ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना एवं भारतीय राजनीति में हलचल
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करण सिंह शिवतलाव की कलम से
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ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है। इससे पूर्व महेंद्र चौधरी का फिजी का प्रधानमंत्री बनना, कमला हेरस का अमेरिका का उपराष्ट्रपति बनना भी गौरव की बात थी। बात यहाँ तक रहती तो देश की बात होती लेकिन बात राजनैतिक खिंचातान में पड़ जाती है तो गौरव का क्षण फिका पड़ जाता है। वैसे मैं विश्व नागरिक हूँ, सम्पूर्ण वसुंधरा मेरे स्वदेश है। इसलिए किसी व्यक्ति का देश, जाति अथवा धर्म से संबंध हो जाना ही गौरव विषय नहीं मानता हूँ। गौरव व्यक्ति पर नहीं विचारधारा पर होना चाहिए, यह पाठ भारतीय संस्कृति ने विश्व को पढ़ाया है। व्यक्ति कितना भी सुन्दर होने पर भी उनकी विचारधारा में त्रुटि होने पर उनके द्वारा क्षति होना स्वाभाविक है। मैं ऋषि सुनक में इस प्रकार के दोष नहीं देखता हूँ, मगर भारतीय राजनीति का त्रुटिपूर्ण स्वरूप राईं का पहाड़ बना देता है। मेरा भारतीय राजनीति से प्रश्न है कि ऋषि सुनक का ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनना राष्ट्रीय गौरव है तो सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री की ओर बढ़े कदम राष्ट्रीय शोक क्यों था? ऋषि सुनक भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक है तथा सोनिया गांधी इटालियन मूल की भारतीय नागरिक है। ऋषि सुनक भारतीय मूल ब्रिटिश का पौत्र है तथा सोनिया गांधी भारत एवं भारत के नागरिक की धर्मपत्नी है। यदि भारत की वर्तमान राजनीति मेरे इस प्रश्न का उत्तर देती है तो विषय कुछ सार्थक हो सकता है। वैसे मैं सोनिया गांधी का हिमायती नहीं हूँ तथा उनकी रुखी सूखी विचारधारा का समर्थन नहीं करता हूँ। लेकिन सोनिया गांधी भारत राजनीति के सामने एक प्रश्न थी। यदि इसका उत्तर वर्तमान ने नहीं दिया तो भविष्य के समक्ष इतिहास का एक प्रश्न बनकर घूमेगा। यद्यपि सोनिया गांधी ने त्याग का अध्याय लिखकर फांसी पर लटकने वाली विचारधारा को बसा दिया था। इस विषय पर मुड़न करवाने इत्यादि न जाने कितने संकल्प लेने वाली विचारधारा को ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने पर उत्सव मानाने का कोई अधिकार नहीं है।
अब भारतीय राजनीति की हलचल को वैचारिक मूल्यांकन पर देखते है। कल तक कांग्रेस नेता शशि थरूर पर हमदर्दी दिखाने वाले आज उनके लगान पर लगाम वाले बयान पर कांग्रेस को घेरने निकले है। यह व्यक्ति के निजी विचार है, जिस पर राजनीति विचार तो कर सकती है लेकिन विवाद नहीं बना सकती है। 75 साल लगान पर लगाम का अर्थ क्या है। यह शशि थरूर ही बता सकते है, लेकिन यह किसी भी पैमाने पर सत्य उक्ति नहीं लग रही है। लगान की मार राष्ट्रीय समस्या है इसका अन्य राष्ट्र से कोई संबंध नहीं है। ऋषि सुनक अपनी योग्यता के बल पर ब्रिटिश के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे हैं, उसकी तारीफ होना स्वाभाविक है तथा उन्हें भारत से जोड़ना तो सही बात है; लेकिन राजनीति से जोड़ना कदापि सही नहीं है।
मुस्लिम प्रधानमंत्री की उठती मांग का ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने से जोड़ना अथवा इसे विषय बनाकर चर्चा पर चर्चा करना भारतीय मीडिया की मूर्खता एवं राजनीति के पर्दे के लिए पीछे की गहरी साजिश के अतिरिक्त कुछ नहीं है। जिन मुल्लाओं ने यह मांग की है, क्या भारतीय मुस्लिम समाज के द्वारा अधिकृत है? अथवा शांतिप्रिय भारतीय समाज को महौल के लिए मीडिया एवं पर्दे के पीछे वाली राजनीति की साजिश है? इसकी निष्पक्ष संस्था द्वारा निष्पक्ष जांच करवानी चाहिए। आदर्श लोकतंत्र में इस प्रकार के प्रश्नों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। भारतीय संसद को जाति एवं सम्प्रदाय के मुद्दे उठाकर राष्ट्र एवं समाज को भ्रमित करने वाली राजनीति एवं मीडिया की करतूतों के विरुद्ध कानून बनाना चाहिए। ऐसा करने वाले राजनेता एवं मीडिया कर्मी महापातकी है। जिसके कर्मों से समाज दीर्घ काल तक भ्रमित होता है। इसलिए यह कठोर दंड के अधिकारी है। भारतीय न्यायिक प्रक्रिया भी आज आक्षेपों को लेकर चल रही है। इसलिए उनके संदर्भ में पुनः विचार की आवश्यकता है। वैसे मैं न्यायपालिका का अत्यधिक सम्मान करता हूँ क्योंकि तथाकथित लोकतंत्र के युग में इसने ही देश एवं समाज को बसा कर रखा है, अन्यथा राजनीति तो उसे स्वाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। गंदी राजनीति के विकराल हाथों से देश को बसाना समस्त भारतीय का जन्मसिद्ध अधिकार है, उसे पाकर ही रहना चाहिए।
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करण सिंह शिवतलाव
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