समाज आंदोलन कैसे?


🌹🙏नमस्कार🙏🌹
आज का विषय है - समाज आंदोलन कैसे? प्रउत को धरातल पर स्थापित करने के लिए प्रउत प्रणेता ने समाज आंदोलन की अवधारणा प्रस्तुत की है। इसका सहयोग करने के लिए पंच शाखा (पांच फेडरेशन) का संगठन किया गया है। इन सबको एकता के सूत्र में पिरोने के लिए वैश्विक संगठन प्राउटिस्ट यूनिवर्सल का निर्माण किया गया है। अतः प्रउत को धरातल पर उतारने सबसे गुरुत्व एवं महत्वपूर्ण भूमिका समाज आंदोलन की है। अतः समाज आंदोलन कैसे हो अथवा कैसे करें की जानकारी सभी प्राउटिस्टों को होनी आवश्यक है। 

प्रउत प्रणेता ने विश्व के उद्धार एवं समग्र विकास के लिए विभिन्न सामाजिक आर्थिक इकाइयों का संगठन किया गया है। यह इकाइयां अपने क्षेत्र में स्वतंत्र सामाजिक आर्थिक निकाय है। इसके उपर किसी प्रकार का नियंत्रण एवं नियमन नहीं है। चूंकि यह सामाजिक आर्थिक इकाइयां आनन्द मार्ग के आदर्श को जीवन व्रत लेकर चलती है इसलिए वैश्विक एकता, एक अखंड व अविभाज्य मानव समाज एवं नव्य मानवतावाद को व्यष्टिगत एवं समष्टिगत धर्म मानती है। अतः पूर्णतः स्वतंत्र सामाजिक आर्थिक निकाय होने पर भी उनका ऐसा कोई कार्य नहीं होता है, जो उपरोक्त आदर्श को खंडित करें । इसलिए प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति नामक के मंच का निर्माण किया गया है, जहाँ समाज के नेता, पंच एवं कार्यकर्ता मिलकर सर्वजन हितार्थ एवं सर्वजन सुखार्थ मंथन कर एक विमर्श प्रस्तुत किया जा सकता है। 

अब यक्ष प्रश्न - समाज आंदोलन कैसे पर मंथन करते है। चूंकि सामाजिक आर्थिक इकाई का नामकरण भाषा पर किया गया है, इसलिए सबसे पहला कदम भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को लेकर होता है, जिसे हम सांस्कृतिक आंदोलन नाम दे सकते है। इस शुभ कार्य को प्रगति देने के लिए नेपथ्य में समाज का संगठन तैयार होना आवश्यक शर्त है तथा इसको दिशा निर्देशन करने एवं प्रउत व आनन्द मार्ग आदर्श के अनुकूल बनाये रखने के लिए सदविप्र बोर्ड का गठन परम आवश्यक है। एक कहावत है कि जैसे जैसे आगे बढ़ते जाओंगे कारबा स्वत: ही बनता जाएगा। यह कारबा दिशाहीन एवं लक्ष्य से विमुख न हो इसलिए समाज इकाई का संगठन एवं सदविप्र बोर्ड को एक संकल्प पत्र की तरह पढ़ाया जाता है। 

सांस्कृतिक आंदोलन प्रगति पर होने के बाद समाज आंदोलन कैसे?
शुरू किया जाता है। प्राय देखा गया है सांस्कृतिक आंदोलन के दरमियान कुछ निहित स्वार्थी लोगों का संगठन में मिलन हो जाता है, वे आर्थिक आंदोलन की प्रगति के साथ हमसे अलग होकर अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए हमारे प्रतिद्वंद्वी बनकर अपने सन्मुख आते है, जिस अपने विमुख पराया बनकर आंखों सन्मुख आना कहते है, अपन इस, एकाकीपन में पथ नहीं भूलना ही एक पथिक सच्चा धर्म है। 

आर्थिक आंदोलन की प्रगति के साथ एक सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है। समाज में भेद रहने पर संगठन एवं संस्थान में गुटबाजी का निर्माण हो जाता है, जो समग्र आनन्द मार्ग आंदोलन व प्रउत आंदोलन के लिए खतरनाक है, इसलिए भेद रहित समाज निर्माण को लेकर एक सामाजिक आंदोलन परम आवश्यक है। सामाजिक आंदोलन की प्रगति के साथ ही अर्थ जगत के दल दल में कुछ सुुंदरता दिखाई देते है, इसकी मन भावना मृगतृष्णा में पथ से विचलित करने का प्रयास करती है, उस मृगतृष्णा में पड़कर पथ भूलना सच्चे पथिक का कार्य नहीं है। 

सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक आंदोलन की प्रगति एवं सुदृढ़ता एक राजनैतिक आंदोलन की भी आवश्यकता सूचित करेंगे, वह आंदोलन सदविप्र राज व्यवस्था को लेकर होगा। यह सदविप्र राज प्रउत आंदोलन की चरम परिणित है। 

उपसंहार में - संगठित होकर भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को लेकर सांस्कृतिक आंदोलन शुरू करना चाहिए, तत्पश्चात आर्थिक आंदोलन, फिर सामाजिक एवं अन्ततोगत्वा राजनैतिक आंदोलन करना ही प्रउत का समाज आंदोलन की रुपरेखा है। 

आपका
करण सिंह राजपुरोहित शिवतलाव
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नोट - राजनैतिक आंदोलन सहज एवं सुलभ रास्ता दिखाई देता है इसलिए लोग उसके आकर्षण में पड़ जाते है। फिर कहावत सिद्ध होती आए थे हरि भजन को एठन लागे कपास
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1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुंदर, ज्ञानवधर्क,मनन योग्य लेख है। बहुत बहुत धन्यवाद दादा जी।

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