प्रउत की शिक्षानीति

        प्रउत की शिक्षानीति 


   प्रउत शिक्षा नीति का प्रथम बिन्दु 

       *सा विद्या या विमुक्तये

विद्या वह है जो मनुष्य आधिभौतिक, आधिदैविक व आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त कर जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष में प्रदान करती है। विश्व की किसी भी शिक्षा पद्धति ने शिक्षा के इस रुप चित्रित नहीं किया है तथा वर्तमान में प्रचलित शिक्षा प्रणाली तथाकथित व्यक्तित्व निर्माण के नाम पर मनुष्य को त्रिबंधनों में जकड़ लेती है तथा अन्ततोगत्वा मनुष्य एक यंत्र बनकर रह जाता है अथवा पाश्विक क्रियाकलाप की ओर आकर्षित होता है। जो विश्व की किसी भी शिक्षा पद्धति का लक्ष्य नहीं है। 


    प्रउत शिक्षा नीति का दूसरा बिन्दु

 *समान, निशुल्क, अनिवार्य एवं सुलभ शिक्षा

 विश्व की कई शिक्षा नीतियों ने इस  की आवश्यकता स्वीकार की है लेकिन यह लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रही है। समान परीक्षा नीति तभी सफल सिद्ध होती है जब शिक्षा व्यवस्था में ग्रामीण-शहरी, धनी-निर्धन, जाति-सम्प्रदायगत, लिग, नस्ल, शिक्षित अशिक्षित अभिभावकों इत्यादि आधार पर भेद मूलक तथा संसाधनों के अभाव को झेलती हुई न हो। इसके लिए शिक्षा को निशुल्क, अनिवार्य एवं सुलभ करना आवश्यक हो जाता है। जहाँ शिक्षा में यह व्यवस्था होगी वहाँ शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं हो सकता है। इसके अभाव में आज के शिक्षालय व्यवसाय के केन्द्र बने हुए है।


   प्रउत शिक्षा नीति का तृतीय बिन्दु

*नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश युक्त अत्याधुनिक शिक्षा*  

यहाँ शिक्षा नीति प्रगतिशील गुणों को धारण करती है। ज्ञान विज्ञान की तकनीक के साथ मानवीय एवं दैविक गुणों का संचार करती है। जिससे शिक्षा प्राप्ति के बाद मनुष्य कुपथ पर नहीं चले तथा सभ्यता के विकास से कोशों दूर भी नहीं रहे। 


     प्रउत शिक्षा पद्धति का चतुर्थ बिन्दु 

*शिक्षा के संचालन का भार शिक्षाविदों के हाथ में रखता है*

  यह बिन्दु शिक्षा जगत में क्रांति का कार्य है। आज प्रचलित शिक्षा नीति राजनेताओं एवं पूंजीपतियों के हाथ का खिलौना बन हुई है। कई शिक्षा अनैतिक, अल्प शिक्षित तथा अनभिज्ञ धनिकों की दासी बनी हुई है, तो कई नासमझ राजनीति की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ी हुई है। इसलिए प्रउत ने शिक्षा के संचालन का भार आध्यात्मिक नैतिकवान शिक्षाविदों के हाथ में दिया है। जिससे प्राचीन भारतीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति के गुणों को स्वीकार किया जा सकेगा। शिक्षा लाचार नहीं हो इसलिए वित्त भार की व्यवस्था राज्य पर रखी गई है। 


      प्रउत शिक्षा नीति का पंंचम बिन्दु 

         *रोजगार मूलक शिक्षा*  

आज की शिक्षा एवं राज्य ने नागरिकों के रोजगार का भार अपने कंधों पर नहीं लिया है। जिसके चलते समाज में विषम एवं विकराल स्थिति बनी हुई है। प्रउत की शिक्षा नीति रोजगारमुखी है तथा प्रउत नागरिकों को शत प्रतिशत रोजगार की ग्रारंटी देता है। बैरोजगारी व्यक्ति अथवा परिवार की नहीं समाज एवं राज्य की जिम्मेदारी है। जो रोजगार मूलक शिक्षा के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। 


    प्रउत शिक्षा नीति का षष्टम बिन्दु 

*शिक्षार्थी में वैश्विक चिन्तन एवं नव्य मानवतावादी सोच का विकास करना है

वर्तमान युग विश्व शान्ति एवं पर्यावरण कि शुद्धता की राग अलापते है लेकिन अपने गर्भ में गंदी सोच लेकर घुमते है। शिक्षार्थी में जब तक वैश्विक दर्शन एवं नव्य मानवतावादी विचारों का विकास नहीं किया जाएगा तब तक एक पूर्ण एवं परफेक्ट मनुष्य का निर्माण नहीं किया जा सकता है। इसलिए प्रउत की शिक्षा पद्धति संकीर्ण मनोभाव को शिक्षा की संपदा स्वीकार नहीं करता है तथा इनका शिक्षा में प्रवेश नहीं होने देता है। 


