महात्मा बुद्ध
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🌻 [श्री] आनन्द किरण "देव" 🌻
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विश्व इतिहास का एक युग बुद्ध के नाम लिखा गया है। बुद्ध का बचपन राजशाही ठाठ में बिता, जब उन्होंने दुनिया देखी तब उससे विरक्ति हो गई तथा वह ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल गया। उसने जो कुछ पाया वह बौद्ध धर्म बनकर हमारे सामने है। आज हम बुद्ध की आँखों से दुनिया देखने नहीं निकले अपितु बुद्ध ने जो दुनिया देखी थी उसका अवलोकन करने निकले रहे हैं।
बुद्ध ने देखा कि यह दुनिया में दु:ख है। इस दु:ख का कारण तृष्णा है तथा दुख का निवारण संभव है। इस दु:ख निवारण के उपाय में बुद्ध अष्टांग मार्ग निकल आ गया। हम अष्टांग मार्ग पर चलने से पूर्व दुनिया के प्रति बुद्ध के दृष्टिकोण का अवलोकन करते हैं। बुद्ध ने बताया कि दुनिया में दुख है। क्या हम मानते हैं कि दुनिया में दु:ख है? यदि नहीं तो क्यों नहीं? यदि हाँ तो क्यों? यही अवलोकन का साधन है। प्रथम दुनिया दु:खमय नहीं है। क्योंकि भगवान कृष्ण ने बताया है कि यह दुनिया हमारी कर्मभूमि है। यहाँ निष्काम कर्म करते हुए जीवन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। यदि दुनिया दु:खमय है तो दुनिया की जरूरत ही नहीं है। जब दुनिया ही नहीं है तो जीवन, जीवन मूल्य, बुद्ध इत्यादि का भी कोई मूल्य नहीं है। इस प्रकार हम अपनी जिम्मेदारी से भाग जाते हैं। इस प्रकार हम व्यवहारिक जीवन में मिथ्याचार को बढ़ावा देते हैं। बुद्ध के विचार पर चले तो दुनिया समाप्त हो जाती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसलिए बुद्ध का दुनिया के प्रति दु:खमय स्वरूप युक्ति संगत नहीं है। दुनिया आनन्द का एक अंग है, जो सकारात्मक दृष्टिकोण तथा आनन्दमय दर्शन के साथ जीने से सहज ही मिलता है। हमें अपने दायित्व को पावना चाहत में नहीं अपना कर्तव्य अर्थात धर्म मानकर करना चाहिए। इसी को श्री कृष्ण ने निष्काम कर्म कहकर हमें समझाया है। अतः बुद्ध का दुनिया के प्रति दृष्टिकोण अयुक्ति संगत था।
अवलोकन के दूसरे कम्र में बुद्ध के साथ चलते हैं। दुनिया दु:खमय है। मनुष्य की दुनिया उसका परिवार, सगे संबंधि तथा उसका सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक एवं धार्मिक समाज है। यदि इससे भी बड़ी दुनिया की सोच है तो थोड़ी बड़ी दुनिया है अथवा सम्पूर्ण भूमंडल दुनिया है। तो इसमें दु:ख का कौनसा पहलू है, यदि बुद्ध यह समझा देते तो बुद्ध शरणं गच्छामि सत्य सिद्ध हो जाता। चलो हम ही इसकी शल्य चिकित्सा कर देते हैं। यदि बुद्ध को पारिवारिक दुनिया दु:ख दिखाई दिया है तो परिवार को त्याग सही पथ नहीं है, सही पथ परिवार को परफेक्ट बनाना। इसीप्रकार सगे संबंधि व समाज रुपी दुनिया में दु:ख दिखाई देता है तो इस दुनिया से पलायन होने की जरूरत नहीं है। दुनिया में रहकर व्यवस्था परिवर्तन करने की आवश्यकता है। भूमंडल रुपी दुनिया में दु:ख दिखाई देने अर्थ है कि बुद्ध किसी ओर ग्रह के होना है। अर्थात बुद्ध का दुनिया में दु:ख का चित्रण का दर्शन सामान्य बुद्धि को अच्छा लगने पर भी दुनिया के धरातल के अनुकूल नहीं है। अब बुद्ध के अष्टांग मार्ग की यात्रा पर निकलते हैं।
बुद्ध ने दु:ख के हाथ से बचने के लिए दुनिया को अष्टांग मार्ग बताया है। यह बुद्ध बहुत बड़ी देन है। इसने धर्म को व्यवहारिक बनाने में बहुत बड़ी मदद की है। इससे पूर्व के धर्माचार्यों ने धर्म बोझिल बना दिया था। इसलिए यहाँ हम बुद्ध नमस्कार करते हैं। उनके अष्टांग मार्ग में सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि का समावेश मिला है। इसमें सबसे गुरुत्व पूर्ण शब्द सम्यक् है। सम्यक् को सही अथवा अच्छे के शब्द में प्रयोग किया है। इसके लिए आधुनिक युग का शब्द सकारात्मक ले सकते हैं। अतः बुद्ध बताते हैं कि सकारात्मक दृष्टि एवं संकल्प का संबंध मनुष्य की प्रज्ञा से है। मनुष्य को अपने देखने एवं निश्चय करने के तरीके को सकारात्मक करना चाहिए। यदि इसमें त्रुटि है तो मनुष्य अपने मनुष्यत्व से गिर जाता है। जिसका वर्णन बुद्ध से पूर्व के शास्त्रों में भी मिलता है। बुद्ध तीन शील का भी वर्णन करता सम्यक् वचन, कर्म एवं आजीविका नाम देकर संबोधित किया है। वचन (कथनी) , कर्म (करणी) एवं आजीविका (पेशा) में त्रुटि होने पर भी मनुष्य अपने पद से नीचे आ सकता है। अतः कथनी, करनी एवं पेशा में शुद्धता आवश्यक है। यह बात बुद्ध से पहली एवं बाद नीति शास्त्र में भी कही गई है। बुद्ध के अष्टांग मार्ग के अंतिम पायदान में सम्यक् व्यायाम, स्मृति एवं समाधि का जिक्र करता है, जो आत्मोत्थान का पथ है। यहाँ शारीरिक क्रिया व्यायाम, मानसिक क्रिया स्मृति (स्मरण, मनन एवं चिन्तन) एवं आध्यात्मिक क्रिया साधना में पवित्रता पर भी बल दिया है। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की मलिनता पतन की ओर ले चलता है। इस प्रकार बुद्ध - बुद्धि, आचरण एवं क्रिया में सम्यकता चाहते हैं। इस प्रकार बुद्ध का अष्टांग मार्ग सतपथ पर ले चलने के लिए। इसे दु;ख के हाथ बसने का विधान देकर पथ निर्देशना को संकुचित कर दिया है।
बुद्ध ने संसार को कार्य अच्छा दिया है लेकिन कारण में त्रुटि का समावेश किया है। कारण में त्रुटि रहने से कार्य प्रभावित होता है। अतः बुद्धिमत्ता इसमें है कि बुद्ध के द्वारा प्रदान किये गए कारण में संशोधन कर देना चाहिए। बुद्ध के कार्य तत्व में ज्ञान एवं कर्म का समावेश है लेकिन भक्ति तत्व का समावेश नहीं कर कार्य के चिन्तन को भी अपूर्ण रख दिया था। अतः इसमें भूल सुधार आवश्यक है।
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