श्री आनन्द किरण "देव" की कलम से
विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ और मानव समाज की एकता
(Diverse cultural expressions and unity of human society)
मनुष्य को मन प्रधान प्राणी कहा गया है। मन की प्रधानता उसे स्वतंत्र चिन्तनशीलता प्रधान करती है। मनुष्य की यह स्वतंत्र चिन्तन शक्ति उसे स्वयं एवं जगत के लिए कुछ करने की प्रेरणा देती है। इसलिए शास्त्र में कहा गया है कि मनुष्य जीवन कर्म के लिए तथा पशु भोग के लिए। यह मनुष्य को शेष प्राणियों से अलग रखता है। मनुष्य की यह योग्यता संसार को अति सुन्दर सजाने में मददगार सिद्ध हुई है। जहाँ संसार के सुन्दरतम रुप की चर्चा होती है, वहाँ सभ्यता एवं संस्कृति का नाम सबसे पहले आता है। विश्व की कोख में विभिन्न सभ्यता एवं संस्कृतियों ने जन्म लिया, इनमें से कुछ काल का चारा बन गया, कुछ अन्य संस्कृति में घुलमिल गई तथा उनमें विशेष संस्कृतियाँ अपने निजी विशेषताओं के चलते हुए विभिन्न झंझावात के बीच निरंतर चलती रही। श्री प्रभात रंजन सरकार के शोधपत्र के अनुसार इस धरा पर 255 के लगभग संस्कृतियाँ वर्तमान में अपनी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ लेकर विद्यमान है। राष्ट्रवाद एवं आधुनिकता की अंधी दौड़ ने बलांत कुछ संस्कृतियों को युग की नजर से ओझल करने की कोशिश की गई। जिसका परिणाम वैश्विक तथा राष्ट्र स्तर पर सांस्कृतिक टकराव पैदा हुआ। जिसने एक, अखंड व अविभाज्य मानव समाज को विखंडित करने का कुत्सित प्रयास किया। लेकिन मानव समाज की नीव समता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व से भरी गई है इसलिए इसने मानव समाज की एकता के भाव व चिन्तन को नहीं मार पाई है। इसलिए युगपुरुष श्री प्रभात रंजन सरकार ने दुनिया के सभी नैतिकवादियों को एकजुट होकर विश्व बंधुत्व कायम करने की जिम्मेदारी दी है। इसलिए उन्होंने उदघोष किया है कि मानव मानव एक है, मानव का धर्म एक है। उनके इस उदघोष ने मानव समाज के प्रत्येक सदस्यों को दायित्व दिया कि 'जातपात की करो विदाई, मानव मानव भाई भाई; एक चूल्हा एक चौका, एक है मानव समाज' की थीम पर कार्य कर धरती पर खुशहाली का अध्याय लिखी।
जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता की ओट में किसी भी महान कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती है साथ में विश्व एकता के नाम पर पूंजीवाद का शोषण अस्त्र छंद व्यक्ति एवं किसी भूभाग विशेष को नहीं दिया जा सकता है। इसलिए मानव के निर्मल भाव का सम्मान करते हुए सांस्कृतिक जनगोष्ठियों के आत्म सम्मान एवं स्वाभिमान की रक्षा करते हुए उसमें भावना एकता का निर्माण करना होगा। इसके बिना आर्थिक आत्मनिर्भर इकाई एवं सदविप्र शासन की ओर बढ़ते कदम फीके व दुर्गम नजर आते हैं। इसलिए सामाजिक आर्थिक आंदोलन का पहला कदम सांस्कृतिक जागरण रखा गया है। विश्व की प्रत्येक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को नव्य मानवतावाद व सार्वभौमिक विचारधारा के आधार पर फलने फूलने के सभी अवसर उपलब्ध कराना ही प्रउत एवं प्राउटिस्टों का प्रथम कर्म है। यह करते ही विभिन्न सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ एवं मानव समाज की एकता साथ साथ प्रगति करती रहेगी।
सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ मानव समाज की मित्र हैं, शत्रु नहीं। उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भर इकाई के रुप में विकसित करने से स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व का भाव प्रगाढ़ होता है तथा यही मानव की एकता के आधार तत्व है। मनुष्य के कर्म कौशल का वैचित्र्य सामाजिक समानता के मार्ग में बाधक नहीं होता है। विशेष योग्यता एवं न्यूनतम आवश्यकता के मापदंड में असंतुलन मनुष्य को सामाजिक भेद की ओर ले जाने का असफल प्रयास करेगा लेकिन सदविप्र बोर्ड की सजगता इसे कभी लाने नहीं देगा। अत: सदैव मानव समाज की एकता की रक्षा होगी तथा सांस्कृतिक विभिन्नता का सुन्दर दीप आबाध रुप जगमगाता रहेगा।
सांस्कृतिक विभिन्नता की अभिव्यक्तियाँ तथा मानव समाज की एकता के स्थायित्व के तृतीय प्रयास भेदमूलक समाज व्यवस्था का सम्पूर्ण उन्मूलन में निहित है। इसको नजर अंदाज कर प्रउत अपने लक्ष्य को नहीं साध सकता है। इसलिए श्री प्रभात रंजन सरकार ने भेदमूलक बयां पक्षी के घोसले को नोचने की सलाह दी है।
विषय की अंतिम सिद्धि सदविप्र शासन में निहित है। सदविप्र शासन के बिना सुव्यवस्था, सुशासन तथा सुसिद्धांत प्रतिस्थापित नहीं हो सकता है, जो कि प्रउत आंदोलन का लक्ष्य है।
----------------------------
श्री आनन्द किरण "देव"
कांग्रेसियों को इतना ज्ञानी बनने की जरूरत नहीं है
जवाब देंहटाएं