प्रउत 🆚 विभिन्न विचारधारा

प्रउत  🆚 विभिन्न विचारधारा

( प्रउत - श्री प्रभात रंजन सरकार  द्वारा प्रतिपादित एक  सांस्कृतिक,सामाजिक एवं आर्थिक दर्शन है) 

       जगत की गति ऋजु रैखिक है। चलने के पथ में एक दूसरे के सापेक्ष, परिपेक्ष अथवा बनाम से होकर आगे बढ़ना होता है। आज के युग में अच्छे विपणन के लिए बाजार में उपलब्ध अन्य प्रतिभागियों की क्षमता का भी अवलोकन करना होता है। व्यापारिक जगत हो अथवा वस्तु जगत सब ओर देखकर चलना अधिक सुविधा जनक रहता है। इसलिए प्रउत को विश्व रंगमंच पर उपस्थित विभिन्न विचारधारा से अध्ययन करते हुए देखते हैं।
         हम सभी अध्ययनकर्ताओं में से एक मांग आई थी कि प्रउत एवं गाँधी, अम्बेडकर तथा आरएसएस के संदर्भ में समझते हुए चलना है। इसके लिए आपके सहयोग से एक प्रयास किया जाता है।
(1) युरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया व अन्टार्कटिका के चलने की दिशा एवं प्रउत ➡ माना जाता है कि आधुनिक सभ्यता का प्रथम सूर्योदय युरोप में हुआ तथा इसने शेष विश्व को जगाया। यहाँ के लोगों के जीवन में चर्च का हस्तक्षेप अधिक था तथा जीवन के पग पग पर उनके दिशा निर्देश में गति होती थी। इसलिए इसके विरुद्ध एक क्रांति हुई। उसने यहाँ की दशा एवं दिशा बदल दी। सामाजिक जगत में खुलापन आया तथा राजनैतिक आर्थिक जगत में धन के प्रति अधिक मोह बढ़ा जिसके परिणामस्वरूप इसके उपयोग एवं समाज की प्रगति को परिभाषित करने के लिए व्यक्ति एवं समाज केन्द्रित विचारधारा को जन्म हुआ। इस गति से एशिया को छोड़ सारे विश्व की गति को तय किया। यहाँ रुककर प्रउत विचारधारा का अध्ययन करते है। प्रउत विचारधारा मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति के समग्र विकास एवं समाज की व्यवस्था के आदर्शमय संचालन के आधारशिला पर स्थापित एक मजबूत व्यवस्था है। यहाँ अर्थ से अधिक मनुष्य के सर्वांगीण विकास को अधिक महत्व प्रदान है। अर्थ से अधिक समाज की सुव्यवस्था को अधिक बल प्रदान है। इस क्षेत्र में जन्म लेने वाली दोनों आर्थिक विचारधारा एवं अन्य धारणाओं में व्यक्ति एवं समाज के सर्वांगीण विकास से अधिक स्वतंत्रता एवं समानता के मूल्य को अधिक ध्यान दिया गया जबकि प्रउत ने मनुष्य के सर्वांगीण विकास की कला में स्वतंत्रता एवं समानता को सहज ही प्राप्त कर दिया। यह क्षेत्र पर्सनेलिटी के विकास के नाम बाह्य सौदर्य का अधिक महत्व हुआ जबकि प्रउत में व्यक्ति एवं समाज संबंध को स्थापित करने में व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हुआ। मनुष्य इस व्यवस्था के अन्दर जीवकोटी से ब्रह्मकोटी विकास के सभी सुयोग प्राप्त करता है। जो कदाचित इस क्षेत्र की गतिधारा में नहीं है। साम्यवाद एवं पूंजीवाद के चलन एवं प्रउत की विशिष्टता का चित्रण कई विचारकों द्वारा किया गया है। जो पत्र-पत्रिकाओं में उपलब्ध है। उन सबको नमन करते हुए यह मोटामोटी जानकारी दी गई है।
(2)  भारतवर्ष को छोड़ शेष एशिया क्षेत्र के चलन की दिशा एवं प्रउत ➡ भारतवर्ष को छोड़कर शेष एशिया में तीन जीवनशैलियाँ है।
(प्रथम) युरोपीय खुलापन का परिवेश है। ➡ जापान सहित उन्नत एवं विकाशशील देश के परिदृश्य की यह छवि है। जहाँ युरोप के अनुकूल विकास को परिभाषित करती है। प्रउत इस चलन के समक्ष एक आदर्श प्रतिमान में खड़ा है। व्यक्ति के शुद्ध एवं परिस्कृत संस्कार एवं चहुमुखी विकास को सुनिश्चित करता है।
(द्वितीय) भगवान बुद्ध की दुनिया है। ➡ पूर्वोत्तर एशिया में बुद्ध के चलन ने इतना प्रभावित किया था कि बाहर से युरोपीय चलन गति को स्वीकार करने पर भी अन्दर के संस्कार सत्य की खोज में बढ़ाया। यह युरोपीय चलन दिशा से कुछ उन्नत अवस्था में है। लेकिन सर्वांगीण व चहुंमुखी विकास से दूर है। यहाँ मनुष्य प्रयोगशाला बनता है। स्वयं पर प्रयोग करता है। प्रउत मनुष्य को जीवन जीने की वह शैली प्रदान करता है। जहाँ मनुष्य को प्रगति ही प्रगति करनी होती है। बुद्ध की दुनिया में मनुष्य प्रवेश करता है  जीवन जाने के लिए तथा बाहर आता है मृत्यु को जानकर। प्रउत की दुनिया में मनुष्य प्रवेश करता है अपनी उपयोगिता को जानने के लिए मनुष्य का जीवन का एक एक क्षण उपयोग होकर पूर्णत्व की ओर निकल पड़ता है।
