चर्याचर्य पर एक अध्ययन पत्र
आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के विधान, समाज की जीवन शैली, व्यक्ति की आचरण संहिता तथा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के नियंत्रण को चर्याचर्य नाम दिया गया है। विषय के प्रवक्ता एवं प्रवर्तक श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की स्वीकृति के बाद यह स्मृति शास्त्र आप्त साहित्य के रुप में स्थान प्राप्त किया है। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ द्वारा चर्याचर्य को तीन भागों में विभाजित किया गया है। स्मृति शास्त्र के अध्ययन के क्रम में चर्याचर्य पर अपने एक अध्ययन पत्र का निर्माण किया गया है। वस्तुतः यह अध्ययन पत्र पूर्णतया निजी है।
चर्याचर्य का प्रथम खंड जिसमें विधि विधान, सामाजिक व्यवस्था, आध्यात्म व्यवस्था विधान तथा प्रशासनिक पदवी एवं विधान की चर्चा करता है। इसमें कुल 41 अध्याय हैं। चर्याचर्य के द्वितीय खंड में कुल 8 अध्याय श्रेय एवं प्रेय ज्ञान की आचरण संहिता है। चर्याचर्य का तृतीय खंड जिसमें एक मजबूत, स्वस्थ एवं चिरंजीवी आनन्द मार्गी के निर्माण के लिए 11 अध्याय प्रदान किए गए हैं। कुल 60 अध्याय युक्त चर्याचर्य के तीन खंड आनन्द मार्ग का स्मृति शास्त्र के नाम से जाना जाता है।
(1) हमारे सामाजिक विधि विधान
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः उसके जीवन में विभिन्न अवसरों पर कुछ सामाजिक परंपरा, पर्व एवं उत्सवों का आयोजन करना होता है तथा इन कार्यक्रमों के एक निश्चित विधान से सामाजिक स्थिरता एवं एकता सुनिश्चित रहती है। चर्याचर्य के प्रथम खंड के 1, 14, 13, 19, 20, 9, 10, 11, 12 एवं 15 वां अध्याय क्रमशः शिशु का जातकर्म, जन्म तिथि कृत्य, विवाह विधि, शव सत्कार, श्रद्धानुष्ठान, शिलान्यास, गृह प्रवेश, वृक्ष रोपण, यात्रा प्रकरण तथा सामाजिक उत्सवों का अनुष्ठान के सामाजिक विधि विधान प्रदान गए हैं। इन 10 अध्यायों में उपलब्ध यह सभी विधान सरल, मितव्ययी एवं सभी के सुगम है। चर्याचर्य के इस भाग का अनुसरण करता हुआ एक नागरिक पंडित, मौलवी एवं पादरियों सहित समस्त धर्म व्यवसायियों की प्रभुसत्ता से मुक्ति प्राप्त करता है।
(2) हमारी सामाजिक व्यवस्थाएँ
समाज की व्यवस्थाओं के सफल संचालन हेतु चर्याचर्य के प्रथम खंड में 10 अध्याय प्रदान किए गए हैं। अध्याय क्रमांक 21, 29 , 28, 26, 27, 30, 25, 22, 24 व 31 में क्रमश आदर्श दायाधिकार व्यवस्था, सामाजिक शास्ति, अर्थ नीति, जीविका निर्वाह, नारी जीविका, विधवा, पोशाक परिच्छेद, स्त्री पुरुष सम्पर्क, निमंत्रण विधि एवं समाज एवं विज्ञान विषय एक आदर्श समाज की व्यवस्था के विधान है। इन 10 अध्यायों अनुपालन के माध्यम से सामाजिक शान्ति, विकास तथा स्वतंत्र मनीषा के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
(3) हमारी आध्यात्मिक व्यवस्था
मनुष्य के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए भी चर्याचर्य जागरुक है। चर्याचर्य के प्रथम खंड के 10 अध्याय इस विषय पर प्रकाश डालते है। अध्याय क्रमांक 32, 23, 8, 41 , 33, 16, 17, 18, 34 एवं 35 वां अध्याय क्रमशः आदर्श गृहस्थ, प्रणाम विधि, आचार्य के साथ संपर्क, गुरु वंदना, साधना, धर्म चक्र, तत्व सभा, जागृति, मार्गीय सम्पद एवं आत्म विश्लेषण है। यह आध्यात्मिक नैतिकवान मनुष्य के निर्माण के लिए सामाजिक स्तर की गई एक मर्यादित व्यवस्था है।
