विष्णु में विश्व इतिहास ➡ 10




👑 बुद्ध युग- नवम् संभूति 👑 ⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
               विष्णु की दस संभूति के चित्रकारों ने महात्मा बुद्ध को नवम् संभूति के रुप में चित्रित किया है। विषय मान्यता एवं धारणा का है। इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। चित्रकारों की सोच एवं भावनाओं की तारीफ करुंगा कि उन्होंने युग की मानसिकता को देखकर एक योग्य पात्र मतदान किया है।
        विश्व पटल पर 1000 ईसा पूर्व से 700 ईस्वी तक का समय नये धर्म दर्शन की अवधारणाओं का था। भारतवर्ष में जैन धर्म के 24 तीर्थंकर (विशेष रुप महावीर), चार्वाक, शंकराचार्य, नाथ परंपरा, महात्मा बुद्ध, चीन में कंफ्युशस, यूरोप में महात्मा ईसा, अरब में जरथुरुष्ट व हजरत मोहम्मद साहब तथा विश्व के अन्य कौन में इस प्रकार के विचारकों का जन्म हुआ जिन्होंने एक आध्यात्मिक बौद्धिक क्रांति को जन्म दिया। जिसके कारण जन मन के चिन्तन में आमूल शूल परिवर्तन आए। इस युग का प्रतिनिधित्व बुद्ध को देखकर ऐतिहासिक चित्रकार ने कोई भूल नहीं की। बुद्ध के दार्शनिक ज्ञान को अलग रखा जाए तो इन्होंने मन को निरपेक्ष चिन्तन की ओर बढ़ाया है। किसी भी प्रकार पूर्व रूढ़ मान्यताओं दूर रखकर मानव मन को स्वतंत्र गगन उन्मुक्त पंछी की भाँति विचरण को छोड़ा है। यह युग प्रवर्तक का ही कार्य हो सकता है। संभूति युग प्रवर्तक का प्रतिनिधित्व करती है।
       बुद्ध कालीन विश्व समाज अपनी धारणा, मान्यताओं एवं भावनाओं से संघर्ष कर रहा था। नये पथ प्रदर्शकों ने नई चेतना संचार किया तथा युग पर अपने हस्ताक्षर किये। बौद्धिक एवं आध्यात्मिक चेतना के निर्माण के नाम पर समर्पित हुआ। जिसने आगे चलकर वैश्विक चिन्तन को प्रोत्साहन दिया एवं आवश्यकता महसूस करवाईं।
बुद्ध युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन - बुद्ध युगीन मनुष्य वैश्विक चिन्तनधार में बह रहा था। राजा अपनी राज्यों के सीमा बढ़ाने एवं विश्व विजय के अभियान में निकल पड़े।
(१) राजनैतिक जीवन   इस काल के राजा राज्य विस्तार की नीति में लगे हुए थे। बौद्धिक रुप से चिन्तन आगे बढ़ा लेकिन भौतिक  क्षमता के कम विकास के कारण के राजा स्थायी एक छत्रराज स्थापित करने में असफल रहे।
(२) सामाजिक जीवन बुद्ध के काल में सामाजिक जीवन महापुरुषों के अनुरूप नये जाति एवं सम्प्रदाय बनने व बिगड़ लगे। समाज की जीवन रेखा मजहब के आधार पर खिंची जाने लगी।
(३) धार्मिक जीवन इस युग में मनुष्य का धार्मिक जीवन विराट बनने को निकाला था लेकिन कालांतर में मजहब की ओट में खो गया। अनुयायी अपने प्रवर्तक की जीवन शैली का अनुसरण करते हुए, विश्व को समदृष्टि देखने के स्थान पर एक सीमित दायरे स्वयं को समेट कर रख दिया।
(५) आर्थिक जीवन यह आर्थिकता को समर्पित नहीं था। आर्थिक मूल्य उत्तरोत्तर गति करते हुए जातिगत व्यवसाय बन गए। इससे कार्य के कौशल में वृद्धि हुई।
(५) मनोरंजनात्मक दशा व्यक्ति के मनोरंजन के लिए कुछ जातियों ने अपना पेशा बना दिया। इससे उनका पेट भी पला, साथ में आम जन का मनोरंजन होने लगा।
(६) विश्व को देन इस युग के कारण विश्व को नई- नई जीवन शैलियां मिलने लगी।
        बुद्ध युग को भारतीय कालक्रम विभाजकों ने कलयुग के मुख पर रखा, लेकिन मेरे विचार से यह द्वापर युग की मध्यमा अवस्था थी तथा समाज चक्र के यह तृतीय विप्र युग था।
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लेखक - श्री आनन्द किरण
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