आज 1 जनवरी 2019 हैं। ईस्वी पंचांग के अनुसार नववर्ष है। विश्व बहुधा से भरा हुआ है। यहाँ कई अलग-
अलग पंचांग चलयमान उनके अनुसार भी अलग- अलग नववर्ष मनाएँ जाते है। मैं व्यक्तिशय सभी मान्यताओं का आदर करता हूँ तथा सभी इस प्रकार के आदर सत्कार की आशा रखता हूँ। पंचांग का आखिरी पन्ना पलटते एक नई उमंग लेकर जीवन यात्रा का आगामी सफर प्रारंभ हो जाता है। पुरानी यादों एवं गलतियां का बोझ ढोते- ढोते मनुष्य थक जाता है तथा यह बोझ अब ओर अधिक लेकर चलना जब मनुष्य के सामर्थ्य के बाहर हो जाता है तब मनुष्य के लिए कुछ नूतन की आवश्यकता होती है। जो नई शुरुआत करवाती है। ऐसे तो कहावत है कि जब जगे तब सवेरा है। वास्तव में यह सत्य भी है कि जब मनुष्य कुछ करने का एक नया संकल्प लेता है। उस दिन उसके जीवन नया रुप शुरु हो जाता है। इस जीवन यात्रा पर कई बार परिवर्तन दिखाई देते है। यही सभी परिवर्तन एक नया संदेश लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है। इन सब को नया जीवन नहीं कहा जा सकता है। इसलिए नव परिवर्तन की अवधारणा नये साल अभिकल्पना को सर्जित करते है। मनुष्य का व्यक्तिगत जीवन विचारों से चलता है इसलिए उसका नववर्ष कभी भी हो सकता है लेकिन सामूहिक जीवन में एक विचारधारा को लेकर चलयमान है। इसलिए सामूहिक जीवन का नया वर्ष एक मान्यता, एक व्यवस्था के अनुसार तय किया जाता है। वर्तमान युग में पृथ्वी ग्रह एक परिवार में रूपांतरित हो रहा है। सम्पूर्ण वसुंधरा के चलयमान करने के लिए काल ने अनुशासन तय किया है। उसके अनुसार प्रथम जनवरी को वैश्विक स्तर पर नया वर्ष प्रारंभ होता है।
➡➡ आज के काल का अनुशासन 1 जनवरी को नववर्ष अंगीकार करता है। कतिपय मानवीय मन रूढ़
मान्यता की संकीर्णता में आबद्ध हो स्वयं से आँख मिचौनी खलते हुए, वास्तविकता से दूर भागते है। अपनी-
अपनी मजहबीय मान्यताओं को नववर्ष का स्वरुप अंगीकार करते हैं। मुझे उनके मानने न मानने से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वास्तविकता से दूर भागना अवश्य शिकायत का अवसर देता है। मैंने पहले ही लिखा है कि मैं विश्व के सभी पंचांगों का आदर करता हूँ तथा उसके नव दिवस में भी नई उमंग को देखता हूँ लेकिन भूमंडलीय अनुशासन का भी आदर करता हूँ। आज भूमंडल पर ईस्वी पंचांग का अनुशासन है, समस्त सरकारी, गैर सरकारी तथा तकनीकी कार्य प्रणाली इस अनुशासन से चलयमान है। इसलिए नववर्ष का प्रथम अधिकार प्रथम जनवरी को है। ईस्वी पंचांग का यह नववर्ष किसी रिलिजन मान्यता से जुड़ा हो सकता है। इसका मूल्य हमारे व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन में इतना नहीं है, जितना वैश्विक अनुशासन का है। वैश्विक कार्यक्रम एवं काल के अनुशासन को मध्य नजर रखते हुए आज के विश्व के लिए प्रथम जनवरी को वैश्विक नववर्ष मानना एक सकारात्मक जीवन सोच है।
➡➡ प्रथम जनवरी नया वर्ष का प्रथम दिन है। यह अपने गर्भ में शेष 364-365 दिन की समाए आता है।
इन्हें 12 के समूह हमारे सामने परोसता है। हर पहली तारीख को नव माह की यात्रा शुरु होती है। ऐसा ही
