प्रउत की कृषि नीति क्यों

           प्रउत की कृषि नीति


          प्रउत में वर्णित कृषि पर बाबा के विचार मानवता के लिए वरदान है। उन्हें एक विचारक के दृष्टिकोण से अध्ययन करना समय की मांग है। 

   


    कृषि को उद्योग का दर्जा देना
प्रश्न यह है कि उद्योग का दर्जा क्यों मिलना चाहिए? 


 (१) उद्योग का अर्थ किसी वस्तु का उत्पादन करना अथवा निर्माण करना है तथा इससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की नीव माना जाता है। कृषि खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, रेशों इत्यादि का उत्पादन किया जाता है तथा इस पर अनेकोंनेक उद्योग धंधे जीवित है। अतः कृषि का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। सुकरात के शब्दों में "जब खेती फलति फूलति है तो उद्योग धंधे पनपते है, खेतों को बंजर छोड़ दिया जाता है तो उद्योग धंधे ठप्प हो जाते है" अर्थात खेती अर्थव्यवस्था की मूल है। खेती एक ऐसा व्यवसाय है जहाँ सबसे अधिक जोखिम रहती है। यह मानसून, जलवायु एवं प्राकृतिक वातावरण से सबसे अधिक प्रभावित होती है, इसलिए अर्थव्यवस्था के कर्णधारों को खेती का सबसे अधिक ख्याल रखना चाहिए। यह खेती को उद्योग का दर्जा देने से ही संभव हो सकता है। उद्योग का दर्जा मिलने के साथ यह राष्ट्रीय आय के निर्धारण का महत्व हिस्सा बन जाएगा। किसान को कृषि हेतु बुनियादी सुविधाएं खाद, बीज, विद्युत, पानी इत्यादि उपलब्ध कराना सत्तासीनों का दायित्व बन जाएगा। 


 (२)कृषि को उद्योग का दर्जा मिलने से किसानों की बुनियाद समस्या कृषिगत उत्पाद का भावतय करने का अधिकार कृषक पर्षद के पास रहता है। वह अपना लाभ हानि देखकर तय करेगा। इससे कृषकों अपनी मेहनत का उचित पारिश्रमिक मिलेगा। 


 (३) कृषि के संदर्भ में एक कहावत है कि कृषि मानसून का जुआ है। यह किसान के भविष्य को असुरक्षित करता है। उद्योग का दर्जा मिलने से उद्योग की सुरक्षा एक पक्ष बीमा कृषि को प्राप्त होगा तथा यह नियमानुसार किसान द्वारा अपनी क्षति का दावा करने पर नियमानुसार प्राप्त होगा। 


(४) एक प्राचीन कहावत बताती है कि खेती उत्तम है। प्राचीन कृषि शास्त्रियों एवं कृषि विचारकों को सच्ची श्रद्धांजलि खेती को उद्योग का दर्जा देकर ही दी जा सकती है। खेती एक प्रथम श्रेणी का उद्योग है। इससे इस रूप में स्थापित कर कृषक का सही अर्थों में सम्मान किया जा सकता है। 


           कृषि में प्रउत क्यों
         कर्ज के बोझ तले दबे अन्नदाता के आंसू कर्जमाफी की राजनीति से नहीं पौसे जा सकते है। उनकी अश्रुधार में बहता पानी लहू की धार में न बदले इसलिए कृषि नीति को प्रगतिशील उपयोग तत्व के आधार पर संगठित करना होगा।
(१) सहकारिता के आधार पर कृषि करना,
(२) कृषि का तकनीक एवं आधुनिकीकरण करना।
(३) नियोजित कृषि एवं ,कृषि का वैज्ञानिकरण।
(४) एकीकृत खेती।
(५) कृषि प्रबंधन।
(६) बहुद्देशीय एवंबीमित कृषि।
        इस प्रकार कृषि का संगठन तैयार करने पर अर्थव्यवस्था के प्रथम पहरी कृषि, अपने आपको सुरक्षित, प्रगतिशील एवं सफल अनुभव करेगा। प्रउत की कृषि नीति पर आधारित कृषि के संगठन करने के बाद एक किसान को पुछा जाएगा कि क्या आप अपने पुत्र- पुत्रियों को किसान बनाना चाहोगे तो वह कहेगा हा, हा और हा। आज का किसान उक्त प्रश्न का उत्तर नहीं में देता है।
         किसानों के हितों की वास्तविक रक्षा करने वाला एकमात्र किसान संगठन - यूनिवर्सल प्राउटिस्ट फार्मेर फेडरेशन है। यह किसानों को दिवास्वप्न नहीं दिखाता है। यह किसानों को अपने वास्तविक हक के लिए तैयार करता है।वर्तमान विश्व के सभी किसान संगठन किसानों को मात्र स्वप्न दिखाते , उनको हकिकत में तबदील करने का रसद उपलब्ध नहीं कराते हैं। अन्य शब्दों में कहा जाए तो-
  राजनीति किसानों के नाम पर रोटियां सेकती है

➡ श्री आनन्द किरण

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