प्रउत एवं नव्य मानवतावाद

प्रउत एवं नव्य मानवतावाद
           आप्त वाक्य में आनन्द मार्ग रुपी  तंत्र पक्षी के दो पंखों में से एक प्रउत तथा द्वितीय नव्य मानवतावाद बताया गया है। इसलिए विषय महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रउत व नव्य मानवतावाद में क्या संबंध है तथा उनकी उपादेयता को भी प्रमाणित करना होता है। इस विषय को अच्छी तरह समझने के लिए नव्य मानवतावाद क्या से अधिक क्यों समझना चाहिए। प्रउत क्यों, कब तथा कैसे को तो हम समझ ही रहे है। साथ में इस विषय के लिए एक प्राउटिस्ट को कैसा होना चाहिए भी समझना आवश्यक है।
          नव्य मानवतावाद का अर्थ तो सभी जानते है कि मनुष्य का चिन्तन, मनन एवं कर्म सम्पूर्ण सृष्टि के जीव अजीव के हित में होना चाहिए अथवा इसके लिए होना चाहिए। जहाँ भी मनुष्य के चिन्तन, मनन एवं कर्म में क्षुद्रता आती है। मनुष्य अपने पदवाच्य  से हट जाता है। नव्य मानवतावाद  की अवधारणा के बिना मानव समाज को एक मंच लाना कल्पनातित कार्य है। जब तक मनुष्य का चिन्तन खंड भाव रहता है। वह अखिल विश्व के भाव में प्रतिष्ठित नहीं हो सकता है। इसके बिना कितनी भी अच्छी व्यवस्था रुग्णित हो जाती है। नव्य मानवतावाद न केवल पार्थिव चिंतन है  अपितु यह सम्पूर्ण सृष्टि के ग्रह ग्रहान्तरण के जीव अजीव में भातृत्व एकता का सूत्र है। इस भाव के रहने से मनुष्य अपने उपादेयता की साधनों का धरातल, आकाश पाताल को उथल पुथल कर चरमोत्कर्ष कर उपयोग करने में संकोच का अनुभव नहीं करता है। इसके बिना प्रउत के संसाधनों के चरमोत्कर्ष का सिद्धांत सिद्ध नहीं होता है। नव्य मानवतावाद के भाव में प्रतिष्ठित हुए बिना प्रउत के मूल सिद्धांतों को चरितार्थ करना मुश्किल है।
        एक प्राउटिस्ट को सर्वजन हितार्थ व सर्वजन सुखार्थ के भाव में प्रतिष्ठित होना होता है। इसके लिए उसका चिन्तन नव्य मानवतावादी होना नितांत आवश्यक है। एक प्राउटिस्ट से समाज आशा करता है कि हमारे सभी दुख दर्द को  अपने साथ लेकर चले। इसलिए मनुष्य के मन को विश्व बंधुत्व के भाव से सृजित करना होता है। इसलिए मनुष्य की बुद्धि की मुक्ति आवश्यक है। मनुष्य की बुद्धि की मुक्ति के लिए नव्य मानवतावाद का होना आवश्यक है।
    उपरोक्त समालोचना से ज्ञात होता है। आनन्द मार्ग रुपी मनुष्य की दोनों बाजुएँ प्रउत व नव्य मानवतावाद है। जहाँ नव्य मानवतावाद सृष्टि के जीव अजीव सबके कल्याण की सोच है वही प्रउत सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ प्रचारित है। दोनों के साथ रहने से मनुष्य का जीवन लक्ष्य आनन्द उपलब्ध होता है।

निवेदक

श्री आनन्द किरण

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