    प्रउत शिक्षा नीति का सप्तम बिन्दु

*मातृभाषा में शिक्षा तथा अधिक से भाषाओं के सिखने अवसर हो*  

प्रउत स्वीकार करता है कि सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था मातृभाषा में हो तथा शिक्षार्थी को अधिक से भाषा सिखने के अवसर प्राप्त हो। मातृभाषा सिखने, अधिगम करने एवं शिक्षा का आत्मसात करने का सही एवं उचित माध्यम है इसलिए शिक्षा का माध्यम सदैव मातृभाषा होना चाहिए। शिक्षार्थी सम्पूर्ण विश्व को जान एवं समझ ले इसलिए अधिक से अधिक भाषाओं के सिखने अवसर पर सहज एवं सुलभ उपलब्ध हो। 


     प्रउत शिक्षा नीति का अष्टम बिन्दु

 *शिक्षक को चयन में नैतिक मापदंड की अनिवार्यता है*

 शिक्षार्थी को गढ़ने वाले कारीगर शिक्षक में शैक्षिक ज्ञान के साथ नैतिकता होना आवश्यक है। अपनी टीम जीताने एवं शाला के अच्छे परिणाम के लिए अनैतिक मापदंड का उपयोग करता शिक्षक को देख कर शिक्षार्थी अनैतिक पथ पर चलता है। इसलिए शिक्षक के लिए नैतिक नियम एवं आचरण संहिता का होना आवश्यक है। यह विशेषता मात्र एवं मात्र प्रउत शिक्षा नीति में है। 

   प्रउत शिक्षा नीति का नवम् बिन्दु 

*शिक्षा में अभिभावकों की भागीदारी स्वीकार करता है*

 शिक्षा देना मात्र विद्यालय अथवा शिक्षक की ही जिम्मेदारी नहीं है अपितु शिक्षार्थी के अभिभावक की भी जिम्मेदारी है। अभिभावक अयोग्य होने पर समाज उन शिक्षार्थी के उचित व्यवस्था करनी चाहिए। प्रउत इसे स्वीकार करता है तथा शिक्षा को इनके सहयोग से चलाता है। 


    प्रउत शिक्षा नीति का दशम बिन्दु

*शिक्षा में समाज एवं सरकार की भी जिम्मेदारी स्वीकार करता है*

 प्रउत स्वीकार करता है कि शिक्षाश

 एवं विद्यालय के बीच चलने वाली कड़ी नहीं है। यह समाज का अनिवार्य घटक है। इसलिए शिक्षा में समाज एवं सरकार को भी जिम्मेदारी लेने होगी। टीवी, रेडियो, समाचार पत्र, शिक्षा मूलक अभिनय इत्यादि माध्यम से सकारात्मक बना होगा तथा शिक्षा का वित्तीय भार सरकार के कंधों पर होगा। 


प्रउत शिक्षा नीति का एकादश बिन्दु

         *आनन्ददायी शिक्षा है*

 आजकल आनन्ददायी शिक्षा अथवा Education with happines का प्रचलन चल रहा है। प्रउत की शिक्षा नीति कहती है कि शिक्षार्थी के मन में ज्ञान की भूख जगाने वाली शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा है। यह शिक्षा को सुखदायक बनाती है तथा शिक्षा के साथ दीक्षा के समावेश से शिक्षा आनन्ददायी बनती है। आध्यात्मिकता के बिना शिक्षा आनन्ददायी बनाना दिवास्वप्न है। प्रउत आध्यात्मिक एवं ज्ञान की भूख जगाकर शिक्षा को आनन्दमय बनाता है। जिज्ञासा को शिक्षार्थी के सभी लक्षणों में से सबसे उत्तम लक्षण माना है। 


  प्रउत शिक्षा नीति का द्वादश बिन्दु 

     *प्रगतिशील परीक्षा प्रणाली है* 

शिक्षा एवं परीक्षा का घनिष्ठ संबंध है। इसलिए परीक्षा प्रणाली का प्रगतिशील होना आवश्यक है। युग की आवश्यकता के अनुसार परीक्षा व्यवस्था को नये आयाम धारण करना चाहिए। मूल्यांकन करते समय अशुद्धियों से अधिक परीक्षा के उत्तर देने भाव को भी समझना होगा। इसलिए प्रउत परीक्षा प्रणाली प्रश्न के उत्तर को परीक्षार्थी के समझने योग्य भाषा में देने छूट देता है। 

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➡ श्री आनन्द किरण

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