🔴👉 किसी शास्त्र मे लिखा हैं कि स्वधर्म श्रेष्ठ है तथा परधर्म चिन्तन उचित नहीं है। यहाँ से मेरा प्रश्न शुरु होता है कि कौनसी जाति अथवा सम्प्रदाय श्रेष्ठ है? इस शास्त्रोक्ति को समझे बिना हम निर्णय नहीं कर सकते हैं कि कौन श्रेष्ठ है। स्व: अर्थात अपना, धर्म अर्थात किसी सत्ता की निजी विशेषता, जिसके बिना उस सत्ता का अस्तित्व नहीं रहे। अत: उक्ति का अर्थ हुआ कि किसी भी सत्ता का अस्तित्व निर्धारित करने वाली स्वयं उसके की विशेषता सर्वश्रेष्ठ है। उदाहरणतः सूर्य के लिए प्रकाश श्रेष्ठ है क्योंकि यदि सूर्य प्रकाशमान होना छोड़ दे तो सूर्य का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। सूर्य का स्वधर्म प्रकाशमान होना, उसके लिए श्रेष्ठ है। इसके विपरीत अंधकार जो रजनी का धर्म है, जो सूर्य के लिए परधर्म है। सूर्य को उसे कभी अंगीकार नहीं करना चाहिए। अब उस बात को मनुष्य के परिप्रेक्ष्य में देखे तो मनुष्य का स्वधर्म है ➡ जिसके बिना मनुष्य का अस्तित्व ही संकटग्रस्त हो जाए तथा ऐसा कौनसा परधर्म है कि मनुष्य यदि उसका अधिग्रहण कर दे तो मनुष्य का अस्तित्व नहीं रह जाता है। इस प्रश्न का उत्तर खोजे बिना हम नहीं कह सकते हैं कि कौनसी जाति श्रेष्ठ है?
🔴👉 मनुष्य की स्वजाति स्वयं मनुष्य ही हो सकती है तथा स्वधर्म मानव धर्म ही हो सकता है। शेष मनुष्य के लिए परधर्म एवं परजाति है। आशा करता हूँ कि हमें प्रश्न का उत्तर मिल गया है। मनुष्य के लिए मनुष्य जाति श्रेष्ठ है। शेष कोई भी जाति श्रेष्ठ नहीं हो सकती है क्योंकि यह मनुष्य की स्वजाति नहीं है।
🔴👉 आज के दूषित वातावरण में मनुष्य की उन्नत मेधा पेशागत अथवा मान्यतागत अवधारणा को स्वजाति अथवा स्वधर्म समझ लेता है। यही से विवाद आरंभ हो जाता है। इसलिए मनुष्य का कर्तव्य है कि विवादित विषय, जो श्रेष्ठ नहीं है। उसे छोड़ देना चाहिए। मानवीय मूल्यों को अंगीकार करना ही मनुष्य का दायित्व है।
🔴👉 मेरा मानना है कौनसी जाति अथवा सम्प्रदाय श्रेष्ठ है? इस समस्या से ग्रस्त मनुष्य को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा। मनुष्य इस सृष्ट जगत् की सबसे उन्नत प्रजाति है। उसे देवत्व एवं ब्रह्मत्व में प्रतिष्ठित होने की दिशा में चलना स्वधर्म हैं। यही मनुष्य का आनन्द का मार्ग है । इसलिए श्री श्री आनन्दमूर्ति जी कह गए हैं कि आनन्द मार्ग मनुष्य मात्र का मार्ग है। मनुष्य का समाज मात्र मानव समाज है। मनुष्य की चिन्तन नव्य मानवतावाद में निहित है। इस सृष्ट जगत् में मनुष्य में खुशहाल एवं सद्भावना के विकास के लिए श्री प्रभात रंजन सरकार प्रउत सिद्धांत प्रदान किए हैं। यह धरती पर शान्ति एवं समृद्धि का अध्याय लिखेगा। यह सभी स्वधर्म मूलक कार्य हैं।
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🔴👉 मनुष्य की स्वजाति स्वयं मनुष्य ही हो सकती है तथा स्वधर्म मानव धर्म ही हो सकता है। शेष मनुष्य के लिए परधर्म एवं परजाति है। आशा करता हूँ कि हमें प्रश्न का उत्तर मिल गया है। मनुष्य के लिए मनुष्य जाति श्रेष्ठ है। शेष कोई भी जाति श्रेष्ठ नहीं हो सकती है क्योंकि यह मनुष्य की स्वजाति नहीं है।
🔴👉 आज के दूषित वातावरण में मनुष्य की उन्नत मेधा पेशागत अथवा मान्यतागत अवधारणा को स्वजाति अथवा स्वधर्म समझ लेता है। यही से विवाद आरंभ हो जाता है। इसलिए मनुष्य का कर्तव्य है कि विवादित विषय, जो श्रेष्ठ नहीं है। उसे छोड़ देना चाहिए। मानवीय मूल्यों को अंगीकार करना ही मनुष्य का दायित्व है।
🔴👉 मेरा मानना है कौनसी जाति अथवा सम्प्रदाय श्रेष्ठ है? इस समस्या से ग्रस्त मनुष्य को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा। मनुष्य इस सृष्ट जगत् की सबसे उन्नत प्रजाति है। उसे देवत्व एवं ब्रह्मत्व में प्रतिष्ठित होने की दिशा में चलना स्वधर्म हैं। यही मनुष्य का आनन्द का मार्ग है । इसलिए श्री श्री आनन्दमूर्ति जी कह गए हैं कि आनन्द मार्ग मनुष्य मात्र का मार्ग है। मनुष्य का समाज मात्र मानव समाज है। मनुष्य की चिन्तन नव्य मानवतावाद में निहित है। इस सृष्ट जगत् में मनुष्य में खुशहाल एवं सद्भावना के विकास के लिए श्री प्रभात रंजन सरकार प्रउत सिद्धांत प्रदान किए हैं। यह धरती पर शान्ति एवं समृद्धि का अध्याय लिखेगा। यह सभी स्वधर्म मूलक कार्य हैं।
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