अनुशासन दुनिया भर के अधिकांश पंचांगों में है। कुछ पंचांग सौर गतिधारा को लेकर चलती है तो कुछ चंद्र
गतिशीलता पर आधारित है। वैश्विक स्तर पर दोनों ही गतियों का अपना महत्व है। इसलिए बुद्धिजीवी विद्वानों को मिलकर एक ऐसा पंचांग तैयार करना चाहिए कि वह दोनों गतियों के महत्व को अंगीकार करते हुए। वैश्विक अनुशासन अक्षत: क्रियाशील रखे।
➡➡ विक्रम पंचांग की प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी,
एकादशी, द्वादशी, तृयोदशी, चतुर्थोदशी एवं पूर्णिमा - अमावस्या का अपना महत्व पृथ्वी, चन्द्रमा एवं सूर्य की
घूर्णन गति के अनुसार को बांधे हुए है तथा चन्द्र कलाओं के घटते बढ़ते स्वरूप को तिथियाँ रेखांकित करती है।
यह विज्ञान वैश्विक पंचांग ईस्वी पंचांग में नहीं है। इस अभाव निष्कंटक भाव से सभी रूढ़िवादी एवं
साम्प्रदायिक रिलिजनल भावनाओं से उपर उठकर एक उभयनिष्ठ पंचांग को तैयार करना होगा। मैं विश्व के
किसी भी पंचांग में छिपी वैज्ञानिकता एवं जीवन विज्ञान को स्वच्छ वैश्विक पंचांग में सजाने की मांग करता हूँ
तथा सभी की धार्मिक मान्यताओं आदर करते हुए सभी पंचांगों की उपादेयता स्वीकार करने की मांग करता हूँ।
चलो चलते - चलते दे जाता हूँ नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। नया साल सम्पूर्ण मानव समाज को
सुखी, निरोगी, प्रफुल्लित एवं आनन्दित रहे। जीवन यात्रा की सभी कठिनाइयाँ एवं बाधाएं जीवन की संकल्प
शक्ति के समक्ष क्षीण हो जाए।
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➡➡करण सिंह शिवतलाव की कलम से
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अलग पंचांग चलयमान उनके अनुसार भी अलग- अलग नववर्ष मनाएँ जाते है। मैं व्यक्तिशय सभी मान्यताओं का आदर करता हूँ तथा सभी इस प्रकार के आदर सत्कार की आशा रखता हूँ। पंचांग का आखिरी पन्ना पलटते एक नई उमंग लेकर जीवन यात्रा का आगामी सफर प्रारंभ हो जाता है। पुरानी यादों एवं गलतियां का बोझ ढोते- ढोते मनुष्य थक जाता है तथा यह बोझ अब ओर अधिक लेकर चलना जब मनुष्य के सामर्थ्य के बाहर हो जाता है तब मनुष्य के लिए कुछ नूतन की आवश्यकता होती है। जो नई शुरुआत करवाती है। ऐसे तो कहावत है कि जब जगे तब सवेरा है। वास्तव में यह सत्य भी है कि जब मनुष्य कुछ करने का एक नया संकल्प लेता है। उस दिन उसके जीवन नया रुप शुरु हो जाता है। इस जीवन यात्रा पर कई बार परिवर्तन दिखाई देते है। यही सभी परिवर्तन एक नया संदेश लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है। इन सब को नया जीवन नहीं कहा जा सकता है। इसलिए नव परिवर्तन की अवधारणा नये साल अभिकल्पना को सर्जित करते है। मनुष्य का व्यक्तिगत जीवन विचारों से चलता है इसलिए उसका नववर्ष कभी भी हो सकता है लेकिन सामूहिक जीवन में एक विचारधारा को लेकर चलयमान है। इसलिए सामूहिक जीवन का नया वर्ष एक मान्यता, एक व्यवस्था के अनुसार तय किया जाता है। वर्तमान युग में पृथ्वी ग्रह एक परिवार में रूपांतरित हो रहा है। सम्पूर्ण वसुंधरा के चलयमान करने के लिए काल ने अनुशासन तय किया है। उसके अनुसार प्रथम जनवरी को वैश्विक स्तर पर नया वर्ष प्रारंभ होता है।
