भविष्य का स्वर्णिम भारत

भारतवर्ष स्वर्णिम भविष्य की ओर बढ़ रहा है। इस ओर बढ़ रहे भारत के समक्ष एक प्रश्न है कि इसका मानक मापक क्या होगा? इस प्रश्न का उत्तर जाने बिना, विषय  पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता है। विश्व की समस्त सभ्यता एवं संस्कृति का अवलोकन एवं मूल्यांकन करने पर ज्ञात होता है कि प्राचीन भारतवर्ष के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्य उपरोक्त मानदंड के अनुकूल है। भारतवर्ष जब  उपर्युक्त मानदंड को प्राप्त कर लेगा अथवा इससे भी आगे बढ़ जाएगा, तब उस अवस्था को स्वर्णिम भारत नाम दिया जाएगा
         
प्रत्येक भारतीय के मन में स्वर्णिम भारत देखने की चाहत है लेकिन वर्तमान युग की सरकारों की  नीतियों सेभारतवर्ष का यह स्वप्न पूर्ण नहीं हो सकता है। इसलिए यह प्रश्न ओर भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि स्वर्णिम भारत का निर्माण कौन करेगा तथा भारतवर्ष अपने स्वर्णिम भविष्य की दिशा में कितना आगे बढ़ा है ?  इन प्रश्नों के उत्तर पाने का प्रथम प्रयास वर्तमान भारतवर्ष के निर्माण का दावा करने वाले राष्ट्रीय राजनैतिक दलों
की कार्य पद्धति से करता हूँ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को देश की आजादी के बाद 60 वर्ष तक देखा गया लेकिन वे
स्वर्णिम भारत का निर्माण नहीं कर सके। भारत जनता पार्टी का भी लगभग दस वर्ष का कार्यकाल देखा गया है लेकिन इनकी नीतियां एवं सिद्धांत भी भारतवर्ष का स्वर्णिम अध्याय लिखने में अक्षम हैं।
कुछ राजनैतिक विचारधारा बरसाती पानी के बुलबुल की भाँति है, जिसका जीवन काल छंद पल का है तथा अन्यन बोझ है, जिसे भारतवर्ष ढोहता आ रहा है। इसलिए भारत के स्वर्णिम अध्याय को कई ओर खोजना होगा।अनुसंधान की यात्रा के क्रम में तथाकथित सांस्कृतिक मूल्यों के जागरण करने वाली संस्थाओं की शल्यचिकित्सा
करते हैं। साम्प्रदायिक एवं मजहबीय व्यक्ति का निर्माण कर यह संस्थाएं भारतवर्ष के स्वर्णिम स्वरूप को निखारने में अक्षम हैं। एक विकलांग विचारधारा भारत के साथ न्याय नहीं कर सकती है। इसलिए तथाकथित इन संस्थाओं से आशा लगाना मूर्खता अथवा नादानी है।

यह सत्य है कि स्वर्णिम भारत का निर्माण किसी अलौकिक चमत्कार अथवा मायावी शक्ति के बल पर नहीं हो
सकता है। इसलिए विशेष साधना की आवश्यकता है। यह भी सत्य है कि स्वर्णिम भारत का निर्माण किसी
कारखाने अथवा कार्यशाला में नहीं होने वाला है। भारत का उज्ज्वल भविष्य धरती की कठोर माटी पर उरेखित
करना है। इसलिए यह संदेह हो सकता है कि उपर्युक्त आलोच्य अध्याय लिखा जाएगा अथवा नहीं? जिस अध्याय को स्वयं परम पुरुष का आशीर्वाद है, वह कदापि असंभव नहीं हो सकता है।

