राजपुरोहित शब्द आध्यात्मिक व्याख्या

राजपुरोहित शब्द का अर्थ राजाओं के पुरोहित के रुप में बताया गया है। पुरोहित अर्थात पौरोहित्य कार्य करने वाला व्यक्ति है। इस प्रकार राजपुरोहित शब्द का अर्थ हुआ - राजा तथा राज्य के पौरोहित्य कार्य संपन्न कराने वाला व्यक्ति। पौरोहित्य शब्द पर विचार करने पर पता चलता है कि पौर व हित दो शब्द के संयोग से पौरोहित्य शब्द का निर्माण हुआ है। पौर शब्द का अर्थ होता है नगरवासी अथवा नागरिक। जो कार्य नागरिकों के हित में हो उस कार्य को पौरोहित्य कार्य कहा जाता है। जिसमें इहलोक एवं परलोक दोनों का हित निहित है तथा जो इस कार्य को कर सकता है अथवा करा सकता है, उसे पुरोहित कहा जाता है।

राजपुरोहित शब्द की साधारण व्याख्या के बाद आध्यात्मिक व्याख्या की खोज में निकलते है। राज + पुर+हित - राज अर्थात रहस्य, पुर अर्थात नगर अर्थात काया नगर एवं हित का अर्थ कल्याणार्थ है। मनुष्य - शरीर, मन एवं आत्मा से संयुक्त सत्ता का नाम है। जो व्यक्ति मानव शरीर के रहस्य को जानता है तथा उसके कल्याण की कला में दक्ष है, उसे राजपुरोहित कहा जाता है। इस अर्थ राजपुरोहित शब्द गुरु शब्द का पर्यायवाची है। इस अर्थ को समष्टि जगत में लेने पर राजपुरोहित शब्द का अर्थ होता है- जो व्यष्टि सृष्टि के रहस्य को जानता है तथा उसका जगत कल्याण में उपयोग करने की कला में दक्ष है।

राजपुरोहित शब्द की साधारण एवं आध्यात्मिक व्याख्या में परहित शब्द उभयनिष्ठ है। इस प्रकार राजपुरोहित शब्द की सूक्ष्म व्याख्या - जिस व्यक्ति का जन्म पर हितार्थ हुआ है अथवा जिसने पर हितार्थ जीने का संकल्प लिया है, उसे राजपुरोहित नाम दिया गया है।

राजपुरोहित शब्द की व्याख्याएँ बताती है कि राजपुरोहित कभी भी संकीर्ण, स्वार्थी एवं लालची नहीं हो सकता अथवा यह शब्दावली राजपुरोहित शब्द में नहीं समाती है अर्थात राजपुरोहित सदैव सर्वजन हित एवं सर्वजन कल्याण का व्रत धारण करके चलता है।
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    🌹श्री आनन्द किरण "देव"🌹
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