कीर्तनीयः सदा हरिः (Kir'taniiyah Sada' Harih)

एक सद चरित्र व्यक्ति के गुणों का चित्रण किया हुआ है। जिसमें बताया गया है कि एक सद चरित्र व्यक्ति का प्रथम गुण तृण के समान विनम्र अर्थात जमीन से जुड़ा यथार्थ व्यक्ति होना चाहिए है, द्वितीय गुण‌ तरु के समान सहिष्णु अर्थात विराट हृदय का सहनशील व्यक्ति होना चाहिए, तृतीय गुण अमानिना अर्थात जिसको कोई मान नहीं देता है उसे मान देने वाला अर्थात आम आदमी का ख्याल रखने वाला होना चाहिए तथा चतुर्थ गुण कीर्तनीय: सदा हरि: अर्थात सदा ब्रह्म भाव में रहने वाला होना चाहिए। संक्षिप्त में जमीन जुड़ा हुआ, विराट हृदय वाला, जन सामान्य का हमदर्द तथा भूमाभाव रहने वाला व्यक्ति ही आनन्द मार्गी है। 
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[श्री] आनन्द किरण "देव"
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चैतन्य महाप्रभु के शिक्षाष्टक की तीसरा श्लोक की चर्चा करने जा रहे हैं जिसमें महाप्रभु ने एक भक्त के बारे में लिखा है कि प्रभु को ऐसा भक्त प्यारा है। 

"तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना।
अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः॥

 (१) तृणादपि सुनीचिन - महाप्रभु कहते है कि मनुष्य को तृण के समान समझना एवं रहना चाहिए। तृणमूल शब्द से तृण को समझने की कोशिश करते हैं। जिसका अर्थ है - जमीन स्तर का अथवा जमीन से जुड़ा हुआ। व्यक्ति को हमेशा जमीन जुड़ा हुआ रहना चाहिए। अर्थात यथार्थ से परिचित रहना चाहिए। किसी काल्पनिक अथवा अव्यवहारिक दुनिया का बनकर नहीं रहना चाहिए। एक अच्छे नेता का गुण है कि जमीन जुड़ा हुआ रहे। अथवा एक अच्छे इंसान को जमीन से जुड़ा हुआ रहना चाहिए। हकीकत से परिचित व्यक्ति का प्रतीक है। अर्थात व्यक्ति अपने आप को तृण के समान विनम्र बनकर रहना चाहिए। जमीन से जुड़ा हुआ रहना व्यक्ति का प्रथम गुण है। 

(२) तरोरपि सहिष्णुना - तर अपि यानि वृक्ष के समान सहिष्णु होना चाहिए। अर्थात बड़े हृदय का होना चाहिए। उद्धार मन वाला होना चाहिए। सभी प्रकार संकीर्णता, संकुचितता, अल्प सोच एवं कुत्सितता से उपर उठकर विशालता ग्रहण करने वाला होना चाहिए। अर्थात एक सद् चरित्र दूसरा गुण विशाल हृदय का होना चाहिए। 

(३) अमानिना मानदेन - एक सद्चरित्र को तृतीय महत्वपूर्ण गुण जिसको कोई मान नहीं उसे मान देना का गुण होना चाहिए। जिस ओर किसी की दृष्टि नहीं जाए, उस ओर एक अच्छे एवं सच्चे नेता, कार्यकर्ता, स्वयंसेवक, समाजसेवी एवं समाज सुधारक का होना चाहिए। छोटी से छोटी समस्या की ओर भी ध्यान देने की कोशिश करनी चाहिए। उनकी नजर कोई बचना नहीं चाहिए। हमेशा सीधे साधे एवं सामान्य जन को अधिक बल देने वाला होना चाहिए। 

(४) कीर्तनीयः सदा हरिः - सदा ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाला। व्यर्थ के चिन्तन,मनन एवं विचार से दूर रहते हुए सदा प्रभु के नाम के कीर्तन में मस्त रहो। आध्यात्मिक कर्म साधना, सेवा एवं त्याग में अग्रणीय रहना। अर्थात ईश्वर निष्ठ सोच रखने वाला। मधुर भाव में मस्त रहने वाला एक सद चरित्र का आवश्यक गुण है। 

एक सद चरित्र व्यक्ति के गुणों का चित्रण किया हुआ है। जिसमें बताया गया है कि एक सद चरित्र व्यक्ति का प्रथम गुण तृण के समान विनम्र अर्थात जमीन से जुड़ा यथार्थ व्यक्ति होना चाहिए है, द्वितीय गुण‌ तरु के समान सहिष्णु अर्थात  विराट हृदय का सहनशील व्यक्ति होना चाहिए, तृतीय गुण अमानिना अर्थात जिसको कोई मान नहीं देता है उसे मान देने वाला अर्थात आम आदमी का ख्याल रखने वाला होना चाहिए तथा चतुर्थ गुण कीर्तनीय: सदा हरि: अर्थात सदा ब्रह्म भाव में रहने वाला होना चाहिए। संक्षिप्त में जमीन जुड़ा हुआ, विराट हृदय वाला, जन सामान्य का हमदर्द तथा भूमाभाव रहने वाला व्यक्ति ही आनन्द मार्गी है। 

जमीनी व्यक्ति - वास्तविक जनसेवक

सहिष्णु व्यक्ति - नीति निपूर्ण, नैतिकवान उद्धार हृदय वाला

जन समान्य से जुड़ा हुआ‌ - वास्तविक सामाजिक व्यक्ति 
ब्रहभाव वाला व्यक्ति - आध्यात्मिक प्रगति की ओर चलना। 

यह एक सदविप्र के गुण होने चाहिए। एक प्राउटिस्ट को ऐसा ही होना चाहिए। एक आनन्द मार्ग का जीवन ऐसा होना चाहिए।
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