क्या राजनीति व लोकतंत्र के माध्यम से प्रउत स्थापित किया जा सकता है?
यह विषय ऐसा है, जिसका उत्तर नहीं है फिर विश्लेषण करना होता है। कुछ शंकाएं इस विषय को समझने के लिए समाधान की मांग करती है। यदि प्रश्न का उत्तर नहीं था तो बाबा ने प्रउत को प्राउटिस्ट ब्लॉक आफ इंडिया के माध्यम से राजनीति से परिचित क्यों करवाया? इस शंका का निवारण कर हम उक्त प्रश्न का उत्तर की पुष्टि कर सकते है।
इस पृथ्वी पर यह युग लोकतंत्र का युग है। जहाँ प्रत्येक विचारधारा को जन समर्थन प्राप्त कर ही अपनी सर्वोच्चता व सत्यता को स्थापित करनी होती है। इस परिस्थिति में लोकतंत्र के साधनों की अवहेलना नहीं की जा सकती है। प्रउत की अवधारणा आर्थिक लोकतंत्र
राजनैतिक प्रजातंत्र विचारधारा के परिवर्तन के सिद्धांत को लेकर चलती है। जहाँ एक दल की सरकार के बाद दूसरे दल की सरकार आने पर सभी मूल्यों के पुनर्गठन का कार्य शुरू होता है। इसके बाद वापस उसी दल सरकार आने पर नये मूल्य बीच में छोड़ कर अपने मूल्यों को पुनः गुरुत्व दिया जाता है। इसी बीच तीसरे दल की सरकार आ जाने पर एक ओर प्रकार के मूल्य आते हैं। इस प्रकार मूल्यों के बनना एवं बिगड़ना जारी रहता है। जिससे समाज का निर्माण नहीं होता है। इस दृश्य में विभिन्न विचारधारा राजनीति के रंगमंच पर अपना अभिनय करती है। एक दूसरे का विरोध तथा आरोप प्रत्यारोप से समाज में एक गंदा वातावरण बनता है। जिससे समाज में गुटबाजी का जन्म होता है। यह गुटबाजी राजनैतिक चाल प्रतिचाल में चलते हुए समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए उचित अनुचित सभी हथकंडों का उपयोग करते है। इतना ही नहीं कई बार तो यह राजनीति गहन षड्यंत्र भी रच देती है। राजनीति प्रजातंत्र के चलते भाषावाद, जातिवाद, साम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद इत्यादि समस्या का हल नहीं निकलता है तथा राजनीति पर दबाव समूह वर्चस्व बढ़ता जाता है। जिससे दंबगता का जन्म होता है। यह सत पुरुषों के राह के कांटे बनते है। यह वातावरण अच्छे लोगों का नहीं है।
आर्थिक लोकतंत्र में विचारधारा एवं आर्थिक नीतियों में प्रगतिशीलता रहती है। समाज में विरोधी विचारधारा तो रह सकती है लेकिन गंद फैलाने साधन उपलब्ध नहीं होते है। सबसे बड़ी बात आर्थिक लोकतंत्र में दलगत राजनीति नहीं होती है। यहाँ व्यक्ति नैतिकता एवं कार्य कुशलता का मूल्यांकन होता है। आर्थिक लोकतंत्र में राजनैतिक शक्तियों एवं आर्थिक शक्तियों का पृथक्करण होता है। इसलिए दंबगता तथा लुटपाट के तथ्य को स्थान नहीं मिलता है। यहाँ दबाव समूह तथा गुटबाजी को स्थान नहीं दिया मिलता है। इसलिए समाज निर्माण में बाधक तत्व जाति, नस्ल, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा इत्यादि वाद नहीं पनपते है तथा सच्चे अर्थों में लोकतंत्र तथा समाज का निर्माण होता है। इसलिए आज के युग की सभी समस्याओं का निराकरण आर्थिक लोकतंत्र में निहित है।
राजनैतिक प्रजातंत्र व आर्थिक लोकतंत्र को समझने के बाद पुनः विषय की ओर चलते हैं। राजनीति व लोकतंत्र के माध्यम से प्रउत व्यवस्था की स्थापना नहीं हो सकती है, लेकिन सत्ता के गणित को अपने हाथ में लेने के लिए इस रास्ते को निषेध नहीं किया जा सकता है। इसलिए बाबा ने प्राउटिस्ट ब्लॉक आफ इंडिया के माध्यम से प्रउत राजनीति से परिचय करने के लिए भेजा था। प्रउत की स्थापना के जन आंदोलन को तीव्र करने तथा फैडरेशन के कार्यों में द्रुति देने के साथ राजनीति का प्रवेश द्वार भी बंद नहीं करना है। सतपुरूषों को राजनीति में जाना ही होगा तथा राजनीति में रहकर श्री कृष्ण सी आध्यात्म नैतिकता के बल पर शासन तंत्र को प्रउत को सौपने योग्य वातावरण को तैयार करना होगा।
सारांश में यह सत्य है कि प्रउत व्यवस्था जन आंदोलन एवं फैडरेशन की सक्रियता आएगी, लेकिन राजनीति में सदविप्रों शक्ति के विस्तार से प्रउत व्यवस्था का रास्ता तैयार होगा। हे नूतन सभ्यता के अग्रदूतों! जन आस्था एवं शक्ति के वर्धन हेतु जन आंदोलन को लोकप्रिय बनाओं तथा राजनीति में सतपुरूषों अपनी ओर से भेजो, जो वहाँ आपका प्रतिनिधित्व करेंगे। यहाँ एक बात अवश्य ही रेखांकित करनी होगा कि जन आंदोलन एवं राजनीति की यात्रा एक ही मंच से नहीं की जा सकती है तथा करने का प्रयास घातक तथा ऋणात्मक परिणाम देने वाला होगा।
राजनीतिक प्रजातंत्र के तर्ज पर अर्थनैतिक प्रजातंत्र कहना उचित नही होगा। राजनीति में सत्ताधारी वर्ग राजा की तरह ही व्यवहार करते आये हैं एवं यह सिलसिला चलता ही रहेगा, क्यों न भला, राजतंत्र को पदस्थापित कर ही तो इस व्यवस्था का निर्माण जो हुआ है। प्रजा कहने से ही किसी को राजा का स्थान प्राप्त हो जाता है।
जवाब देंहटाएंप्रउत विचारधारा में हम अर्थनैतिक लोकतंत्र अथवा समाज आंदोलन की दृष्टि से अर्थनैतिक गणतंत्र कहेंगे, समाज एक जनगोष्ठी होती है।