➡➡ इन दिनों राजस्थान के राजनैतिक मंच पर कुछ मौसम में बदलाव आया तो पुरानी सरकार के निर्णय
सवालीय निशान रहे। राजनीति का यह समर निश्चित रूप से एक द्वेषमय परिवेश का दृश्य बनाता है। राजीव
गांधी सेवा केन्द्र का नाम अटल सेवा केन्द्र के रुप रखना राजनैतिक मलिनता का ही निर्णय रहा होगा। राजनीति के पैतरेबाजी एक सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण की राह में कंटक है। लेकिन सवाल यहाँ शैक्षणिक योग्यता को समाप्त करने से जुड़ा हुआ तो अवश्य ही सवालिया निशान पर रहता है?
➡➡ जैसा की हम जानते कि पिछली सरकार ने सरकारी योजनाओं के सफल संचालन एवं प्रशासनिक
पारदर्शिता को काबिल करने के पंचायत राज प्रत्याशी को शैक्षणिक योग्यता से तौला था। मापन का यह तराजू
अच्छा अवश्य दिखाई देता है लेकिन सदैव अच्छा फल देने वाला हो यह आवश्यक नहीं है। इसके बावजूद भी
अयोग्यता पदासीन हुई थी। पंचायत राज के जन प्रतिनिधियों की कार्यशैली संचालन एवं निर्माण में उनके पति,
पिता, ससूर, देवर,जेष्ठ, भाई तथा संबंधियों की भूमिका में कमी नहीं आई है। साधारण एवं निम्न वर्ग के अल्प
योग्य को रबर ब्रांड बनाने वाले दबंगों में भी कोई अंतर नहीं आया है। यह सब होने के बावजूद भी भी यह
कदम सुधार की दिशा में सकारात्मक पहल थी। इस फैसले के साथ में ही मैंने एक प्रश्न किया था कि सांसद एवं
विधायकों से अधिक स्थानीय प्रतिनिधियों का ही पढ़ा लिखा होने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
➡➡ निर्णयों की प्रासंगिकता उनकी उपादेयता से अधिक नीतियों के स्वच्छ परिवेश से है। यदि पिछली
सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर विधायकों के शैक्षणिक, संतान एवं स्वच्छता से संदर्भित अनुबंध लांधने
मांगकर सुदृढ़ राजस्थान के उक्त कदम उठाया होता तो अवश्य ही अकाट्य कदम होता। लेकिन ऐसा नहीं करना तात्कालिन सरकार की नियत एवं नियति दोनों पर शंक पैदा करती है। सब कुछ होने के बावजूद शैक्षणिक योग्यता को हटाने के निर्णय को सही नहीं ठहराया जा सकता है। यह सरकार का खिचियानी बिल्ली खंभा नोच वाली कहावत को सत्य सिद्ध करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
➡➡ वर्तमान सरकार को शैक्षणिक योग्यता हटाने की बजाए एक प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार से यह
शर्त विधायक एवं सांसदों के लिए भी लागू करवाने की मांग करनी चाहिए। इससे गेंद भारत सरकार के पाले
रहती एवं राजस्थान सरकार की प्रगतिशील सोच लौहा पुरा विश्व मानता। भारत सरकार को यह कार्य करने के
संविधान में संशोधन करने के अलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। इससे नेताओं की डिग्री की प्रमाणित पर
सदैव कानून की तलवार लटकी रहती। यह सब लिखकर में राजस्थान सरकार की हिमायत नहीं कर रहा हूँ।
न ही शैक्षणिक योग्यता के समावेश करने से आहत हूँ। मैं चाहता हूँ एक देश में सभी जन प्रतिनिधियों के समान
न्यूनतम मापदंड सहित पद के भार के अनुसार उच्च योग्यता के मापदंड होने चाहिए। जितना बड़ा पद उसके
लिए उतनी बड़ी योग्यता का मापदंड हो।
➡➡भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था हो कि छोटे पदों के लिए योग्यता का जो मापक रखा जाए ।
वह उच्च पदों के लिए स्वतः ही लागू हो जाए। लागू करना जितना सरल हो हटना उतना सरल नहीं हो। अन्तिम
शब्द मेरे यही है कि राजस्थान सरकार को शिक्षा संबंधी शर्त नहीं हटानी चाहिए थी।
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Writer :- करण सिंह शिवतलाव
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सवालीय निशान रहे। राजनीति का यह समर निश्चित रूप से एक द्वेषमय परिवेश का दृश्य बनाता है। राजीव
गांधी सेवा केन्द्र का नाम अटल सेवा केन्द्र के रुप रखना राजनैतिक मलिनता का ही निर्णय रहा होगा। राजनीति के पैतरेबाजी एक सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण की राह में कंटक है। लेकिन सवाल यहाँ शैक्षणिक योग्यता को समाप्त करने से जुड़ा हुआ तो अवश्य ही सवालिया निशान पर रहता है?
