"विश्व बंधुत्व, कायम हो, कायम हो" के नारे साथ अपनी बात शुरू करते आज विषय मिला है - विश्व परिवार। इसकी प्रथम कल्पना प्राचीन भारत की सभ्यता, संस्कृति एवं साहित्य में उभरकर आईं थी। आज फिर से इसकी आवश्यकता आ पड़ी है। इसलिए विश्व परिवार नामक योजना पर मंथन करना आवश्यक है। आज का हमारा विश्व भौगोलिक रूप से सात महाद्वीप एवं पांच महासागर का समूह के साथ हमारा पर्यावरण व आकाश से मिलकर बना है। राजनैतिक दृष्टि से हमारा विश्व 195 देशों का समूह, जिसमें 54 अफ्रिकी, 48 एशियाई, 44 यूरोपीय, 33 दक्षिण अमेरिका एवं कैरेबियन, 14 ओशिनियाई तथा 2 उत्तरी अमेरिका में देश है। विश्व में लगभग 255 सामाजिक आर्थिक इकाइयाँ का निर्माण किया जा सकता है। साम्प्रदायिक एवं जातिय दृष्टिकोण विश्व को बांटना अयुक्तिकर है। इसलिए यह कोई आधार नहीं है। धर्म के पैमाने पर रखा जाए तो सम्पूर्ण विश्ववासियों एक ही धर्म है - मानव धर्म। इसके अलावा मनुष्य का अपना निजी कोई धर्म नहीं है। चूंकि मानव धर्म का उद्देश्य मनुष्य को महान बनाना है। महान तत्व को व्यष्टि में देखा जाए तो महापुरुष एवं परमपुरुष कहलाता है। संस्कृत इनके लिए देवता तथा भगवान शब्द का प्रयोग हुआ है। मनुष्य को इन दिव्य गुणों में प्रतिष्ठित करने के लिए मानव धर्म को विस्तार, रस, सेवा एवं तदस्थिति नामक चार स्तंभ पर खड़ा रखा गया है। इसलिए मानव धर्म का भावगत अर्थ - भागवत धर्म हो जाता है। भागवत धर्म का अर्थ - वह धर्म जो मनुष्य को ब्रह्मत्व में प्रतिष्ठित करता है। भागवत धर्म अर्थ - मानव धर्म है। इस मत अथवा पथ समझना भूल है। विश्व परिवार को समझने के लिए उक्त बातें अनिवार्य थी। इसलिए इनका उल्लेख किया गया है।
विश्व परिवार की आधारशिला वैश्विक सोच पर टिकी हुई है। यह सोच जाति, नस्ल, रंग, सम्प्रदाय अथवा क्षेत्रवाद पर अटक कर नहीं रह जाए इसलिए बुद्धि को भौम भावप्रवणता व सामाजिक भावप्रवणता से मुक्त कर नव्य मानवतावाद में प्रतिष्ठित करनी होगी। यहाँ स्मरण रखना आवश्यक है कि तथाकथित मानवतावाद में भी बुद्धि को अटका देने से हम विश्व के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं। अतः बुद्धि को समग्र रखना आवश्यक है। विचारशील मानसिकता एवं अध्ययन कर हम अपने बुद्धि को उन्नत कर सकते हैं। नव्य मानवतावादी चिन्तन वैश्विक सोच का निर्माण करता है।
विश्व परिवार की रचना का द्वितीय तथ्य के रूप में राजनीति जगत में विश्व सरकार की रचना एवं सांस्कृतिक एवं बौद्धिक स्तर पर महाविश्व की रचना में निहित है। आज सम्पूर्ण विश्व संचार एवं संवेदना की दृष्टि एक बना हुआ है। इसे राजनीति की सीमाएं तथा उसके आधार पर निर्मित भावनात्मक रुग्णता बाधित करती है। अतः संयुक्त राष्ट्र संघ नहीं विश्व सरकार ही विश्व परिवार की एक मात्र राजनैतिक सोच है। महाविश्व ही एकमात्र सांस्कृतिक एवं बौद्धिक चिन्तन है।
