राष्ट्रीय भाषा बनाम प्रउत की भाषानीति
(National language 🆚 Language policy of PROUT)
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श्री आनन्द किरण "देव" की कलम से
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एक राष्ट्र के नागरिकों के आपसी संवाद के लिए एक या अधिक भाषाओं को संयोजक भाषा के रुप में चुना जाता है। जब किसी देश में एक भाषा, उस देश के इतिहास एवं वर्तमान को जोड़ कर नागरिकों में गौरव का सृजन करती है, तो उसे राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया जाता है। अत: राष्ट्र भाषा के मूल अर्थ में नागरिकों द्वारा ज्यादा बोली जानी वाली भाषा का स्थान नहीं है। विश्व के कई राष्ट्रों ने राष्ट्रीय गौरव के विरुद्ध ज्यादा समझी जाने वाली भाषा को राष्ट्र भाषा के रुप में अंगीकार किया गया है। भारतवर्ष के संदर्भ में देखे तो पता चलता है कि भारत की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। हिन्दी को भारतीय संविधान सभा ने राज भाषा के रुप में अंगीकार किया है लेकिन हिन्दी के राज भाषा के रूप में रहने पर एक मत नहीं है। इसलिए राष्ट्र निर्माताओं के समयावधि विशेष तक अंग्रेजी को कार्यकारी भाषा के रुप में स्वीकार करना पड़ा। इसके चलते आज अंग्रेजी बुद्धिजीवी वर्ग के मनो मस्तिष्क की भाषा बन गई है। वैश्विक परिवेश के आर्थिक मापदंड के बढ़ते प्रभाव के तले राजभाषा हिन्दी का महत्व शून्य की ओर जाता दिखाई दे रहा है। आजकल तथाकथित राष्ट्रवाद के बढ़ते प्रभाव की वजह से उत्तर भारत में हिन्दी का प्रभाव दिखाई देता है। वस्तुतः हिन्दी भारतवर्ष के किसी भी सामाजिक आर्थिक अंचल की स्थानीय एवं मातृभाषा नहीं है। कानून की विसंगतियों के चलते कुछ राज्यों में मातृभाषा के रूप में हिन्दी लिखना पड़ता है। श्री प्रभात रंजन सरकार के मतानुसार संस्कृत को भारत राष्ट्र की राष्ट्र भाषा के रूप में चुनना था। जिसका विरोध भारत के किसी भी अंचल में नहीं होता। इसके साथ श्री सरकार कहते है कि स्थानीय भाषाओं को फलने फूलने का पूर्ण अवसर देना चाहिए। स्थानीय भाषा व्यक्ति के दिल की भाषा होती है। जिसके प्रति व्यक्ति को सर्वाधिक प्रेम होता है। इसके साथ इतिहास के गौरव शास्त्र की भाषा के प्रति स्वाभिमान होता है। भारतवर्ष का इतिहास स्थानीय भाषा, युग विशेष की शासकीय भाषा तथा मजहबीय भाषा में लिखा गया है। लेकिन भारतवर्ष के आत्म गौरव तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान की भाषा सदैव संस्कृत रही है। अत: राष्ट्र भाषा के निर्धारण के संदर्भ में श्री प्रभात रंजन सरकार का मत सबसे अधिक प्रासंगिक है। श्री सरकार प्रशासकीय काम काज की भाषा के रूप में अंग्रेजी, हिन्दी, स्थानीय भाषा एवं लोगों के समझने योग्य भाषा का सुझाव देते हैं।
प्रउत की भाषा नीति का सबसे गुरुत्व अंग स्थानीय भाषा है, जो स्थानीय संस्कृति, स्थानीय लोगों की भावात्मक एकता का सूत्र है। जहाँ संस्कृति तथा भावनात्मक एकता का संदर्भ होता है, वहाँ समान हितों के लेकर एक समाज इकाई का निर्माण होता है। स्थानीय लोगों की यही सामाजिक भावना संपूर्ण समाज को एक परिवार सदृश्य देखने में मदद करता है। जिसके बल पर स्थानीय लोगों मिलकर आत्मनिर्भर सामाजिक आर्थिक इकाई बनाते है। प्रउत की भाषा नीति प्रथम सूत्रधार स्थानीय भाषा है। प्रउत विश्व की सभी भाषा सम्मान करता है, इसलिए विश्व की सभी भाषा को फलने फूलने के सभी अवसर देती है। प्रउत की भाषानीति के स्थानीय इकाई में रहने वाले अन्य समाज की मातृभाषा के विकास का भी अवसर देने की व्यवस्था करता है। यद्यपि प्रउत नीति के अनुसार एक समाज इकाई में रहने वाले लोगों को अपने सामाजिक आर्थिक हितों को उस इकाई में मर्ज करना अनिवार्य होता है। प्रउत की भाषा नीति का तीसरा अंग विश्व, राष्ट्र, प्रांत एवं भुक्ति की लिंक लैग्वेज है। अत : प्रउत उसका सम्मान करता है।
Teri maa ka bhosda kutte
जवाब देंहटाएंTu apna dyan rkhna salle
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