👑 श्रीराम युग- सप्तम् संभूति 👑 ⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
ग्राम स्वराज युग संभूति के श्री राम युग अथवा रामराज्य के नाम से जाना जाता है। भृगुपति अर्थात ऋषि युग के बाद ग्राम राज्य अस्तित्व में आये। यह ग्राम राज्य सामाजिक आर्थिक इकाई के रुप में कार्य करते है। ऋषि युग के उत्तर काल विभिन्न गुरुकुल के आचार्यों द्वारा आदर्श समाज के चित्रण को लेकर नाटकों का मंथन किए जाते थे। वशिष्ठ गुरुकुल का रामराज्य नाटक सबसे अधिक ख्याति पाई। विश्वामित्र गुरुकुल के द्वारा सीता स्वयंवर ने भी ख्याति प्राप्त की। इसके बाद राम को नायक रुप में चित्रित एक के बाद एक नाटक का मंथन होने लगे। इसलिए यह युग को राम युग के नाम जाना जाने लगा।
तंत्र में पृथ्वी तत्व सोने की लंका, जलतत्व को सागर पर सेतु बंधन, अग्नि तत्व को बालि वध, वायु तत्त्व को हनुमान, आकाश तत्व को शब्द तन्मात्र शबरी , नासिक के ललना चक्र गंध से जोड़ते जटायु , आज्ञा चक्र को पंचतत्व की पंचवटी, गुरु चक्र को चित्रकुट एवं सहस्रार चक्र अयोध्या। जिसके बारे में कहा जाता है कि साधना समर द्वारा अ योद्धय (अजेय) है। इस अवस्था को अयोध्या के सांकेतिक नामों से चित्रित किया गया। जीवात्मा एवं कुलकुंडलिनी को सीताराम के रुप समझाया गया। कालांतर में तंत्र का राम विज्ञान एवं गुरुकुल के नाट्य राम चरित्र मिलकर रामायण के रुप में अस्तित्व में आए।
बाल्मीकी द्वारा रचित रामायण को श्री राम युग का इतिहास लिखने का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। बताया जाता हैं कि बाल्मीकी जी ने श्री राम के जन्म से पूर्व इस गाथा को लिख दिया था। इसके कारण श्री राम पर काल्पनिक पात्र होने की आशंकाएँ व्यक्त की गई। मैंने इतिहास का लेखन कार्य आरंभ करने पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था। कथाएँ आस्था एवं विश्वास के बिम्ब होते है। इनकी सत्यता जाँच करना मेरा विषय नहीं है। इसके बाद श्री राम जी के चरित्र का भारतवर्ष एवं भारतवर्ष के बाहर भी विभिन्न भाषाओं में गाया गया। तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस ने सबसे अधिक लोकप्रियता हासिल की है।
श्री राम युग ग्राम राज्य सभ्यता का युग था। मानव ने इस युग में आते आते खेती एवं अन्य व्यवसाय में सिद्धहस्त हासिल कर ली थी। एक स्थान पर मनुष्य ने रहना प्रारंभ किया। सामाजिक जिम्मेदारियों को वहन करते आर्थिक विषय में अधिक रुचि लेने लगा। इस युग में विश्व में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्र को लेकर यह ग्राम राज्य अस्तित्व में आए। इन्होंने प्रशासनिक योग्यता भगवान सदाशिव द्वारा प्रतिपादित गण व्यवस्था से हासिल कर दी थी। चूंकि ग्राम स्वराज आर्थिक इकाई के केंद्र हुआ करते थे। अत: यह राज्य विशुद्ध वैश्य गणराज्य थे।
श्री राम युग का ऐतिहासिक मूल्यांकन ➡ विश्व में जहाँ भी मानव सभ्यता का निर्माण हुआ था। वहाँ ग्राम इकाइयों के बाद नगरी सभ्यता का विकास हुआ था। इतिहास के कालक्रम के अनुसार 3000 से 4500 ईसा पूर्व का युग ग्राम स्वराज जो भारतीय सभ्यता में राम राज्य के नाम विश्लेषित किया गया।
(१) राजनैतिक जीवन ➡ इस युग में राजनैतिक व्यवस्था सुव्यवस्थित रुप से लागू हो गई थी। राजा के चुनाव में योग्यता के मापदंड का ध्यान रखा जाता था। सभा, मंत्रीमंडल इत्यादि इकाइयों का गठन हो गया था। प्रशासनिक कार्यों में नारियों की भागीदारी के प्रमाण मिलते हैं। राज्य छोटी-छोटी जनगोष्ठी के बने थे।
(२) सामाजिक जीवन ➡ सुव्यवस्थित सामाजिक परंपरा का गठन हो गया था। पुरुष एक से अधिक विवाह करता था। विधवा विवाह की प्रथा विद्यमान होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। नारियों की स्थिति सम्मान जनक होने के प्रमाण उपलब्ध हैं।
(३) धार्मिक जीवन ➡ इस युग में धर्म के क्षेत्र में व्यापक जाग्रति थी। पूजा पद्धति के विभिन्न तरीके उपलब्ध थे। इस युग में विश्व के लगभग सभी स्थानों पर मूर्ति पूजा के प्रमाण उपलब्ध नहीं है। जीवन जीने के कुछ नैतिक मानदंड को लेकर चलने वाले का समाज में मान एवं सम्मान था।
(४) आर्थिक जीवन ➡ यह युग सबसे अधिक आर्थिक जगत में विकास की गाथा लिखता है। आर्थिक जगत की दृष्टि यह युग विश्व इतिहास का स्वर्ण युग था। क्षेत्रीयता विभिन्नता के आधार आर्थिक इकाई को लेकर राज्य गठित थे। व्यापार के परंपरा सुव्यवस्थित संचालित था। उद्योग वही स्थापित किये गये थे। जहां कच्चा माल उपलब्ध हो जाता था।
(५) मनोरंजनात्मक दशा ➡ श्री राम युग में सभ्यता का काफी विकास हो गया था। मनोरंजनात्मक क्षेत्र भी काफी विकसित हो गया था। रंगमंच पर नाट्य का मंथन एवं युद्ध कौशल की करतब मुख्य आकर्षण हुआ करते होंगे। शिक्षा पद्धति का भी व्यवस्थित पद्धति लागू की गई थी।
(६) विश्व को देन ➡ इस युग विश्व को जीवन जीने की आदर्श शैली प्रदान की तथा भक्ति को एक जन आंदोलन में रूपांतरित कर दिखाया।
श्री राम युग प्रगतिशील उपयोग तत्व द्वारा प्रतिपादित समाज चक्र में द्वितीय वैश्य युग की परिधि में रखा जाता है तथा भारतीय चिन्तन इस त्रेतायुग का अन्तिम पायदान बताता है। इसके बाद पुनः समाज चक्र घूर्णन की अवस्था में आता है। यह विश्व इतिहास की द्वितीय परिक्रांति हुई। उसके बाद विश्व को एक युग संधि गुजरना पड़ा, जो तृतीय शूद्र युग का शंखनाद था।
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लेखक - श्री आनन्द किरण
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