विश्व परिवार के लिए सबसे मजबूत स्तंभ सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र है। पूंजीवादियों की महत्वाकांक्षा एवं पेट की मजबूरी जब जब भी सामाजिक एवं आर्थिक समीकरण को दूषित करती है, विश्व परिवार पर करारा प्रहार होता है। अतः सामाजिक आर्थिक क्षेत्र के निर्माण स्व: निर्भरता तत्व का होना आवश्यक है। स्व:निर्भर इकाई को गढ़ने के लिए समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक संभावना, नस्लीय समानता एवं भावनात्मक एकता नामक तत्वों आधार पर एक सामाजिक आर्थिक इकाई को खड़ा किया जाता है। मनुष्य को रोजीरोटी मजबूरी एवं धन कमाने की उग्र मानसिक के आगे अपना सामाजिक संसार छोड़ने के मजबूर नहीं होना पड़े। इसलिए सामाजिक आर्थिक इकाई को समाज नाम दिया गया है। आर्थिक व्यवस्था का कोई भी दूषित पैमाना सामाजिक व्यवस्था के तानेबाने को चकनाचूर करता है तो समझना चाहिए कि हम अपने हाथों हमारे पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। अतः सामाजिक आर्थिक इकाई का एक रहना आवश्यक है। इसके लिए रक्त संबंध पर आधारित नस्लीय समानता को सामाजिक आर्थिक इकाई में रखा गया है। सामाजिक एवं आर्थिक इकाई में एकरूपता होना आवश्यक है।
हम विश्व परिवार नामक योजना को मूर्त रुप दे ही रहे हैं, इसलिए इसके गुरुत्व तत्व को भूलने से नहीं चलेगा। यह गुरुत्व है- मनुष्य का आध्यात्मिक नैतिकवान होना। मनुष्य स्थूल, सुक्ष्म एवं कारण जगत हर तथ्य को समझना आवश्यक है इसलिए मनुष्य को आध्यात्मिकता को वहन करना आवश्यक है। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए नैतिकवान होना आवश्यक है। बिना नैतिकता के आध्यात्मिक शक्ति मनुष्य को दानव बना सकती है तथा बिना आध्यात्मिकता के नैतिकता मनुष्य को अव्यवहारिक बना देती है। इसलिए दोनों का होना आवश्यक है। आध्यात्मिक नैतिकता मनुष्य को देवत्व में प्रतिष्ठित करती है।
विश्व परिवार के चिन्तन की शल्य चिकित्सा कर ही रहे तो मन के जगत की एक व्यवहारिक पद्धति की ओर भी सोचना आवश्यक है। एक परिवार को सकारात्मक सोच जोड़ कर रखती है तथा नकारात्मक सोच तोड़ देती है। अतः मनुष्य का दर्शन सकारात्मक होना आवश्यक है। सकारात्मक सोच बिना रस के नहीं रह सकती है। अतः मनुष्य का दर्शन आनन्दमय है तथा उसके चलने पथ आनन्द मार्ग होना नितांत आवश्यक है। मनुष्य के चलने का पथ आनन्द मार्ग नहीं हुआ तो मनुष्य गिर जाएगा, मतवाद एवं पंथवाद के दलदल में। अतः मनुष्य को सदैव आनन्द मार्गी ही रहना होगा।
विश्व परिवार का संकल्प पत्र लिखने जा रहे हैं तो अर्थव्यवस्था को प्रगतिशील उपयोग तत्व पर खड़ा करना आवश्यक है। यदि इसे मजबूती कहा जाए तो प्रउत अर्थव्यवस्था के बिना सुव्यवस्था एवं सुशासन नहीं आ सकता है। अतः प्रउत अर्थव्यवस्था ही विश्व परिवार की एक मात्र अर्थ व्यवस्था है।
हमने विश्व परिवार की योजना के मूल बिन्दुओं पर मंथन किया, इससे निकल आया -
१. नव्य मानवतावादी सोच,
२. महाविश्व व विश्व सरकार की योजना,
३. सामाजिक आर्थिक इकाई का निर्माण,
४. आध्यात्मिक नैतिकवान मनुष्य का निर्माण, आनन्द मय दर्शन एवं आनन्द मार्ग तथा
५. प्रगतिशील उपयोग तत्व मय अर्थ व्यवस्था है।
विश्व परिवार रचना के इन पंच तत्व के बिना विश्व शांति एवं समृद्धि की परिकल्पना ही अपूर्ण है। यदि कोई इसके अभाव में विश्व परिवार को सपना देख रहा है तो वह उसका दिवास्वप्न है, जो कभी पूर्ण नहीं हो सकता है। विश्व परिवार को विश्व बंधुत्व के बल पर लेकर चलना होता है। विश्व बंधुत्व तभी कायम होगी जब उपर्युक्त पंचतत्व होंगे।
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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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