनका परिवेश प्रउतमय बन जाएगा तथा ज्यौं ज्यौं उनके तपोबल में वृद्धि होगी प्रउत क्षेत्र की परिधि में वृद्धि होगी। सभी द्वारा ऐसा करने पर प्रउत की कब समस्या का समाधान हो जाएगा।
(2)प्रउत अर्थव्यवस्था की सभी नीतियों एवं व्यवस्था में कैसे प्रश्न भी अधिक महत्वपूर्ण है – जहाँ कब प्रश्न का उत्तर प्राउटिस्ट, सदविप्र एवं प्रउत प्रचारकों के तपोबल का महत्व है वही कैसे प्रश्न का संबंध इनकी कर्म साधना से संबंधित है। प्रउत प्रउत चिल्लाने से प्रउतमय विश्व नहीं बन जाएगा। प्रउत के लिए किये गए रचनात्मक कार्य प्रउत को स्थापित करेंगा। रचनात्मक कार्य ज्यौं ज्यौं सुदृढ़ता प्राप्त करेंगे त्यौं त्यौं संरचनात्मक व्यवस्था में गतिशील स्थायित्व आएगा। यह सम्पूर्ण विश्व को प्रउत में समाविष्ट कर लेगा।
(3)प्रउत अर्थव्यवस्था में क्यों प्रश्न का उत्तर व्यक्ति को प्रउत एवं वर्तमान व्यवस्था को देखने मात्र से मिल जाएगा।
(4)प्रउत अर्थव्यवस्था में कौन का भी एक प्रश्न है – इसका उत्तर एक प्राउटिस्ट, प्राउटिस्टों के समूह एवं सदविप्र समाज कौन का उत्तर देता है।
प्रउत अर्थव्यवस्था की उद्योग नीति पर उत्तरोत्तर अनुसंधान आवश्यक है।
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➡ श्री आनन्द किरण
प्रउत अर्थव्यवस्था की उद्योग नीति एक आदर्श नीति है
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