(4) हमारा प्रशासन एवं पदवी
आनन्द मार्ग समाज के संचालन के लिए एक संस्थागत संगठन का निर्माण किया है। प्रशासनिक व्यवस्था एवं सामाजिक आध्यात्मिक पदवी की चर्याचर्य के प्रथम खंड के अध्याय क्रमांक 2, 37, 39, 40, 38, 36, 5, 3, 4, 6 व 7 वां कुल 11 अध्याय क्रमशः आचार्य, तात्विक, पुरोधा व आचार्य, तात्विक, पुरोधा और तत्संश्लिष्ट पर्षद, आचार्य पर्षद, तात्विक पर्षद, अवधूत और अवधूत पर्षद, तुम लोगों की विभिन्न संस्थाएं, पर्षदों का गठन, भुक्ति प्रधान, समाज मित्रम, स्मार्त, जीवन मित्रम और धर्म मित्रम , उपभुक्ति प्रमुख, सान्धिविग्राहक, जनमित्रम और लोकमित्रम विषय के आधार पर प्रशासन एवं आध्यात्मिक परंपरा को चित्रित किया गया है।
(5) श्रेय संहिता
मनुष्य के समाज नैतिकता व्यवस्था के सफल संचालन हेतु एक विधान दिया गया है। आत्मिक यात्रा के पथ के ज्ञान की श्रेय संहिता में सजाया गया है। चर्याचर्य के द्वितीय खंड के 1, 6, 5, व 7 वां अध्याय में साधना, साधकों के लिए पालनीय आचरण विधि, पंचदश शील तथा षोडश विधि के विषय एक अध्यात्मिक अनुशासन का भाग है।
(6) प्रेय संहिता
भौतिक एवं मानसिक जीवन के निर्माण की यात्रा के पथ का ज्ञान प्रेय संहिता हैं। चर्याचर्य के द्वितीय खंड के 2, 3, 8 व 4 थां अध्याय शरीर, समाज, सामाजिक आचार तथा विविध विषयों पर चर्चा करता है। इसका अनुसरण कर साधक आनन्दमयी परिवेश में जीता है।
(7) शरीर विज्ञान के विधान
चर्याचर्य खंड तृतीय के प्रथम पांच अध्याय शरीर की पुष्टता को लेकर लिखे गए हैं। स्नान विधि व पितृ यज्ञ, आहार विधि, उपवास विधि, वायु सेवन तथा शारीरिक संयम के माध्यम से एक सुदृढ़ शरीरवान साधक का निर्माण किया गया है।
(8) स्वास्थ्य विज्ञान का विधान चर्याचर्य के तृतीय खंड के षष्टम् से दशम् अध्याय स्वस्थ साधक के लिए रचित है। कार्य करते करते शरीर में असामान्य परिस्थितियों का निर्माण होना अस्वाभाविक नहीं है इसलिए एक स्वास्थ्यप्रद एवं तंदुरुस्ती की व्यवस्था दी गई है। इनमें साधारण स्वास्थ्य विधि, विभिन्न यौगिक प्रक्रिया, आसन, मुद्रा तथा बंध तथा प्राणायाम की व्यवस्था दी गई है।
(9) दीर्घजीवन का विधान
दीर्घजीवन के 9 गोपनीय संकेत दिए गए हैं। चर्याचर्य के तृतीय खंड का 11 अध्याय परिशिष्ट इसके संदर्भ में चर्चा की गई है।
मार्ग गुरुदेव के भौतिक शरीर के परित्याग के बाद उस तिथि को महापरियाण दिवस के रुप में मानने एक विधान चर्याचर्य के प्रथम भाग में परिशिष्ट रुप में तात्कालिक प्रशासनिक परिषद द्वारा जोड़ा गया। यह दिवस आनन्द मार्ग समाज में चर्य एवं अचर्य विषय के रुप चर्चित है इसिलिए अध्ययन पत्र में उक्त विषय शामिल नहीं किया गया है
🙏श्री आनन्द किरण🙏
(नोट - यह साहित्य आनन्द मार्ग प्रचारक संघ का स्मृति शास्त्र है। लेखक द्वारा मात्र एक अध्ययन पत्र लिखा किया गया है। इसका संबंध किसी सुझाव अथवा अन्य किसी कारण नहीं है। )
दादाजी अतिसुंदर
जवाब देंहटाएं