राजस्थान की राजनीति पर एक दृष्टि

राजस्थान शब्द का शाब्दिक अर्थ राजाओं का स्थान है। स्वतंत्रता से पूर्व इस क्षेत्र का राजपूताना नामक सामान्य नाम से जाना जाता था। यद्यपि स्वतंत्रता के राजस्थान में 19 रियासतों में 17 पर राजपूत शासक तथा भरतपुर पर जाट राजा तथा टोंक पर मुस्लिम नवाब का शासन था। इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो राजपूत जाति का इतिहास 1300 वर्ष पूर्व का है। उससे पूर्व राजस्थान में ब्राह्मणगणराज्य के उल्लेख मिलते हैं।
सुदूर प्राचीन काल में जाए तो वर्तमान राजस्थान परिक्षेत्र में मेर, मेव एवं हाडा प्रजातियों की संस्कृति थी। कोटा अंचल हाडौती तथा उदयपुर अंचल मेवाड़ तथा शेष राजस्थान मेरों के अधीन था। कालांतर में इस भाग पर अलग अलग राजपूत वंशजों के नाम पर अंचल विशेष का नामकरण हुए। मेर से मेरवाड़ एवं मारवाड़ है। बहुत बड़े अंचल को मारवाड़ क्षेत्र में हैं। महाभारत काल में भी मत्स्य एवं विराट गणराज्य थे।
🔵👉स्वतंत्र भारतवर्ष का सबसे बड़े राज्य राजस्थान का राजनैतिक इतिहास शांतिप्रिय रहा है। राजनैतिक इतिहास की यात्रा के क्रम में प्रारंभ में कांग्रेस को राजवंश समर्थित स्वतंत्र विचारधारा से था। तत्पश्चात वामपंथियो से फिर समाजवादी जनता पार्टी एवं जनता दल से रहा।
90 के दशक के अंत में राजस्थान की राजनीति कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के बीच में चक्कर लगाने लग गई।
🔴👉राजनीति की इस लम्बी राजनैतिक यात्रा में कई क्षेत्रीय पार्टियां एवं राष्ट्रीय दलों ने पांव पछाड़े लेकिन राजस्थान की राजभूमि पर पांच नहीं जमा पाए।
🔵👉वर्तमान में राजस्थान की राजनीति को किसी तीसरी शक्ति का सामना नहीं करना पड़ रहा है। इसलिए राजस्थान की राजनीति के पास कांग्रेस एवं भाजपा में से एक विकल्प को चुनना हैं ।
🔴👉राजस्थान की राजनीति भी जातिगत समीकरणों से अछूत नहीं रही है। ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गुर्जर, मीणा एवं दलित समीकरण का दबदबा रहा है। राजस्थान की राजनीति जातिगत पंचायत एवं धार्मिक मान्यताओं में गोते लगाते भी देखी गई हैं।
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लेखक:- करण सिंह शिवतलाव उर्फ आनंद किरण
anandkiran1971@gmail.com

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