आनन्द मार्ग द्वारा वैशाखी पूर्णिमा को आनन्द पूर्णिमा घोषित किया गया है। इसे वर्ष पहला सामाजिक उत्सव भी घोषित किया है। आनन्द मार्ग चर्याचर्य के अनुसार यह कार्यकर्ता का वार्षिक सम्मेलन है। इसमें मिलित ईश्वर प्रणिधान, स्नान एवं भोज का महत्व भी रेखांकित किया गया है। नारायण सेवा, वर्णाध्यादान एवं त्राण मूलक कार्य करने का भी निर्देश है। इस दिन संघ का वार्षिक लेखाजोखा
प्रस्तुत किया जाता है। अतः आनन्द पूर्णिमा का एक आनन्द मार्गी के जीवन अमूल्य योगदान है। इस योगदान को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
आनन्द पूर्णिमा का दूसरा पक्ष इस दिन मार्ग गुरुदेव का जन्म दिवस है। मार्ग गुरुदेव का जन्म दिवस होने के कारण आनन्द पूर्णिमा के उत्सव में चार चांद लग जाते हैं। इसलिए सभी आनन्द मार्गी इस दिन को चीरस्मरणीय बनाना चाहता है। अतः प्रत्येक आनन्द मार्ग इस दिन को विशेष बनाकर एवं मानकर चलता है।
आनन्द पूर्णिमा का पहला पहलू चर्याचर्य का आदेश है तो दूसरा पहलू भक्त के मन की भावना अभिप्रकाश है। अतः दोनों पहलू एक साथ चलते हैं। चूंकि प्रथम पहलू चर्याचर्य का आदेश है। इसलिए अधिक से अधिक चर्चा पहले पहलू की ही करेंगे। प्राचीन काल से ही वैशाखी पूर्णिमा को सबसे अधिक गुरुत्व प्राप्त है। संभवतया कृषि युग उदय एवं काल गणना के अभिप्रकाश के साथ वैशाखी पूर्णिमा अधिक बलवती हुई। किसान इस दिन अपने नूतन वर्ष की शुरुआत करता था। अतः भारतीय कृषि वर्ष के अनुसार वैशाखी पूर्णिमा प्रथम एवं अन्तिम दिन था। समाज में इस दिन आनन्दोत्सव मनाया जाता था। बड़े पैमाने पर सामाजिक आर्थिक क्रियाकलापों में इस दिन बड़ा फेरफार होता था। इसके बाद जेष्ठ अर्थात बड़ा महिना शुरू होता था। उसके नाम पर जेष्ठा नक्षत्र भी नाम दिया गया था। यद्यपि चर्याचर्य में उपरोक्त बात का उल्लेख नहीं है। इसलिए युग के पुरोधाओं की नजर इस ओर नहीं गई। लेकिन भारत के अलिखित सामाजिक आर्थिक इतिहास में टटोला जाए तो भारतीय समाज में वैशाखी पूर्णिमा की जड़ें बहुत गहरी है।
आनन्द पूर्णिमा एक आनन्दोत्सव है, ऐसा चर्याचर्य का आदेश है। यद्यपि चर्याचर्य आनन्द पूर्णिमा को जन्मोत्सव के रूप में चित्रित नहीं करता है तथापि आनन्द मार्ग समाज के इतिहास में जन्मोत्सव की जड़ें बहुत गहरी है। निस्संदेह आनन्द पूर्णिमा एक जन्मोत्सव भी है, इस दिन नूतन युग के नूतन मूल्य परिभाषित होते हैं। समाज में नयी मान्यताओं के शुभारंभ की मधूर वेला भी है। अतः जन्मोत्सव एक आनन्दोत्सव है। लेकिन एक बात सत्य है कि न तो आनन्दमूर्ति का कभी जन्म होता है तथा न ही आनन्दमूर्ति का महापरिनिर्वाण होता है। वे तो युग की आवश्यकता अनुसार सभी ग्रह में विचरण कर धर्म की संस्थापना करते हैं। उनके किसी ग्रह विशेष पर भौतिक विचरण के प्रथम दिवस को जन्मोत्सव की संज्ञा दी है। चूंकि जन्मोत्सव एक आनन्दोत्सव है। अतः इसे आनन्दोत्सव की भांति मनाया जाता है। एक वैशाखी पूर्णिमा से दूसरी वैशाखी पूर्णिमा तक एक आनन्द वर्ष के संचित आनन्द कणों एवं जीवन के मधूर अनुभवों को लेकर आनन्द पूर्णिमा को जिया जाता है।
आनन्द मार्ग अमर है
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[श्री) आनन्द किरण 'देव"
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