➡➡ जैसा की हम जानते कि पिछली सरकार ने सरकारी योजनाओं के सफल संचालन एवं प्रशासनिक
पारदर्शिता को काबिल करने के पंचायत राज प्रत्याशी को शैक्षणिक योग्यता से तौला था। मापन का यह तराजू
अच्छा अवश्य दिखाई देता है लेकिन सदैव अच्छा फल देने वाला हो यह आवश्यक नहीं है। इसके बावजूद भी
अयोग्यता पदासीन हुई थी। पंचायत राज के जन प्रतिनिधियों की कार्यशैली संचालन एवं निर्माण में उनके पति,
पिता, ससूर, देवर,जेष्ठ, भाई तथा संबंधियों की भूमिका में कमी नहीं आई है। साधारण एवं निम्न वर्ग के अल्प
योग्य को रबर ब्रांड बनाने वाले दबंगों में भी कोई अंतर नहीं आया है। यह सब होने के बावजूद भी भी यह
कदम सुधार की दिशा में सकारात्मक पहल थी। इस फैसले के साथ में ही मैंने एक प्रश्न किया था कि सांसद एवं
विधायकों से अधिक स्थानीय प्रतिनिधियों का ही पढ़ा लिखा होने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई?
➡➡ निर्णयों की प्रासंगिकता उनकी उपादेयता से अधिक नीतियों के स्वच्छ परिवेश से है। यदि पिछली
सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर विधायकों के शैक्षणिक, संतान एवं स्वच्छता से संदर्भित अनुबंध लांधने
मांगकर सुदृढ़ राजस्थान के उक्त कदम उठाया होता तो अवश्य ही अकाट्य कदम होता। लेकिन ऐसा नहीं करना तात्कालिन सरकार की नियत एवं नियति दोनों पर शंक पैदा करती है। सब कुछ होने के बावजूद शैक्षणिक योग्यता को हटाने के निर्णय को सही नहीं ठहराया जा सकता है। यह सरकार का खिचियानी बिल्ली खंभा नोच वाली कहावत को सत्य सिद्ध करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
➡➡ वर्तमान सरकार को शैक्षणिक योग्यता हटाने की बजाए एक प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार से यह
शर्त विधायक एवं सांसदों के लिए भी लागू करवाने की मांग करनी चाहिए। इससे गेंद भारत सरकार के पाले
रहती एवं राजस्थान सरकार की प्रगतिशील सोच लौहा पुरा विश्व मानता। भारत सरकार को यह कार्य करने के
संविधान में संशोधन करने के अलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। इससे नेताओं की डिग्री की प्रमाणित पर
सदैव कानून की तलवार लटकी रहती। यह सब लिखकर में राजस्थान सरकार की हिमायत नहीं कर रहा हूँ।
न ही शैक्षणिक योग्यता के समावेश करने से आहत हूँ। मैं चाहता हूँ एक देश में सभी जन प्रतिनिधियों के समान
न्यूनतम मापदंड सहित पद के भार के अनुसार उच्च योग्यता के मापदंड होने चाहिए। जितना बड़ा पद उसके
लिए उतनी बड़ी योग्यता का मापदंड हो।
➡➡भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था हो कि छोटे पदों के लिए योग्यता का जो मापक रखा जाए ।
वह उच्च पदों के लिए स्वतः ही लागू हो जाए। लागू करना जितना सरल हो हटना उतना सरल नहीं हो। अन्तिम
शब्द मेरे यही है कि राजस्थान सरकार को शिक्षा संबंधी शर्त नहीं हटानी चाहिए थी।
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Writer :- करण सिंह शिवतलाव
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