आनन्द मार्ग एवं प्रउत दर्शन

आनन्द मार्ग एवं प्रउत दर्शन

        आनन्द मार्ग मनुष्य का जीवन दर्शन है। जिसका एक अंग प्रउत दर्शन है। प्रउत दर्शन आनन्द मार्ग की उस अवधारणा का नाम है। जिसके माध्यम से सामाजिक आर्थिक जगत की समस्या का निराकरण किया जाता है। आनन्द मार्ग ने बताया है कि ब्रह्म सत्य तथा जगत भी आपेक्षिक सत्य है। अत: जगत के विभिन्न क्षेत्रों में मनुष्य को जयी होना होता है। प्रउत दर्शन ऐसी सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए आया है। जिससे मनुष्य को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास करने की सभी सुविधा सहज एवं सुलभ हो जाए।
      आनन्द मार्ग मनुष्य को बंधन मुक्त करने के साथ एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की संकल्प यात्रा में लेकर चला है। इस यात्रा मे मनुष्य को पग पग पर कई प्रश्नों के उत्तर देने होते है। इसी क्रम में मनुष्य के आर्थिक प्रश्न का उत्तर प्रउत है। चूंकि आर्थिक प्रश्न का संबंध व्यक्ति एवं समाज से है। अत: प्रउत  को सामाजिक आर्थिक दर्शन कहा जाता है।
        यह सत्य है कि प्रउत के पास समाज के सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं है। इसलिए प्रउत को पग पग पर आनन्द मार्ग का सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए वर्तमान युग में  समाज के समक्ष जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, नस्लवाद, साम्प्रदायिकता एवं अस्पृश्यता की समस्या है। यहाँ प्रउत को आनन्द मार्ग की एक अवधारणा नव्य मानवतावाद का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए कहा जा सकता है कि बिना आनन्द मार्ग के प्रउत अपूर्ण है।
         विश्व की ज्वलंत समस्याओं का निराकरण आनन्द मार्ग क्या एवं क्यों है। इसमें राजनीति एवं अर्थनीति की समस्या के लिए प्रउत एक आर्थिक प्रजातंत्र की व्यवस्था को लेकर आया है। जहाँ राजनीति एवं अर्थनीति के अलग अलग रास्ते हो जाते है। मांटेस्क्यू ने शोषण को रोकने के लिए शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत दिया। जिसके तहत व्यवस्थापन, कार्यपालन एवं न्यायपालन शक्तियों को पृथक किया गया। यहाँ मांटेस्क्यू एक भूल कर गया उसे राजनैतिक एवं आर्थिक शक्तियों का पृथक्करण कर देना था। यदि ऐसा होता तो लोकतंत्र अपने मूल अर्थ जनता का, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा को सही पैमाने में सिद्ध करता। इस सबके चलते मनुष्य भूलकर प्रउत को एक राजनैतिक आंदोलन समझ लेता है। प्रउत एक समाज आंदोलन है। जिसकी राह में राजनीति के समीकरण संतुलित हो जाते है। राजनीति एक समस्या राजा अर्थात सत्ता कैसी तो प्रउत उत्तर देता है कि सदविप्र बोर्ड को तु  सत्ता जाना। जो भूमा भाव का साधक है तथा यम नियम को पालन करते हुए

 चलता है। तब राजनीति प्रश्न करती है कि इसकी क्या गारण्टी की सदविप्र पथ भ्रष्ट नहीं होगा? तब प्रउत की कहता कि हे राजनीति तुझे आनन्द मार्ग को जानना होगा तब तुम स्वयं कहोगी कि सदविप्र व्यवस्था सर्वोत्तम व्यवस्था है। प्रमाणित होता है कि आनन्द मार्ग की पथ निर्देशना प्रउत को पल पल आवश्यक है।
        प्रउत को आध्यात्म प्रधान अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। आध्यात्म की परिभाषा के लिए प्रउत को आनन्द मार्ग की पाठशाला में अध्ययन करना होता है। आनन्द मार्ग ने व्यक्ति एवं समाज संबंध को समझाने के लिए प्रउत दिया है। अतः प्रउत की विषय वस्तु यही समाप्त हो जाती है लेकिन यह आनन्द मार्ग का अंग है। इसलिए समग्र प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम है। वैधानिक कारणों के चलते आनन्द मार्ग प्रचारक संघ एवं प्राउटिस्ट यूनिवर्सल दोनों स्वतंत्र संस्थान है। इन्हें इसी रुप में कार्य करते रहने से श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का संकल्प पूर्ण होगा।

निवेदक

➡ श्री आनन्द किरण 

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4 टिप्‍पणियां:

  1. Baba nam kevalam prempita baba ki jay ho jo ek baba baba ki tarfe bade gya vo chahkar bhi piche nhi aa sakta h ager vo khud thodena bhi che to bhi prem pita uska hath pkde rhte h to dubne ka to saval hi nhi peda hota h baba nam kevalam

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  2. Baba nam kevalam ji dada ji aapene shi kha h ek bar sad vipar bangye to koe bhi takat aapko us prem pita ki di gye takat ko hara ya kat nhi sakata h🙏🙏prem pita baba ki jay ho baba nam kevalam🙏🙏

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