➡➡ आज के काल का अनुशासन 1 जनवरी को नववर्ष अंगीकार करता है। कतिपय मानवीय मन रूढ़
मान्यता की संकीर्णता में आबद्ध हो स्वयं से आँख मिचौनी खलते हुए, वास्तविकता से दूर भागते है। अपनी-
अपनी मजहबीय मान्यताओं को नववर्ष का स्वरुप अंगीकार करते हैं। मुझे उनके मानने न मानने से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वास्तविकता से दूर भागना अवश्य शिकायत का अवसर देता है। मैंने पहले ही लिखा है कि मैं विश्व के सभी पंचांगों का आदर करता हूँ तथा उसके नव दिवस में भी नई उमंग को देखता हूँ लेकिन भूमंडलीय अनुशासन का भी आदर करता हूँ। आज भूमंडल पर ईस्वी पंचांग का अनुशासन है, समस्त सरकारी, गैर सरकारी तथा तकनीकी कार्य प्रणाली इस अनुशासन से चलयमान है। इसलिए नववर्ष का प्रथम अधिकार प्रथम जनवरी को है। ईस्वी पंचांग का यह नववर्ष किसी रिलिजन मान्यता से जुड़ा हो सकता है। इसका मूल्य हमारे व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन में इतना नहीं है, जितना वैश्विक अनुशासन का है। वैश्विक कार्यक्रम एवं काल के अनुशासन को मध्य नजर रखते हुए आज के विश्व के लिए प्रथम जनवरी को वैश्विक नववर्ष मानना एक सकारात्मक जीवन सोच है।
➡➡ प्रथम जनवरी नया वर्ष का प्रथम दिन है। यह अपने गर्भ में शेष 364-365 दिन की समाए आता है।
इन्हें 12 के समूह हमारे सामने परोसता है। हर पहली तारीख को नव माह की यात्रा शुरु होती है। ऐसा ही
अनुशासन दुनिया भर के अधिकांश पंचांगों में है। कुछ पंचांग सौर गतिधारा को लेकर चलती है तो कुछ चंद्र
गतिशीलता पर आधारित है। वैश्विक स्तर पर दोनों ही गतियों का अपना महत्व है। इसलिए बुद्धिजीवी विद्वानों को मिलकर एक ऐसा पंचांग तैयार करना चाहिए कि वह दोनों गतियों के महत्व को अंगीकार करते हुए। वैश्विक अनुशासन अक्षत: क्रियाशील रखे।
➡➡ विक्रम पंचांग की प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी,
एकादशी, द्वादशी, तृयोदशी, चतुर्थोदशी एवं पूर्णिमा - अमावस्या का अपना महत्व पृथ्वी, चन्द्रमा एवं सूर्य की
घूर्णन गति के अनुसार को बांधे हुए है तथा चन्द्र कलाओं के घटते बढ़ते स्वरूप को तिथियाँ रेखांकित करती है।
यह विज्ञान वैश्विक पंचांग ईस्वी पंचांग में नहीं है। इस अभाव निष्कंटक भाव से सभी रूढ़िवादी एवं
साम्प्रदायिक रिलिजनल भावनाओं से उपर उठकर एक उभयनिष्ठ पंचांग को तैयार करना होगा। मैं विश्व के
किसी भी पंचांग में छिपी वैज्ञानिकता एवं जीवन विज्ञान को स्वच्छ वैश्विक पंचांग में सजाने की मांग करता हूँ
तथा सभी की धार्मिक मान्यताओं आदर करते हुए सभी पंचांगों की उपादेयता स्वीकार करने की मांग करता हूँ।
चलो चलते - चलते दे जाता हूँ नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। नया साल सम्पूर्ण मानव समाज को
सुखी, निरोगी, प्रफुल्लित एवं आनन्दित रहे। जीवन यात्रा की सभी कठिनाइयाँ एवं बाधाएं जीवन की संकल्प
शक्ति के समक्ष क्षीण हो जाए।
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➡➡करण सिंह शिवतलाव की कलम से
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