(तृतीय) मोहम्मद की करिश्माई परिसीमा ➡ यहाँ मनुष्य की अर्थ,  ज्ञान, विज्ञान व कर्म की शक्ति कुरान की आयतों में दबी रहती है। जहाँ से बाहर काफिर की दुनिया है। प्रउत जगत में व्यक्ति में वास्तविक धरातल को स्पर्श कर यर्थाथ की दुनिया पाता है। जहाँ मनुष्य सम्पूर्ण विकास की चरम अवस्था को पाता है। मोहम्मद की मोहब्बत में गर्दनें काटी जाती है जबकि प्रउत हकिकत से रूबरू कराकर प्रेम से जगत में जयी बनाने की कला सिखाता है।
(3) भारतवर्ष में चलन की गति एवं प्रउत की विकास यात्रा ➡ भारतवर्ष एक ऐसा परिक्षेत्र है जहाँ सर्वे भवन्तु सुखिन है तो वहाँ अस्पर्शयता की दीवार भी है। यहाँ मनुष्य ने साधना मार्ग पर रहकर जीवन लक्ष्य को पाया है तो स्व: के अभिमान में रक्तपात की नदियाँ बहाई है। भारतवर्ष के वर्तमान परिदृश्य में गांधी का भारत राष्ट्र दिखता है तो, अम्बेडकर की ओट में खोया भारत भी है। एक भारत ऐसा भी जो आर एस एस के स्वप्न में है। भारत के रूप आस्थाओं में गोते लगता है।
(१) गांधी का भारत एवं प्रउत ➡ महावीर बुद्ध की अहिंसा तथा महात्मा ईसा के संघर्ष की कहानी को मिलाने से गांधी का भारत दिखाई देगा। इस भारत ने भारतवर्ष राजनैतिक स्वाधीनता दिलाने का यश पाया है। यहाँ सहिष्णुता एवं विकास के भारतवर्ष के रूप में लिखा गया था। प्रउत का विश्व प्रगतिशील उपयोग तत्व के द्वारा निर्धारित होता है। गांधीवाद में स्व:निर्मित कुटीर उद्योग में प्रार्थना की शक्ति दिखाई देते हैं। वही प्रउत के पास कृषि, उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्यिक ऐसी कला सीखाता है। जहाँ आध्यात्मिक संस्कार जीवित रहते हैं। गांधीवाद में सत्य, अहिंसा के प्रयोगों की सफलता दिखती है वही प्रउत में यम नियम व षोडश विधि मनुष्य के निर्माण की विधा मिलती है। गांधीवाद में राजनीति देश का भविष्य निर्धारित करती है जबकि प्रउत में आध्यात्म प्रदान सामाजिक आर्थिक दर्शन समाज की जीवन रेखा खींचती है।
(२) आस्था एवं विश्वास में चलता भारत एवं प्रउत ➡ इस भारतवर्ष में आस्था एवं विश्वास के बल पर मनुष्य को जीवित रखा है, वही प्रउत साधना एवं प्रगति के आयाम पर व्यष्टि व समष्टि का संगठन किया है।
(३) अम्बेडकर का भारत एवं प्रउत ➡ आज के भारत की राजनीति अम्बेडकर के भारत की जयघोष करती हुई चलती है। यहाँ दबी हुई एवं दबाकर रखी गई। समाज व्यवस्था पर एकात्म मानव समाज का निर्माण है। जबकि प्रउत में संगच्छध्वम् की गति पर चलता भारत है। अंबेडकर में मेरा वर्ग एवं आपका वर्ग का सूत्र है जबकि प्रउत सम समाजिकता पर स्थापित एक अखंड व विभाज्य मानव समाज है।
(४) आरएसएस का भारत व प्रउत ➡ वर्तमान में भारत को इस चश्मों से देखा जा रहा है। जो आर्थिक दृष्टि से मज़बूत एक अखंड भारत वर्ष देख रहा है। वही प्रउत आत्मनिर्भर सामाजिक आर्थिक इकाइयों पर स्थापित आनन्दमय विश्व को धारण किया है। यहाँ हिन्दू व अहिन्दू  का गणित है जबकि प्रउत में एक चुल्ला एक चौका, एक है मानव समाज दिखाई देता है। यहाँ भू भाव प्रवणता पर खड़ा हिंदू राष्ट्र दिखाया जाता है जबकि प्रउत मानव धर्म की भावगत अभिव्यक्ति भागवत धर्म वाला विश्व बनाता है। यहाँ अर्थनीति के रुढ़ पैमाने है जबकि प्रउत में  सफलत्तम अर्थव्यवस्था है। जो आध्यात्म पर आधारित सामाजिक आर्थिक दर्शन है।
         

अन्त तेरी उपमा तुम हो सही से ही प्रउत प्रणेता को प्रउत अर्पित करता हूँ।

निवेदक

श्री आनन्द किरण


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