🌹धर्मयुद्ध मंच से 🌹
®श्री आनन्द किरण®
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©शरदोत्सव बनाम शक्ति पूजा ©
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🚩भारतवर्ष में इन दिनों शरदोत्सव चल रहा है, चारों ओर शक्ति उपासना का कार्य शुरू हुआ है। नौ दिन तक शक्ति को विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। समाज में इसको लेकर विभिन्न कहानियाँ एवं कथाएँ प्रचलित है। इस पर एक पडताल की आवश्यकता है। शक्ति पूजा के पीछे क्या इतिहास रहा है तथा शरदोत्सव की उपादेयता क्या है?
🚩 भारतवर्ष में ज्ञान विज्ञान के उषाकाल में अर्थात वैदिक युग में प्राकृत शक्ति की महत्ता को चित्रित किया गया। कालांतर में इसको लेकर विभिन्न शोध होते गए। इनके प्रति अपने आदर एवं सत्कार प्रकट करने के क्रम में प्राकृत उपासना का धंधा चल पड़ा। भारतवर्ष में प्रचलित तंत्र परंपरा ने कभी भी इस उपासना को समर्थन नहीं दिया तथा उपासना यह बाह्य रूप नहीं चल पड़े, इसलिए उन्होंने अनवरत संघर्ष भी किया; जो भारतीय साहित्य में देवासुर संग्राम के नाम से चित्रित किया। इस संग्राम एक सकारात्मक परिणाम यह आया कि उत्तर वैदिक काल में उपनिषदों ने आत्मज्ञान को अर्जित किया। कालांतर में ज्ञान विज्ञान को कथा एवं कथन से समझाने की परंपरा विकसित हुई। सर्वप्रथम पौराणिक युग में विभिन्न देवी देवताओं का चित्रण किया गया था। भारतवर्ष के इतिहास में राजा एवं राजवंशों का महत्व है। इन राजाओं एवं राजवंशों ने शक्ति की महत्ता को अंगीकार करते हुए, अपने राजपुरोहित के माध्यम से शक्ति पूजा के कार्यों को आरंभ किया। राजवंशों द्वारा अपने वंश की पहचान को विशिष्टता देने के क्रम में भारतवर्ष में देवी के विभिन्न रूपों का आगमन हुआ।
🚩भारत में शरदोत्सव का भी इतिहास है। सभ्यता के युग में फसल चक्र तथा विभिन्न मौसम की युगसंधि में विभिन्न प्रकार के उत्सव के महात्म्य को स्वीकार किया गया। फाल्गुनोत्सव, वैशाखोत्सव, श्रावणोत्सव एवं शरदोत्सव मुख्य रूप से प्रकाश में आए। विक्रम संवत के अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में शरदोत्सव मनाया जाता है। आरंभ में इन दिनों को शिशु, बालक, कला, साधरण दिवस तथा विजयोत्सव के रुप में मनाया था। कालांतर क्षत्रिय एवं राज्य द्वारा अस्त्र शस्त्र के प्रयोग व परिक्षण तथा सैन्य क्षमताओं के प्रदर्शन के रुप में आयोजित किया जाने लगा। विजय दशमी को इस उत्सव की इतिश्री होती थी अर्थात इस दिन शस्त्र पूजन की परंपरा विकसित हुई। इस प्रकार शरदोत्सव के मनाने के तरीकों में अन्तर आता गया। कर्मकांड के बढ़ते प्रभाव एवं शक्ति पूजा के प्रति राजवंशों के आकर्षण ने शरदोत्सव को शक्ति पूजा के रुप में स्थापित किया।
🚩 गुजरात व राजपुताना में शक्ति के समक्ष क्रमशः गरबा एवं डांडिया नृत्य का अविष्कार किया। शक्ति उपासना के साथ इनका भी महत्व बढ़ता गया। इसी प्रकार बंगाल में दुर्गा पूजा के रुप में विकसित हुआ। कालांतर में सांस्कृतिक आदान प्रदान के माध्यम से सम्पूर्ण भारत में छा जाता है।
🚩 उपसंहार में शरदोत्सव में जड़ उपासक बाह्य शक्ति की उपासना करते है तथा आध्यात्मिक साधक अपने साधना शक्ति की ओर ध्यान केंद्रित करते है। इन दिनों प्रकृति में नेगेटिव माइक्रोवाइटा का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए व्यक्ति एवं व्यक्तियों के समूह को विशेष प्रभाव से धनात्मक माइक्रोवाइटा के प्रभाव को विकसित करना होता है।
🚩यह मनुष्य की सोच एवं ज्ञान पर निर्भर करता है कि किसी प्रकार नकारात्मक शक्तियों से अपनी रक्षा करनी है। आध्यात्मिक साधना एवं योग ही सकारात्मक ऊर्जा जाग्रत करने का सबसे बड़ा स्रोत है।
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श्री आनन्द किरण@शरदोत्सव
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