नरेंद्र मोदी जी गुजरात विकास माडल को लेकर दिल्ली के रंगमंच पर अपना अभिनय करने आए थे। नोटबंदी का मजबूत निर्णय लेकर भारतवर्ष एवं प्रत्येक नागरिक का खज़ाना भरने का वचन दिया था। नोटबंदी के 50 दिन बाद का भारतवर्ष एवं 60 महिने बाद का भारतवर्ष आर्थिक लाचारी को लेकर खड़ा रहा। आर्थिक विकास के नाम पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं भारतीय पूंजीपति घरानों की चरण वन्दना करना आर्थिक विकास का काला अध्याय है। भारतवर्ष की राष्ट्रीय आय, सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े भारतवर्ष की विकास यात्रा को रुलाने वाले आंकड़े दिखाते है। राष्ट्र भक्ति की फिल्म को देखने में मस्त नेत्रों को आर्थिक जगत अंधियारा दिखाई नहीं देना, एक प्रकार दृष्टि दोष है।
भारतवर्ष के विकास का गुजरात माडल अवश्य ही आलोच्य विषय है। यह गुजरात के प्राकृतिक वातावरण एवं संविधान की धारा 371 के तहत गुजरात एवं महाराष्ट्र को मिलने वाली औद्योगिक विकास की विशेष सुविधाओं को पूंजीपतियों शरण में ले जाकर सड़कों एवं शहरों सुंदरता की चकाचौंध का माडल है। जिसे गुजरात विकास माडल नाम दिया गया है। अर्थशास्त्र के विद्यार्थी को विकास का बाहरी आवरण को यदि विकास का प्रतिमान के रूप में देखने लग जाए, तब अवश्य ही आर्थिक विकास की अवधारणा को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है। वस्तुतः गुजरात विकास माडल कभी आर्थिक विकास का माडल नहीं था। यह एक जादू ही दुनिया का विकास माडल है जिसके माध्यम से सिद्धहस्त जादूगर दर्शकों दृष्टिभ्रम करता है। भारतवर्ष के राजनैतिक पटल पर कुछ इस प्रकार का दृश्य चल रहा है।
भारतवर्ष के आर्थिक विकास की असफलताओं को इधर-उधर भटका कर देश के सुखद भविष्य का अध्याय नहीं लिख सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नरों के त्याग पत्रों की कतार बढ़ना एक सशक्त एवं व्यापक आर्थिक विकास माडल की मांग करता है। जो वर्तमान भारत सरकार के पास नहीं है। भारतवर्ष के इतिहास के पन्ने बताते है कि अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतवर्ष सोने चिड़िया एवं घी दूध की बहती नदियों का देश था। उसकी बरबादी में अंग्रेजों के आर्थिक कुविचारों का परिणाम है। देश की आजादी के बाद कांग्रेस की आर्थिक नीतियां भारतवर्ष के आर्थिक विकास को ओर अधिक रुग्ण किया है। मोदी जी के पास भी आर्थिक विकास का स्वर्णिम पृष्ठ लिखने वाली अर्थ व्यवस्था नहीं है। मोदीजी के आर्थिक सलाहकार भी आर्थिक विकास की सही दिशा से परिचित नहीं है।
किसी भी देश एवं समाज की सुरक्षा के लिए सामाजिक सोहार्द एवं आर्थिक वितरण में विवेकपूर्णता का होना नितान्त आवश्यक है। कश्मीर का निर्णय अवश्य देश की सुरक्षा को मजबूत करने वाला है। इसकी तारीफ के साथ सुपथ दर्शन करवाना भी आवश्यक है। अपने दलगत एजेण्डे को लागू करने के लिए देश के खजाने को आर्थिक ताकतवरों एवं राजनैतिक लालचियों हाथों गिरवी रखना अथवा लूटना गलत नीति है। जो देश के विकास माडल को नहीं गढ़ सकती है। यह अवश्य एक विचारधारा को सूर्यास्त की ओर ले जाता है।
✍नोट *भारतवर्ष के आर्थिक विकास के लिए आर्थिक आजादी का एक वैचारिक आंदोलन जरूरी है तथा प्रगतिशील उपयोग तत्व निर्मित अर्थ व्यवस्था की आवश्यकता है।*
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करण सिंह शिवतलाव @ भारतवर्ष की सभ्यता एवं संस्कृति
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