सांस्कृतिक समाज आंदोलन - 01 ( समाज का सांस्कृतिक उत्थान)


आज चर्चा का विषय है - समाज आंदोलन का प्रथम पायदान सांस्कृतिक आंदोलन अथवा सांस्कृतिक उत्थान। प्रउत की सामाजिक इकाइयां भाषा, साहित्य व संस्कृति के नाम की पहचान लिए खड़ी है। अत: प्रथम पायदान में सांस्कृतिक उत्थान को लेकर कार्य शुरू करना चाहिए। 

1. समाज इकाई क्षेत्र की भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, संस्कार, मर्यादाएँ, जीवन शैली, कार्य प्रणाली एवं संसाधन उसकी पहचान एवं निजी विशेषताएँ है। उसका गौरव एवं स्वाभिमान हरेक मन में रहता है। अत: एक प्राउटिस्ट को इसे लेकर अपना कार्य आरंभ करना चाहिए। 

2. इस क्षेत्र में प्रथम कार्य संबंधित समाज इकाई परिक्षेत्र की विद्वान जनों का सहयोग लेकर वहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति के मूल्यों का उत्खनन करना तथा उन मूल्यों को आनन्द मार्ग के आदर्श एवं प्रउत आंदोलन की योजना के अनुकूल बनाकर क्षेत्र के जनसमुदाय के समक्ष परोसने की तैयारी करनी चाहिए। 

3. समाज इकाई परिक्षेत्र के आदर्श व्यक्तित्व जिन्होंने सर्वजन हितार्थ सुखार्थ अपना जीवन समर्पित कर दिया था, उनका संकलन कर उनकी जयंती एवं पूण्यतिथि को समाज इकाई परिक्षेत्र की सांस्कृतिक उत्थान दिवसों के रूप में मनाने की योजना को क्रियांवयन करना चाहिए। 

4. समाज इकाई की सभ्यता व संस्कृति के अनुरूप आनन्द मार्ग के आदर्श को गुरुत्व देते हुए साहित्य गोष्ठी, काव्य गोष्ठी, अभिनय, व्याख्यान, सतसंग एवं जागरण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। 

5. समाज संगठन की संरचना के अनुसार वार्ड, गाँव, पंचायत, प्रखण्ड, भुक्ति, जनपद एवं समाज के केन्द्रीय स्तर की समाज इकाई की सभ्यता व संस्कृति तथा आनन्द मार्ग के अनुरूप भाषण, लेखन, चित्रांकन, अभिनयात्मक, खेलकूद व सामान्य ज्ञान की आयुवार व क्षमतावार प्रतियोगिताओं का आयोजन करना चाहिए। 

6. सांस्कृतिक मूल्य को नूतन युग के अनुकूल चलन करने में पीछे नहीं रहना चाहिए, अतः प्राउटिस्टों को शिशु, बालक, किशोर, युवक, प्रौढ़ व वृद्धों के अनुकूल नूतन प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें याद रखना चाहिए कि प्रउत आंदोलन एवं आनन्द मार्ग आदर्श के प्रतिकूल कोई तकनीकी न जाएं

7. समाज इकाई क्षेत्र की भाषा, इतिहास,सभ्यता व संस्कृति के मूल्यों को वैश्विक चिन्तन,नव्य मानवतावादी सोच व आनन्दमय उत्थान के सांचे ढ़ालने के उस क्षेत्र की भाषा में आनन्द संगीत व प्रउत गीतों कई रचना कर जन जन की जुबान तक पहुँचाना चाहिए तथा प्रभात संगीत पर भी शोधकर्ताओं को लग जाना चाहिए। 

इस प्रकार प्रउत का समाज आंदोलन अपने प्रथम पायदान में शक्तिशाली, प्रबल, सामर्थ्यवान व प्रभावशाली बन जाएगा, फिर आगामी पायदान आर्थिक उत्थान की ओर चल पड़ना है। यही से आध्यात्मिक नैतिकवान व्यक्ति मिलेंगे जो आर्थिक उत्थान की रीढ़ सहकारिता में सहयोग प्रदान करेंगी। 


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