प्रउत कैसे?

प्रउत कैसे?
       प्रउत कब पर विचार डालते ही कई प्रश्न किए गए। इसी क्रम में एक संदेश आया। दादा हम लोग विश्व की जनसंख्या का 0.001 प्रतिशत, भारतवर्ष की जनसंख्या का  0.01 प्रतिशत है तथा बिहार बंगाल की छोड़कर शेष भारत में यह प्रतिशत ओर भी कम है। कुछ ओर संकेत करते हुए दादा जी हमारे पास अपना  एक भी  एम.पी., एम. एल .ए.,  एक भी टीवी व आकाशवाणी चैनल तथा एक भी समाचार पत्र नहीं है। हमारी पत्र-पत्रिकाएँ भी आक्सीजन पर चलती है। ओर तो ओर दादा जी हमारी प्रति व्यक्ति औसत आय, सकल घरेलू उत्पाद एवं सार्वजनिक आय भी आशानुकूल नहीं है। दूसरी ओर आपसे झगड़े में हम विश्व रिकॉर्ड कायम कर सकते हैं । फिर प्रउत कैसे आएगा?
          प्रउत को लेकर आज चल रहे सभी प्रश्नो में सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न  प्रउत कैसे है। प्रउत इस धरती पर है, मात्र सर्वमान्य बनाना है।  सर्वमान्य की यात्रा की शुरुआत अमान्य, अवमान्य,  अल्पमान्य तथा बहुमान्य से होकर चलती है। आज हम अल्पमान्य की स्थिति में है, कल हम बहुमान्य हो सकते है, तो परोसो सर्वमान्य के की स्थिति को पाया जा सकता है। अमान्य एवं अवमान्य की स्थिति में होते तो, अवश्य ही विचारणीय प्रश्न होता। इस स्थिति में भी कर्म कौशल में वैशिष्ट्य से सफलता प्राप्त की जा सकती है। प्रउत की कार्य पद्धति में अपना वैशिष्ट्य है। उस पर कार्य करने मात्र से प्रउत कैसे समीकरण का सर्वमान्य हल ज्ञात किया जा सकता है।
         प्रउत को सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ प्रचारित करते समय, बाबा ने इसे मूर्तरूप देने की योजना भी तैयार कर, हमारे सामने रख दी थी। उस योजना का नाम है, प्राउटिस्ट यूनिवर्सलप्राउटिस्ट यूनिवर्सल पर कार्य करने मात्र से प्रउत कैसे का प्रश्न उत्तर मिल जाएगा।
          बाबा ने सदैव अपनी योजनाओं मूर्त रुप देने के लिए उनके द्वारा प्रदान की गई संस्था की संरचना निर्माण करने पर बल दिया है। उस पर कार्यकर्ताओं ने कभी काल्पनिक तो, कभी यथार्थ रेखाएँ खिंची, मिटाई एवं पुनः खिंची गई। उन पर खिंची गई रेखाओं में स्थायित्व, नविनीकरण व गतिशीलता प्रदान करने  आवश्यकता है। प्राउटिस्ट यूनिवर्सल एवं उसके अंग  UPSF, UPYF,  UPIF,  UPLF व UPFF नामक संगठनों की मजबूत एवं सक्रिय संरचना का निर्माण कर प्रउत कैसे का उत्तर ढुंढा जा सकता है। प्रउत के समाज आंदोलन की भी एक संरचना है। उसका भी निर्माण एवं संचालन करने की प्रारंभिक जरूरत है।
        प्रउत कैसे प्रश्न का उत्तर यह है कि बाबा द्वारा प्रदान किये गए संगठन की संरचना का निर्माण करना एवं कार्यशील रखना है। इन संरचना का निर्माण मात्र कागजों में कर रद्दी की टोकरी में डालने से नहीं चलेगा। सरंचना के निर्माण में समय लगना बड़ा प्रश्न नहीं है। बड़ा प्रश्न यह है कि संरचना के निर्माण में योग्यता का ध्यान रखा गया है अथवा नहीं। बाबा ने प्रत्येक पद की गरिमा का मानक मापदंड का निर्धारित किया है। उसके अनुरूप कार्यकर्ता का निर्माण कर कार्यभार देना होगा।
         प्रउत कैसे का उत्तर है - संगठन की योग्य, मजबूत एवं सक्रिय संरचना का निर्माण करना है। यह संरचना वित्त व्यवस्था के सही निर्धारण नहीं करने एवं कार्यकर्ताओं में साधना, सेवा एवं त्याग के भाव को दृढ़ता से स्थापित नहीं करने से निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में विलंब कर रही है। इसका ध्यान रखना भी प्रउत कैसे समस्या का समाधान करने वालों का दायित्व है।
        अब प्रश्न है कि उपरोक्त संरचना का निर्माण, नियमन एवं संचालन करने दायित्व किसका है? यह दायित्व बाबा की सभी संस्थाओं की जननी आनन्द मार्ग का है। आनन्द मार्ग, मंझे हुए कार्यकर्ताओं को समाज निर्माण की कार्य योजना में देकर अपने पुत्री संगठन को मजबूत बनाने से विश्व में आनन्द परिवार एवं प्रउत की सर्वमान्यता प्रदान कराई जा सकती है।
       प्रउत कैसे प्रश्न का हल खोजने की साधना में रत साधकों! बाबा द्वारा प्रदान किये गए मिशन का निर्माण नियमन एवं संचालन में दृढ़ता, पारदर्शिता व सच्ची लग्न से कार्य करो। प्रउत कैसे का उत्तर पाओ।  बाबा का कथन है - *" सैद्धांतिक नहीं,  व्यवहारिक बनों।"*
- श्री आनन्द किरण उर्फ करण सिंह राजपुरोहित

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