आखिर कौन करेगा स्वर्णिम भारतवर्ष का निर्माण? यह प्रश्न स्वभाविक है। भारतवर्ष की प्राचीन संस्कृति का निर्माण जादुई छड़ी से नहीं हुई थी। उसका निर्माण आध्यात्मिक नैतिकता के बल पर हुआ था। अत: समस्या एकदम सुस्पष्ट हो जाती है कि स्वर्णिम भारत के निर्माण की योजना आध्यात्मिक नैतिकता के बल पर संभव है।
इसको मध्य नज़र रखते हुए भारतवर्ष की आध्यात्मिक संस्थाओं की पाठशाला में प्रवेश करकर देखते हैं, कई यहाँ तो स्वर्णिम भारत का निर्माण  तो नहीं हो रहा है। तथाकथित बलात्कार के आरोपी
एवं दोषी संत समुदाय को देखकर साधारण से साधारण जन भी कह सकता है कि स्वर्णिम भारतवर्ष का निर्माण यह तथाकथित धर्म के ठेकेदार नहीं कर सकते हैं। ओशो की नैतिकता विहिन आध्यात्म से आश लगाना ,
बिन बादल के बारीश की आश लगाने जैसा है। स्वर्णिम भारत की तस्वीर वही दिखा सकता है, जिसमें आध्यात्मिक नैतिकता तथा समाज के प्रति उत्तरदायित्व बोध कराने वाले सामाजिक आर्थिक सिद्धांत होगे तथा उसका दृष्टिकोण सामाजिक होगा। वहीं स्वर्णिम भारत निर्माण कर सकता है। हम वहाँ पहुँच गए हैं, जहाँ से  स्वर्णिम भारतवर्ष का ध्वज स्पष्ट दिखाई दे रही है। आध्यात्मिक, नैतिकता, कर्मशीलता एवं सामाजिक दृष्टिकोण के बल पर ही स्वर्णिम भारतवर्ष का निर्माण होगा,  
जब तक आध्यात्मिकता की पाठशाला में जगत का मिथ्या रुप पढ़ाया जाता है तब तक आध्यात्मिकता पलायनवाद का नाम बन जाता है। इससे व्यष्टि का सामाजिक दृष्टिकोण नकारात्मकता से पौषित होता है। जिससे कर्मशीलता निष्कर्मणीयता में परिवर्तित होने लगती है। उसका परिणाम यह निकलता है कि व्यष्टि का भाव जगत एवं वस्तु जगत के बीच सामंजस्य नहीं रहता है तथा पल-पल झूठ का आलंबन करता है।
नैतिक मूल्य यहाँ शर्मसार हो जाते है तथा आध्यात्मिक समाज पर बोझ बन जाती है। यह चिन्तन  स्वर्णिम भारतवर्ष को ध्वस्त कर देते हैं। इसलिए यहाँ यह उक्ति लिखना अधिक उचित है कि

हमें तो लूटा अपनों ने, गैरों में क्या दम था।
मेरी भी किश्ती वहाँ डुबी, जहाँ पानी कम था।।
    हम भारतवर्ष की दुर्दशा के लिए कभी अंग्रेजों को  तो कभी तुर्क-अफगानों को जिम्मेदार ठहराते है। कभी भी हमने स्वयं अपने गेरेबान में नहीं झांका। हमारा स्वयं का चिन्तन ही दोषपूर्ण रहा जिसकी बदौलत हम पराधीनता के अभिशाप को वरण किया। प्राचीन भारतवर्ष का  धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के पुरुषार्थों की सिद्धि का चिन्तन जगत के मिथ्या सिद्धांत को अंगीकार करने से सफल नहीं हो सकता है। यही चिन्तन हमारी अधोगति का जिम्मेदार है।

श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने ब्रह्म सत्य एवं जगत के आपेक्षिक सत्य के सूत्र का प्रतिपादन कर एक क्रांतिकारी
युग का शंखनाद किया है। उन्होंने भविष्य की सभ्यता के लिए छ: सूत्री फार्मूला प्रदान किया है।
आध्यात्मिक दर्शन, सामाजिक आर्थिक सिद्धांत, सामाजिक दृष्टिकोण, सुव्यवस्थित साधना पद्धति,
त्रिशास्त्र एवं पथ प्रदर्शक। यह सूत्र भविष्य के स्वर्णिम भारतवर्ष की ओर ले चलते हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित आनन्द मार्ग दर्शन एक वैज्ञानिक आध्यात्मिक दर्शन है। प्रगतिशील उपयोग तत्व एक व्यवहारिक सामाजिक आर्थिक सिद्धांत है। नव्य मानवतावाद एक समग्र सामाजिक दृष्टिकोण है। आनन्द सूत्रम, नमो शिवाय शांताय, नमामी कृष्णम् सुन्दरम्, सुभाषित संग्रह, आनन्द वचनानामृतम, कणिका में आनन्द मार्ग दर्शन, कणिका में प्रउत, शब्द चयनिका, मानव समाज इत्यादि इत्यादि एक विस्तृत त्रिशास्त्र है तथा  श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के रुप में विश्व को पथ प्रदर्शक मिलना सभ्यता का सौभाग्य है।
        स्वर्णिम भारतवर्ष स्थापित करने हेतु श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा विश्लेषित सदविप्र समाज
एवं राज व्यवस्था  को जानना, समझना एवं आत्मसात करना आवश्यक है।
स्वर्णिम भारतवर्ष का ध्वजारोहण करने में अब अधिक प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है।हे मनुष्य कमर कस ले प्राउटिष्ट यूनिवर्सल के संग सुखद, सुन्दर एवं प्रगतिशील विश्व का निर्माण करे।
साथ  भारतवर्ष में एक नये स्वर्णिम युग का ध्वजारोहण करे।
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 लेखक श्री आनन्द किरण
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(यह लेख मौलिक, अप्रकाशित एवं स्वलिखित हैं)
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